हाल के ही दिनों में दो प्रमुख घटनाएँ सामने आयीं है जिसे देख के लगता है की भारत में जातिवादी भावना भरी गई है ताकि हिन्दुओं में टकराव बना रहे और कुछ तथाकथिक धर्मनिरपेक्ष राजनितिक दल अपना प्रभाव और प्रभुत्व भारत में बना के रख सकें।
पहली घटना –
6 जून की रात अमरोहा में घटी। इसमें एक दलित युवक की हत्या हो गई जो की कोई जातियता को लेकर नहीं बल्कि आपसी व्यापर को लेकर विवाद था लेकिन इसमें एक तरफ स्वर्ण था तो इस घटना के प्रकाश में आते ही इसे मीडिया गिरोह ने तेजी से कवर किया। साथ ही प्रमुखता से खबरों की हेडलाइन में सवर्ण या अपर कास्ट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया और ये बताया कि कुछ दिन पहले दलित युवक को सवर्णों ने मंदिर में जाने से भी रोका था।हालाँकि, अमरोहा पुलिस ने पड़ताल के बाद इस एंगल को पूर्ण रूप से खारिज किया। इससे साफ हो गया कि मीडिया गिरोह ने सिर्फ़ अपना प्रोपेगेंडा चलाने के लिए झूठ फैलाया।
दूसरी घटना
इसके बाद 9 जून को प्रदेश में दलितों पर हमले की एक बड़ी खबर सामने आई। जौनपुर जिले के सरायख्वाज़ा क्षेत्र के भदेठी गाँव में समुदाय विशेष (मुस्लिम) के लोगों ने आम तोड़ने को लेकर शुरू विवाद पर इतना विकराल रूप धारण किया कि उन्होंने दलितों के इस गाँव में आग लगा दी और जमकर उत्पात भी मचाया। इस दौरान हवाई फायरिंग हुई। वाहनों को आग में झोंका गया। भैंस और बकरियों को राख कर दिया गया। लेकिन मीडिया गिरोह इस घटना पर चुप्पी साधे बैठा रहा।
(दोनों घटना की जानकारी ओपइंडिया से ही मिली है)
ये दोनों घटना ये बताने के लिए काफी है की भारत में दलितों के नाम पर सिर्फ राजनीती होती है अगर 100 करोड़ के विशाल हिन्दू समाज में कही भी अगर दलित ही हत्या होती है और एक तरफ उससे ऊँचे जाति का होता है और वजह कोई भी हो, तो ये वामपंथी मीडिया, जय भीम जय मीम, भीम आर्मी वाले ऐसे दिखाते हैं की हिन्दू समाज में स्वर्ण दलितों को मारते हैं, उनसे छुआछूत करतें हैं ये मनुवादी हैं तमाम तरफ़ के आरोप जिससे हिन्दुओं को तोडा जा सके और जिससे उन्हें राजनीती फायदा मिलता रहे।
वहीँ अगर दलितों की हत्या करने वाला मुस्लिम हो या इसाई हो तो ये लोग मुहँ बंद कर लेते हैं, ऐसे समय में ये भीम आर्मी वाले दिखाई नहीं देते मतलब साफ है की मुस्लिम और इसाई द्वारा दलितों की हत्या को जुर्म नहीं माना जायेगा इन लोगों द्वारा।
ये भीम आर्मी वालें धारा 370 को हटाने और CAA का विरोध कार रहे और मुस्लिम का पक्ष में खड़े हैं जबकि धारा 370 हटने से सबसे ज्यादा फायदा कश्मीरी पंडितों को नहीं वहाँ रह रहे वाल्मीकि समाज के लोगों को हुआ । वाल्मीकि समाज के लोग 1957 में पंजाब से लाकर बसाए गए थे इसलिए आजतक उन्हें जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं माना गया और उन्हें स्थाई निवास प्रमाण पत्र नहीं दिया गया, जम्मू-कश्मीर सरकार ने वाल्मीकि समुदाय