Saturday, November 2, 2024
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संकट काल में दिखता संघ का विराट रूप

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डा रवि प्रभात
असिस्टेंट प्रोफेसर
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल भारत नहीं अपितु वैश्विक पटल पर भी विभिन्न कारणों से सर्वदा चर्चा का केंद्र रहता है। अपने 95 साल के इतिहास में एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन होने पर भी संघ की अधिकतम चर्चा राजनीतिक अथवा सांप्रदायिक कारणों से ही की जाती रही, निहित स्वार्थों के वशीभूत वामपंथी मीडिया मुगलों के द्वारा एक विशेष चश्मे को लगाकर एकपक्षीय दुष्प्रचार संघ को लेकर किया जाता रहा। लेकिन इन सब दुष्प्रचारों से बेपरवाह संघ लक्ष्यैकचक्षुष्क होकर अपनी गति से निरंतर व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण के कार्य में लगा रहा। संघ की सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों से भारत के आम जनमानस पर जो छवि अंकित हुई उस छवि को तमाम संसाधनों से दुराग्रही मीडिया संस्थान अथवा अन्य विरोधी पक्ष कभी धूमिल नहीं कर पाए।

घोषित तौर पर संघ के अधिकृत कार्यकर्ताओं का सर्वदा एकमेव कथन होता है कि संघ का कार्य शाखा के द्वारा व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण करना है। यद्यपि विरोधी पक्षों को आज तक कभी यह बात पची नही एवं यह लोग हमेशा संघ का मूल्यांकन राजनीतिक तौर पर करते रहें तथा संघ की छवि एक कट्टर मुस्लिम विरोधी संगठन के रूप में गढ़ते रहे।

पुनरपि यह देखने में आता है कि आम जनमानस संघ विरोधियों की इस तरह की बातों से कोई सहमति नहीं रखता, जिसके कारणों की तह में जाना अत्यंत आवश्यक है।

आम जनमानस में संघ के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास की जब हम मीमांसा करते हैं तो पाते हैं कि इसका महत्वपूर्ण कारण है कि किसी भी आपदा काल में संघ का स्वतःस्फूर्त, स्वाभाविक सेवा-भाव। संघ अपने कार्यकर्ताओं को हमेशा समाज एवं राष्ट्र के प्रति निश्छल आत्मीयता एवं निस्वार्थ सेवा का संस्कार देता है, यही संस्कार संकट काल में जब सेवा कार्य के रूप में परिणत होकर समाज के सामने प्रत्यक्ष होता है तो आम जनमानस पर दुराग्रही मीडिया द्वारा संघ को लेकर जो भ्रम बुने जाते हैं वह क्षण भर में ध्वस्त हो जाते हैं। भारतीय समाज का एक दीर्घकालिक अद्भुत जुड़ाव संघ के साथ बन जाता है।

देश जब 1947 में विभाजन की त्रासदी से झुलस रहा था, लाखों लोगों का विस्थापन हो रहा था, पाकिस्तान में हिंदुओं का दमन बेहद दुर्दांत तरीके से किया जा रहा था तब अपनी सीमित शक्ति होने पर भी तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरूजी ने स्वयंसेवकों को इस भयानक रक्त विभीषिका में सीमापार से आ रहे हिंदुओं को सुरक्षित रास्ता देना, उन्हें सकुशल स्थापित करना, उनके भोजन आदि का प्रबंध करना इत्यादि कार्यों में जुटने का निर्देश दिया। श्री गुरु जी की इच्छा अनुसार संघ के स्वयंसेवकों ने तीन हजार से ज्यादा राहत शिविर लगाकर हजारों हिंदू परिवारों को पंजाब दिल्ली आदि स्थानों पर उनके आवास एवं भोजन की समुचित व्यवस्था की। आरंभिक काल में जहां संघ को महाराष्ट्र तक सीमित माना जाता था परंतु विभाजन काल में किए गए स्वयंसेवकों के सेवा भाव से आम समाज के मन में उनके प्रति जो सकारात्मक स्नेह पैदा हुआ इससे संघ की पहचान अखिल भारतीय संगठन के तौर पर की जाने लगी। रामचंद्र गुहा जो कि संघ के प्रति बेहद दुराग्रह रखते हैं, उन्होंने भी अपनी पुस्तक ‘भारत गांधी के बाद’ में विभाजन काल की स्थिति का वर्णन करते हुए संघ के सेवा कार्यो की चर्चा की है। यह अलग बात है कि अपने स्वभाव अनुसार वह इसे हिंदू समाज से जोड़कर सांप्रदायिक रंग देने से नही चूके।

