जड़ बनाकर अनंत चेतन को पूजता हिन्दू ,
खुद की दुर्दशा पर सिर्फ वैचारिक चिंतन करता हिन्दू ,
इतिहास को दोहराकर स्वयं पीड़ित बनता हिन्दू ,
जाति, राज्य, भाषा मे खुद को बांधता हिन्दू ,
कौन बचा कैसे है चचा,
निर्पेक्षता का एकतरफा दिखावा करता हिन्दू ,
ब्रिटिश चाल-चलन में आज भी जीता हिन्दू ,
सच कह दो तो कट्टर कहता हिन्दू ,
आपसी भाई चारे की शान में ,
यमुना को मुगलिया बताकर गंगा -जमुना तहज़ीब समझाता हिन्दू ,
मुस्लिम ईसाई सबसे तुमने है मरवाई-ना मानकर ,
21 सदी का सौदागर बनना चाहता हिन्दू ,
सरकारों की नीतियों में चाणक्य को ढूढ़ता हिन्दू ,
हिन्दू राष्ट्र की कल्पना में , वर्तमान में स्वाभिमान बेचता जाता हिन्दू ,
कैरियर , परिवार जीवन मे ,कर्तव्य-कर्म से भागता हिन्दू ,
आख़िर कहाँ और कितना बाकी है , हिन्दू ।