के लोगों को रोजगार देने के नियमों में बदलाव करके यह लिख दिया कि ये हमेशा केवल सफाई कर्मचारी ही बने रहेंगे. इन्हें अस्थाई रूप से रहने का अधिकार और नौकरी दी जाएगी. जब इस समुदाय का कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे बड़ा होकर सफाई कर्मी ही बनना होता है, चाहे वह कितनी भी पढ़ाई कर ले. यही नहीं स्थाई प्रमाण पत्र न होने की वजह से वाल्मीकि समाज के लोग संपत्ति भी नहीं खरीद सकते थे. उनके बच्चों को राज्य सरकार की छात्रवृत्ति भी नहीं मिलती है. वाल्मीकि समुदाय के बच्चों को राज्य सरकार के इंजीनियरिंग, मेडिकल या किसी अन्य टेक्निकल कोर्स के कॉलेजों में एडमिशन नहीं मिलता था. वाल्मीकि समुदाय के लोग लोकसभा चुनाव में तो मताधिकार का प्रयोग कर सकते थे किंतु विधानसभा चुनावों में वोट नहीं डाल सकते. अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब उम्मीद जगी है कि इन्हें, समान और सम्मान वाली जिंदगी मिलेगी, और इन्हें यहाँ की स्थाई निवासी माना जायेगा।
370 हटने से पहले तक इनकी जिंदगी काफी दुरह थी, लेकिन तब न कोई कांग्रेस आया, ना कोई भीम आर्मी, ना कोई जय भीम जय मीम वाला क्यूंकि इनका शोषण और हत्या मुस्लिम द्वारा किया जा रहा था।
CAA आने से भी सबसे ज्यादा फायदा वहाँ पे रह रहे दलितों का ही होगा जो विभाजन के दौरान वहाँ साधन नहीं होने के वजह से वही रुक गए थे और मुस्लिमो द्वारा उनका शोषण, बलात्कार, बच्चिओं का धर्मपरिवर्तन करके मुस्लिम से शादी करवाना, घर तोड़ देना ऐसी घटना उनके लिए आम हो गई थी, लेकिन आज तक न कोई कांग्रेस आया, ना कोई भीम आर्मी, ना कोई जय भीम जय मीम वाला क्यूंकि इनका शोषण और हत्या मुस्लिम द्वारा किया जा रहा था। लेकिन जब भाजपा वालों ने इनके लिए काम करना शुरू किया तो इन्हें लगने लगा की अगर दलितों का विकास होगा या उनके लिए काम होगा उनकी राजनीती और भारत तोड़ने की बात टो खत्म हो जाएगी।
हरियाणा के मेवात में 50 ऐसे गाँव हैं जहाँ मुस्लिमो ने दलितों की हत्या करके उन्हें मार कर या तो भगा दिया या धर्मपरिवर्तन करवा दिया गया और यहाँ आज हिन्दुओं की संख्या 0 है, लेकिन भीम आर्मी, वामपंथी मीडिया, कांग्रेस इनको बचाने नहीं आई क्यूंकि ये कांड मुस्लिम द्वारा किया गया है।
भीम आर्मी, वामपंथी मीडिया, कांग्रेस, जय भीम जय मीम वालों का एक मात्र एजेंडा है की दलितों को को सवर्ण से लड़ा के ध्यान भटकाते रहो औए पीछे से मुस्लिम इनकी जमीन हथिया ले, इनका शोषण करे इनकी हत्या करे और सवर्ण के नाम पे ये सारी बात छुपा दिया जाये। फेसबुक पे या अन्य सोशल मीडिया मिदा जितने भी, दलित एकता, जय भीम और जय मीम जैसे पेज हैं उसमे से 80% पेज का एडमिन कोई मुस्लिम हो होता है इनका काम इतना है दलित बन कर हिन्दुओ को गली दो और, सवर्ण का पेज बना कर दलित को।
क्या वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था एक है?
वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था नहीं थी, बल्कि वर्ण व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपने कर्म से ब्राहमण, क्षत्रिय, वेश्य या शुद्र बनता है, सभी वर्ण का गुरुकुल जाने से पहले उपनयन संस्कार होता था ऐसा माना जाता है की उपनयन के बाद पुनर्जन्म होता है और गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत वे अपने कर्मों से वर्ण प्राप्त करतें हैं। वैद, पुराण, रामायण, महाभारत में ऐसे अनेकों बार कहा गया है की कर्म के आधार पर ही वर्ण का निर्धारण होता है, महाभारत में जब यक्ष युधिष्ठिर से पूछ्तें है की ब्राहमण कोण है तो उनका जवाब होता हैं की “जो व्यक्ति वैद पढ़े, सत्कर्म करे, पठन- पाठन का कार्य करे, जिसमे वासना न हो, जो समाज की सेवा के लिए तत्पर्य हो वो ही ब्राहमण है। ऐसा कही भी नहीं बताया गया है की जन्म से ही वर्ण का निर्धारण होता है। इसका सबसे बड़ा उदहारण तो महाकाव्य रामायण और महाभारत के रचयिता ऋषि वाल्मीकि औए ऋषि वेद व्यास हैं, वाल्मीकि शुद्र थे और वेद व्यास एक मछुआरन के पुत्र थे, सत्यकाम जबाली जो भगवान राम के समय में पुजारी और अयोध्या के राजकीय परिवार के सलाहकार थे। ये अपने कर्मो के द्वारा ही ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया ऐसे अनेकों उदहारण देखने को मोल जायेंगे।
जाति व्यवस्था अंग्रेजों की देन है कास्ट शब्द की उत्त्पत्ति स्पेनिश और पुर्तगिश शब्द casta का हिंदी रूपांतरण है, ये पुर्तगाली और स्पेनिश चर्च मानते थे की ये गोरे चमरे वाले ही पवित्र है और काले चमरे वाले शैतान हैं जिस कारण वे गोर होने के कारण जन्म के ही महान औए दूसरों से ऊपर है और यही चर्च ने भारत में भी यहाँ के लोगों को बांटने के लिए सबसे पहली जनगणना 1872 में की गई उस वक़्त जाति के अनुसार जनगणना की गई और उस वक़्त से लोगों के दिमाग में भर दिया गया है जनगणना के बाद से जो जिस जाति का है वो उसी में बना रहेगा जो की वर्ण व्यवस्था के बिलकुल ही विपरीत था।
आर्य आक्रमण की सच्चाई
भारतीय सभ्यता सबसे पुरानी, वैज्ञानिक और सबसे महान है ये बात किसी से छुपी नहीं है लेकिन ये बात ना चर्च की पचती है यूरोपीय लोगों को उनको लगता है की जो गोरें है वे महान है, उनकी सभ्यता ही महान है और जो भारत या अफ्रीका में रहने वाले गहरे चमड़े वाले लोग है वो शैतान है ऐसे में अगर भारत के सभ्यता को सबसे पुरानी, वैज्ञानिक और सबसे महान बता दिया गया तो ऐसे में चर्च द्वारा फैलाया गया छद्म टूट जायेगा और लोग चर्च और इसाई की महानता को अस्वीकार कर देंगे और भारत को महान बतायेंगे और उनका धर्मपरिवर्तन का कार्य ख़त्म हो जायेगा और लोग इसाई और चर्च के खिलाफ हो जायेंगे। इसी के लिए चर्च और यूरोपीय लोगों से आर्य आक्रमण का सिधांत दिया और अपने को महान बनाने के लिए बताया की यहाँ यूरोप से आर्य आ कर भारत के लोगों को खेती सिखाया, वैद पुराण लिखे, तमाम तरह के झूठ बनाये गए ताकि, भारतीय सभ्यता की वैज्ञानिकता, महानता को युरोपिय द्वारा निर्मित बनाया जा सके। इससे आर्य और द्रविड़ के नाम पे भारत के लोगों को तोडा गया उन्हें बताया गया की द्रविड़ यहाँ के मूल निवासी है और आर्यन लोग बाहर से आये है और उनका शोषण कर रहे हैं, इसी चर्च के टुकड़े में पलने वाले वामपंथी इतिहासकारों ने इस बात को और आगे बढाया ताकि चर्च और अंग्रेज भारत का फ़ायदा उठा सके।
