आज पूरे वामपंथ के ढ़ांचे की “बाल की खाल” निकालेंगे।
वामपंथ और साम्यवाद (communism) के इतिहास पर न जाकर मैं आपको इन सब का अर्थ और इनका लक्ष्य बताने को ज़्यादा ठीक समझूंगा।
साम्यवाद या वामपंथ और वामपंथी क्या हैं?
साम्यवाद एक तरह का सिध्दांत है या आंदोलन है, जो “अराजकता” का समर्थन करता है और राज्य या राष्ट्र की आवश्यकता और अवधारणा को अस्वीकार करता है और समाज में धन का वितरण भी समाज के हाथ में ही रहे इस विचार का समर्थन करता है अर्थात् कोई भी व्यक्ति अपनी निजी संपत्ति नहीं रख सकता बल्कि संपत्ति का वितरण समाज द्वारा ही आवाश्यकतानुसार किया जायेगा। “साम्यवाद” के सिध्दांत का समर्थन करने वाला जनसमूह “वामपंथ” (left wing), और इस सिद्धांत का समर्थन करने वाला व्यक्ति “वामपंथी” (leftist) कहलाता है।
चूंकि वामपंथी अराजकता का समर्थन करते हैं और उनका मानना है कि वर्तमान में जो तंत्र, जो व्यवस्था देश में है वह भ्रष्टाचार से लिप्त है और इसे उखाड़ कर फेंक देना चाहिए और नये सिरे से साम्यवादी सिध्दांतों के साथ नया तंत्र बनाना चाहिए, यही कारण है कि हर “वामपंथी” आपको सरकारों के विरुद्ध बोलते हुए दिखेगा क्योंकि सरकारों का चयन वर्तमान में संचालित उसी व्यवस्था के आधार पर होता है जिसे ये उखाड़ फेंक देना चाहते हैं।
एक अन्य पहलू “वामपंथ” का यह है कि यह “राष्ट्र की आवश्यकता” और “राष्ट्र की अवधारणा” (idea of nation) को नकारता है यह राष्ट्र और सीमाओं के उन्मूलन में विश्वास रखता है इसी कारण “वामपंथी” देशद्रोही दिखलाई पड़ते हैं क्योंकि जो भी चीज़ आपमें “राष्ट्रीयता की भावना” जगाती है चाहे वो राष्ट्रगान हो, हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी परंपराएं हों, हज़ारों साल पुरानी हमारी समृद्ध सभ्यता हो, हमारी सनातन संस्कृति हो, वो हर चीज़ जो आपमें राष्ट्रीयता की भावना को और प्रबल करती हो और राष्ट्रीयता की भावना में बांधती हो एवं आपको राष्ट्र पर गर्व और राष्ट्र से प्रेम करने का कारण प्रदान करती हो, उस चीज़ का ये “वामपंथी” हमेशा विरोध करते हैं।
यही कारण है कि यह “राष्ट्रगान” में खड़े नहीं होना चाहते, यही कारण है कि यह सबरीमाला और शनि शिंगणापुर वाले मुद्दों पर कोर्ट केस करते हैं, हिंदू शास्त्रों और ऋषि मुनियों का मज़ाक उड़ाते हैं।
इन “विषैले वामपंथियों” की एक और विशेषता होती है कि ये “अनीश्वरवादी” होते हैं और ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखते, यही कारण है कि यह सब हिंदू धर्म की मान्यताओं पर हमेशा हमला करते रहते हैं क्योंकि हिंदू होने का अर्थ है कि आप अवश्य ही भारत देश पर गर्व करेंगे क्योंकि सनातन आपको अनेक कारण देता है भारत देश के वासी होने पर गर्व करने के क्योंकि सनातन से संबंधित हर एक घटना भारत में ही घटित हुई है जिसका ज्ञान आपके अपने भारतवासी होने की भावना और बल प्रदान करता है और आप इस राष्ट्रीयता की पहचान को छोड़ने को बिल्कुल भी तैयार नहीं होंगे।
राम मंदिर का विरोध भी इसी कारण होता है क्योंकि जितने ज्यादा साक्ष्य आपके समक्ष अपनी संस्कृति की प्राचीनता को लेकर होंगे उतना ज़्यादा राष्ट्रीयता की भावना प्रबल होगी। यही कारण है कि इन “वामपंथियों” ने हमेशा ही हमारे “इतिहास” से छेड़छाड़ की है और उसमें मिलावट कर हमारे आदर्शों की छवि धूमिल करने का प्रयास किया है क्योंकि ऐसे इतिहास कौन गर्व करना चाहेगा जो नकारात्मक हो? कोई भी व्यक्ति नहीं, और जब पूर्वजों के इतिहास पर गर्व करने का कोई कारण ही नहीं होगा तो इतिहास और परंपराओं को याद रख और उन्हें संजोकर रखना चाहेगा? और ऐसे समाज से राष्ट्रीयता की भावना को हटाना आसान हो जाता है जिसे अपने इतिहास पर ही गर्व न हो।
आपका स्वयं को “हिंदू” कहना ही इनको कभी रास नहीं आयेगा क्योंकि आपका ऐसा कहना ही आपके गौरवशाली इतिहास गौरवगान है जो कि याद दिलाता है कि आपकी जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं जो कि आपको अपनी पहचान कभी छोड़ने नहीं देगा इसलिए हिंदू धर्म को समाप्त करने के लिए “तथाकथित धर्मनिरपेक्षता” का प्रपंच रचा गया और हिंदुत्व की अवधारणा को समाप्त करने का प्रयास प्रारंभ हुआ क्योंकि यह बात ये “विषैले वामपंथी” भी जानते हैं कि “अगर हिंदू में हिंदुत्व शेष है तो इनका लक्ष्य असंभव ही रहने वाला है”।
आगे की जानकारी लेख के अगले भाग में…..
लेख ✍️ – सतेन्द्र पटैल – सर्वश्रेष्ठ भारत का लक्ष्य लिए एक “स्वप्नदृष्टा”