किसी देश का नव निर्माण ४-५ वर्षों में नहीं हो जाया करता बल्कि उसके लिए ९-१० वर्षों का समय लग जाता है। सन २०१४ में जब मोदी जी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली तो ये तय था कि कांग्रेस द्वारा किये गए घोटालों व अतरंगी योजनाओं को ठीक करते करते मोदी जी व भाजपा को २-३ साल लग ही जाने हैं और हुआ भी कुछ वैसा ही। अब जब २०१९ के चुनाव की बारी आई है तो तमाम दल और उच्च पदों पर बैठे नेताओं की भाषा से ये साफ़ हो जाता है कि चुनाव और सत्ता देश के विकास के लिए नहीं, अपितु किसी भी हालत में मोदी जी को हटाने की जद्दोजहद है, फिर उसके लिए कट्टर दुश्मनी रखने वाले दलों को हाथ ही क्यों न मिलाना पड़े और महागठबंधन के नाम पर झूठ ही क्यों न बोलना पड़े।
देश को आगे बढ़ाने के लिए एक विशेष प्रकार की मानसिकता, एक विशेष प्रकार की प्रवत्ति और चरित्र के निर्माण की आवश्यकता हुआ करती है, जो कि मोदी जी के पास बहुतायत में है और विपक्ष व महागठबंधन के पास बिलकुल भी नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले पाँच दशकों में भारत ने बहुत प्रगति की है लेकिन घोटालों और धर्म की राजनीति ने उस प्रगति की रफ़्तार को धीमा किया है। यह बात नहीं कि कांग्रेस के नेताओं ने आधुनिक भारत के निर्माण में कोई योगदान नहीं दिया है, लेकिन इस योगदान के साथ अगर राष्ट्रीय चरित्र का भी निर्माण हुआ होता तो २०१४ में सीटों की संख्या ४४ से कहीं ज्यादा होती।
निर्माण का अर्थ यदि मात्र बड़े बड़े भवन खड़े कर देना होता या व्यक्तिगत नफरत के चलते एक प्रधानमंत्री को गालियां देना होता तो ये देश न जाने कब का सुपर पावर बन गया होता। अभी हाल ही में अपनी पार्टी का प्रचार करते वक़्त आतिशी मार्लेना को ये कहते हुए सुना गया कि अगर मोदी को हटाने के लिए गुंडों व अपराधियों को भी वोट देना पड़े तो दो। और दूसरी ओर मणि शंकर जी तो पाकिस्तान से गुहार लगा आये की मोदी को हटाने में हमारी मदद करो। आज सिद्धू एक स्टेज पर नमाज़ पढ़ने को तैयार हैं और दीदी उनके विपक्षियों को मौत के घाट उतारने में व्यस्त हैं। राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट का मजाक उड़ाने को तैयार हैं और केजरीवाल गठबंधन की भीख मांगने में व्यस्त है।
आखिर ये सब हो क्यों रहा है? जवाब सीधा सा है – मोदी जी को हटाना है और इस प्रक्रिया में अगर ज़मीर भी बेचना पड़े तो विपक्षी दल व मीडिया का एक वर्ग वो भी करने को तैयार है। और जो बेचने को तैयार नहीं हुए उनके साथ टॉम वड्डकन व प्रियंका चतुर्वेदी जैसा व्यवहार किया जाएगा। कांग्रेस ने तो तय कर लिया है कि हर हाल में राहुल जी को प्रधानमंत्री बनाना है और उनकी छवि सुधारनी है, लेकिन वो भूल रहे हैं की ये सत्तर का दौर नहीं जहाँ जनता झूठ को पहचान न सके। ये वो दौर नहीं जिसमें एक नेता अपनी हार को लेकर संविधान ही बदलने पर अमादा हो जाए। कांग्रेस पार्टी जिस दिन वंशवाद से हटकर अगर कुछ देखेगी तो हो सकता है कि जनता उन्हें फिर से स्वीकार करने को तैयार हो जाए लेकिन वो जब तक वंशवाद के मायाजाल में फंसी रहेगी जनता भरपूर समर्थन नहीं देगी।
मोदी जी खुद अपने आप में वंशवाद से दूर हैं और इस देश को एक ऐसा नेता चाहिए जो खुद व परिवार से अलग हटकर देश को ही अपना परिवार मानें और देश निर्माण के बारे में सोचे। मोदी जी अब तक उस कसौटी पर खरे उतरे हैं और वो हमारे देश को, भारत को नई उंचाईओं पर ले जा सकें इसलिए फिर एक बार मोदी सरकार।
धन्यवाद।