ये वामपंथी और अंग्रेज मिल कर ऐसे ऐसे बात लोगों तक पहुँचाया और ग्रंथों, पुराणों, में छेड़ छाड़ करके उसको विकृत बनाया ताकि आर्य – द्रविड़, जातिवादी को सही बनाया जा सके की ऐसा तो भारत में होता आया है, और बाद में यही लोग द्रविड़ और दलितों के भगवान बन गए। ये वामपंथी, कांग्रेस, अंग्रेज पहले खुद तथाकथिक ब्राह्मण बन कर द्रविड़–आर्य, दलित–सवर्ण के नाम पे दलितों और द्रविड़ों का शोषण किया, उन्हें ये बताया की हिन्दू धर्म बाहर से आया है इसलिए तुम धर्मपरिवर्तन कर लोग इसाई या मुस्लिम बना जाओ। फिर बाद में इन्ही शोषण को ब्राह्मणों के मथे जड़ दिया और दलित और द्रविड़ के नाम पर राजनीती करने लगे।
बाबा साहब भीम राम जी राव ने अपनी पुस्तक “हू वर द शुद्रज़” में बताया की कोई भी सिधांत बनाने से पहले तथ्यों की खोज होती है लेकिन आर्य आक्रमण का सिधांत में पहले एक काल्पनिक सिधांत को बनाया गया और बाद में इसमें तथ्यों के नाम पे झूठ को जोड़ा गया। उन्होंने इसी किताब में ये बताया की प्राचीन भारत में शक्तिशाली शुद्र शासक हुआ करते थे, भेदभाव और जाति पर आधारित जाती प्रथा को उचित ठहराने वाले दमनकारी छंद बहुत बाद में जोड़े गए हैं।
ऐसा कहा गया की जो वैद है वो इन्ही युरोपिय लोग जो आर्य आक्रमण किये थे वे लिखे थे जो की 1500 ईसा पूर्व आये थे जबकि पुरे ऋग्वेद में मात्र एक बार आर्य का उपयोग हुआ है और वो भी जातीयता दर्शाने के लिए नहीं और ऋग्वेद में सरस्वती नदी और सरस्वती सभ्यता के बारे में अनेक बार चर्चा हुई है जबकि ये सरस्वती नदी काल्पनिक आर्य आक्रमण से 800 वर्ष पहले ही विलुप्त हो चुकी थी।
अगर किसी गोरे युरोपिय आर्यों ने वैद पुराण लिखे हैं तो वे भगवान भी गोरे ही बनाते जबकि हमारे भगवान तो काले है,सावलें हैं जिन्हें यूरोपीय चर्च शैतान मानतें हैं इससे पता चलता है की किस प्रकार वामपंथियो और चर्च ने लोगों ने के झूठ लोगो को बताया।
हाल के ही बरसों में हरियाणा के राखीगढ़ी में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं जो की मोहनजोदड़ो से पुराना और बड़ा है , इसमें मिले हडियों के DNA परिक्षण से पता चला है की यहाँ के लोगों और दक्षिण भारत के लोग (जिन्हें द्रविड़ कहा गया है) के DNA में काफी समनता हैं जिससे पता चलता है की भारत में आर्य आक्रमण जैसा कुछ नहीं हुआ था अपितु ईरान तक भारत के लोग ही जा कर वहाँ कृषि कार्य लोगों को सिखया।
इन वामपंथी विचार वाले जो सन्यासी बन कर ये दुप्रचार करतें हैं की स्त्री को वैद पढने की अनुमति नहीं है और स्त्री शुद्र होती हैं , ऐसा कहने के बाद ये ही वामपंथी और चर्च दुष्प्रचार करने में लग जातें हैं की हिन्दू धर्म में स्त्री की इज्ज़त नहीं होती जबकि ऐसा कुछ नहीं हैं अपाला, घोषा, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि ऐसी स्त्री थीं जो अनेक वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं और इन्हें भी ऋषि माना गया है।
ये वामपंथी और चर्च के लोग खुद इतिहास हो गये, खुद साधू संत बन कर हिन्दू धर्म में विकृति डाल कर लोगों को बताया, खुद वैद पुरानो को विकृत किया, खुद हिन्दू धर्म में विकृत डाल दिया और बाद में खुद इसके इसके खिलाफ हो कर राजनितिक फायदा लिया और कुछ नहीं इन्हें बस इस बात का डर है की अगर हिन्दुओं को सच्चाई पता चला तो इसकी कमाई और धंधा बंद हो जायेगा।
आदिवासिओं का धर्मपरिवर्तन
वामपंथियो से प्रेरित कथावाचक और साधू संत ऐसे विकृत बात करतें है भागवान को कभी चोर तो कभी लड़की छेड़ने वाला बतातें हैं इन्ही लोगों के बातों का उदहारण दे कर चर्च और मुस्लिम द्वारा दलितों और आदिवासिओं का धर्म परिवर्तन करवाए जातें है। ये कहतें है की तुम्हारे ही लोग तो भगवान को चोर और लड़की छेड़ने वाला बता रहे हैं इसलिए तुम इनकी पूजा मत करो तुम धर्म परिवर्तन कर लो।
आज झारखण्ड जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में में ये काम बहुत तेजी से चल रहा है, आदिवासी समाज जो की सनातन धर्म से जुड़ा हुआ है ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे जो की हिन्दू धर्म और आदिवासिओं की समानता को दर्शाता है, उदहारण के लिए हिन्दू में एक गोत्र में शादी नहीं होता और आदिवासी समाज में एक टोटम (गोत्र) में शादी नहीं होती। आदिवासी समाज भी प्रकृति की पूजा करतें और हिन्दू समाज भी। गुमला (झारखण्ड) के गाँव में जहाँ आदिवासी है वे गाँव में के निश्चित स्थान में सरना माँ (प्रकृति) की पूजा करतें है और उस गाँव के सभी आदिवासी उसी स्थान में जातें हैं और इस गुमला से 650 km दूर मधुबनी के गाँव में भी जो हिन्दू समाज के है वे भी गाँव में एक निश्चित स्थान पर जातें जिन्हें ब्रह्मस्थान (ग्राम देवी) कहा जाता और सभी गाँव के निवासी वहाँ जातें है। उराँव जनजाति के लोगों के सबसे बड़े देवता “धर्मेश” हैं जो की सूर्य देवता का ही नाम है।
सभी जनजाति में इसी प्रकार से प्रमुख देवता हैं जो सूर्य या चन्द्र होतें है ये चंद्रवंशी और सूर्यवंशी के सामान है, परन्तु आज वामपंथियो और चर्च ने इनका धर्म परिवर्तन करवा दिया और उन्हें नक्सली बना कर अनपे ही लोगों के खिलाफ खड़ा करवा दिया है। उन्हें ये कहा गया की हिन्दू और उनमे कोई समनाता नहीं है, हिंदू के कथावाचक ही भगवान को चोर और लड़की छेड़ने वाला कहतें हैं तो तुम क्यों पूजा कर रहे हो, उन्हीं का जमीन हडप कर स्कूल खोला और फिर उसी कमाई से उनका धर्म परिवर्तन पैसा दे कर किया। आज स्थिति ये है की उराँव जनजाति के युवा पीढ़ी को खुद के प्रमुख देवता के बारे में जो की “धर्मेश” हैं उनके बारे में नहीं पता वे सिर्फ अब सरना माँ (प्रकृति) की ही पूजा “सरहुल” और “कर्मा” में करतें हैं।
मुस्लिम भी ऐसे गाँव में जा कर बहुत तेजी से धर्मपरिवर्तन करवा रहे इसका सबसे बड़ा उदहारण ये है की जो आदिवासी बहुत इलाका है जहाँ की जमीन में CNT ACT लगा हुआ है वह जमीन मुस्लिम के पास कैसे जा रहा है, मुस्लिम आदिवासी लडकियो से शादी करके उनका जमीन ले लेते है और शादी के बाद उनके नाम से जमीन लेते है ये काम झारखण्ड में बहुत तेजी से हुआ। राँची जिला के मांडर थाना के लोयो गाँव में जहाँ पहले “लोहार जनजाति” के लोग लोढ़ी सीलोट (मसाला पिसने का पत्थर से बना) बनाया करते थे लेकिन अब ये काम मुस्लिम कर रहे है और लोहार जनजाति के लोग गाँव छोड़ दिया ऐसा इसलिए की वहाँ धीरे धीरे मुस्लिमो के जनसख्या बढ़ रही है और जो प्राकृतिक संसाधन पे आदिवासिओं का हक़ है वो मुस्लिम छीन रहे है, जिस चट्टान के पत्थर से लोढ़ी सीलोट से वह चट्टान वहाँ रह रहे उराँव जनजाति का है और उससे कमाई मुस्लिम कर रहा है, वहाँ खेती आदिवासी करता है उत्पादित अनाजों का दलाली कर के पैसा मुस्लिम कम रहा और आदिवासिओं को बहुत कम पैसा मिलता है। ऐसा सिर्फ इसी गाँव में नहीं अपितु झारखण्ड के हर आदिवासी बहुल इलाकों में हो रहा है, पहले जमीन हडपो, फिर उनका व्यवसाय हडपों, जब आदिवासी परेशान हो कर गाँव छोड़े तो गाँव भी हडपो।
लॉक डाउन 1 के दौरान इसी झारखण्ड के सिसई के गाँव में एक आदिवासी बिरवा उराँव ने एक मुस्लिम को कोरोना के डर से थूकने से मना किया था उसी में 7-8 मुस्लिम मिल कर उस आदिवासी को मिल कर मार दिया गया था। ये सिसई में मुस्लिम की जनसँख्या ज्यादा नहीं थी लेकिन अब इनकी जनसंख्या बहुत हो गई है और आदिवासिओं से मार पीट की बात आम हो गई है।
ये सब मुस्लिम सूफी संतों, वामपंथी, चर्च द्वारा हिन्दू धर्म को विकृत कर के जाति में बाँट के, धर्मपरिवर्तन और भारत तोड़ने की साजिश है और ये बस अपना राजनीती हित देखते हैं।
वामपंथी , मुस्लिम और चर्च द्वारा मनुस्मृति का उदहारण देना
हिन्दू समाज में विद्यमान कुरीतियां जो की अंग्रेज, मुग़ल, चर्च और वामपंथियों की देन है और इस बात को छुपाने के लिए वे हर बात पे मनुस्मृति की बात करतें है की मनुस्मृति में ऐसा लिखा है वैसा लिखा है, आरएसएस के लोग मनुवादी है वो हिंदुत्व की बात करता है उसे तुरंत बोल देतें है की ये मनुवादी है। जबकि देखा जाये तो मुझे नहीं लगता की इन लोगों ने खुद कभी पढ़ा होगा। मनुस्मृति एक ऐसा किताब जिसकी रूढ़िवादिता का प्रचार अंग्रजो ने और बाद में वामपंथियों ने सबसे ज्यादा किया। अंग्रेजो के ऐसा बताया मानों यह एक मात्र स्मृति हो ऐसा इसलिए किया गया की इसके साथ छेड़ छाड़ आसानी से किया जा सकता था चूँकि तब के लोगों में भी मनुस्मृति बहुत विख्यात नहीं था जैसा की रामायण, वैद, गीता, महाभारत था ऐसे में रामायण, गीता, महाभारत, वैद में बहुत ज्यादा छेड़ छाड़ नही किया जा सकता था और ऐसा होता तो लोग पकड़ लेते क्यूंकि लगभग सभी ने रामायण, महाभारत, गीता पढ़ा था या सुना था और वैद पढने वाले लोग भी अच्छी खासी जनसंख्या में थे। ऐसे में मनुस्मृति जो की कोई विख्यात पुस्तक नहीं थी लेकिन हिन्दू धर्म से जुडी हुई थी तो इससे विकृत किया गया 80 श्लोक खुद से जोड़ा गया और ऐसा प्रस्तुत किया गया की मनुस्मृति हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा धर्म ग्रन्थ है और जिसमे रूढ़िवादिता, छुआ छूत, स्त्री विरोधी, दलित विरोधी बात लिखी गई ऐसा दुष्प्रचार करने का एक मात्र कारण था की हिन्दू को तोडा जा सके और राजनीती किया जा सके। आज भी आरएसएस को मनुवादी बोला जाता है जबकि मैं अब तक 30 से ज्यादा आरएसएस के परिवार से मिला चूका है किसी के पास मनुस्मृति नहीं देखा. हाँ उनके पास रामायण, महाभारत, गीता, वैद, पुराण था लेकिन किसी के पास मनुस्मृति नहीं था। मुझे लगता है 80-90 प्रतिशत हिन्दुओं के मनुस्मृति नहीं होगी, बाकि 10 प्रतिशत ऐसे हिन्दू हैं जो मनुस्मृति की सत्यता पर काम कर रहे है जिनसे पता चलता है की मनुस्मृति को विकृत कर के दुष्प्रचार किया जा रहा है। ऐसा सिर्फ ऐसा किया गया ताकि अंग्रेज, चर्च और वामपंथी मिल के हिन्दू धर्म को बदनाम कर सकें।
मनुस्मृति क्या है, सबसे पहली बात ये की स्मृतियाँ मानवनिर्मित थी और इन्हें अस्थायी माना जाता था, इन्हें कभी वेद के सामान नहीं माना जाता है। अंग्रेजो और वामपंथियो ने अपने हित के लिया और हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए इसका सहारा लिया उन्होंने मनुस्मृति से बीच बीच के पंक्ति को उठा कर लोगों को बताया, संस्कृत काव्य में अगर ऊपर और नीचे की पंक्ति को छोड़ दिया जाये तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है इसलिए इन्होने हमेशा अपने हित के अनुसार पूरी पुस्तक में सिर्फ वही पंक्ति को चुना जिससे उनका हित सफल हो जाये उदहारण के लिए वामपंथियो द्वारा बताया गया की मनुस्मृति समलैंगिकता के खिलाफ लिखा गया है लेकिन इसमें समलैंगिकता को मात्र एक छोटा दुराचार माना गया और इसके लिए एकमात्र दंड वस्त्रों के साथ किया एक आनुष्ठानिक स्नान इसे बहुत बड़ी गलती के रूप में नहीं देखा गया था। वहीँ इसमें ये भी बताया गया की अगर कोई पुरुष पत्नी को धोखा देता था तो इसे गंभीर अपराध माना जाता था, जिसके लिए मृत्यु दंड निर्धारित था।
ये सारा, जातिवाद , जन्म आधारित जाति निर्धारण , मनुस्मृति प्रपंच पहले अंग्रजो और चर्च ने भारत को भारत को तोड़ने के लिए किया ताकि वे यहाँ पे राज कर सके ये अंग्रेज प्रत्यक्ष रूप से बोल रहे थे की “फुट डालो राज करो” हिन्दू तब भी नहीं समझे थे और आज भी नहीं । वीर सावरकर को इसलिए काला पानी की सजा इसलिए नहीं दि गई थी की उन्होंने किसी हत्या में शामिल थे बल्कि इसलिए दिया गया क्यूंकि ये जातिप्रथा ख़त्म करने के लिए काम कर कर रहे थे जब कोई दलित को छूने से डरता था वे उस वक्त वीर सावरकर उनके साथ बैठ के खाना खाते थे, बम्बई में पतितपावन मंदिर का निर्माण करवाया जहाँ सभी जाति के लोग पूजा कर सकते थे। अंग्रेज डर रहे थे की की जातिवादी के खिलाफ लोग जागना शुरू कर दिया था उनको भारत से भागना पड़ जायेगा। इसलिए अंग्रेज ऐसा कारण चाह रहे थे जिससे की उससे कैद किय जा सके और ये सूधारवादी काम ना हो सके। लेकिन आज उनके इन कार्यों को छुपाने के लिए और उनको बदनाम करने के लिए बोल दिया जाता है की उन्होंने अंग्रेजो से माफ़ी मांगी और गाँधी की हत्या में शामिल थे जबकि उस वक्त कांग्रेस की सरकार होने के वावजूद उनके खिलाफ कोई सबुत नहीं मिला।
ये चर्च, वामपंथी और मुस्लिमो ने कभी जातिवादी को ख़त्म करने लिए काम नहीं किया बल्कि इसे धर्मपरिवर्तन करने का साधन बनाया, दलितों और आदिवासिओं को नक्सली बना कर अपने ही लोगों को मरवाया, उनके हड़प कर उन्हें बेदखल कर दिया और बोल गया की सरकार तुम्हारी जमीन ले कर मार देगी जबकि ये काम ये खुद ही कर रहे हैं। सरकार उनके लिए कार्य भी करना चाहती है तो उन्हें भड़काया जाता है उन्हें नक्सली बना कर सरकार के लोगों को मरवा देते है और अगर कोई उनके समाज के लोग समझदारी दीखाते है और सरकार या विकास कार्यों का पक्ष लेते है तो उन्हें भी मरवा दिया जाता है।
जो हिन्दू संगठन जैसे आरएसएस, या कोई साधू संत समाज जातिवादी खत्म करने हेतु काम करतें हैं या तो उन्हें मरवा दिया जाता है या उनका दुष्प्रचार किया जाता है की ये हिन्दू विरोधी हैं। इन वामपंथी, चर्च, मुस्लिम को पता है की अगर भारत में जातिवादी ख़त्म हुआ तो, भारत में उनकी कमाई और राजनीती ख़त्म हो जाएगी, भारत की बहुत सारी राजनितिक पार्टी खत्म हो जाएगी, इसलिए जो काम अंग्रेज कर रहे थे “फुट डालो शासन करो” वे आज ये वामपंथी, मुस्लिम संगठन, चर्च कर रहा है।