इसके बाद तो जैसे एक श्रृंखला ही बनती चली गई एवं आपदा काल में संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्य एक तरह से अपरिहार्य बन गए। चाहे 1962 का चीन का युद्ध हो अथवा 1965 पाकिस्तान के साथ युद्ध। जब संघ के कार्यकर्ताओं ने प्रशासन के साथ मिलकर सैनिक आवाजाही मार्ग की चौकशी, रसद आपूर्ति में सहायता की, साथ ही ट्रैफिक व्यवस्था संभालने तक का भी आग्रह किया ताकि उसमें लगे पुलिसकर्मी युद्ध में भाग ले सकें।

कभी संघ को फासिस्ट कहने वाले जयप्रकाश नारायण का संघ को लेकर हृदय परिवर्तन भी बिहार बाढ़ के दौरान किए गए संघ के स्वयंसेवकों के सेवा कार्यो को देखकर ही हुआ। जिसके बाद इमरजेंसी में संघ के साथ मिलकर तानाशाही से लड़ने में उन्होंने तनिक भी संकोच नहीं किया।

यह क्रम 1971 में ओडिशा में आए भयंकर चक्रवात से लेकर भोपाल गैस त्रासदी तक, 1984 के दंगों से लेकर गुजरात भूकंप तक तथा उत्तराखंड के भयंकर सुनामी से लेकर अद्यतन वैश्विक महामारी कोरोना से निबटने तक निरंतर निर्बाध गति से जारी है।

वर्तमान कालीन वैश्विक आपदा कोरोना की चर्चा करने से पहले एक बिंदु पर चर्चा करना अत्यंत आवश्यक है, लेख के आरंभ में ही इस बात पर चर्चा की गई है कि संसद के विरोधियों ने संघ की छवि एक कट्टर मुस्लिम द्वेषी संगठन के तौर पर गढ़ने का प्रयास किया है तथा यह कहने से भी नहीं चूकते कि मुस्लिमों की प्रतिक्रिया हेतु ही संघ की स्थापना की गई। परंतु जब संघ द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों पर दृष्टिपात करते हैं तो यह नैरेटिव भी ध्वस्त होता नजर आता है, क्योंकि जब संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य के लिए मैदान में उतरते हैं तो वह बिना किसी भेदभाव के ‘नर सेवा नारायण सेवा’ के भाव से सेवा कार्य करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार आईआईएमसी के पूर्व निदेशक के जी सुरेश इस इस बात की तस्दीक करते हुए कहते हैं कि जब वह युवा थे और चरखी दादरी में वायुयान दुर्घटना हुई था तो वहां उन्होंने रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि दुर्घटनास्थल पर अनेक संघ के कार्यकर्ता बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम क्षतिग्रस्त यात्रियों की उसी पुनीत भाव से सेवा कर रहे हैं जिस भाव से अन्य की सेवा करते हैं, तो उनके मन में तत्कालीन संघद्वेषी तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जो छवि गढ़ी थी वह तुरन्त ध्वस्त हो गई एवं उनका नजरिया भी परिवर्तित हो गया। यही सत्य का दर्शन होता है जिसके लिए द्रष्टा को निरपेक्ष व पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए।

वैश्विक महामारी चायनीज वायरस से उपजी यह ऐसी भयंकर आपदा है जिसके सामने बड़े-बड़े विकसित देश भी पस्त हो चुके हैं। ऐसे में लोकडाउन की घोषणा के बाद दिहाड़ी मजदूर, दैनन्दिन कमाई वाले गरीब, प्रवासी मजदूर, प्रवासी विद्यार्थी, अनेक ऐसे परिवार जिनके युवा सदस्य अन्य शहर में या देश से बाहर हैं उनकी देखरेख, इन सबका भोजन आदि का प्रबंध जैसी अनेक समस्याएं उठ खड़ी हुई। इन सारी परिस्थितियों को संभालने के लिए फिर एक बार के पूरे भारतवर्ष में सेवा कार्य के लिए तत्पर दिखे संघ के स्वयंसेवक। आधिकारिक तौर पर वास्तविकता में संघ शाखा ही लगाता है परंतु संघ के कार्यकर्ता राष्ट्रहित के लिए उपयोगी सभी कदम उठाते हैं। इसलिए तमाम सेवा कार्य संघ के आनुषंगिक संगठन सेवा भारती की देख रेख में चलते हैं।

इस आपदा काल में अनेक लोगों के राशन वितरण से लेकर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति एवं बुजुर्ग लोगों की संभाल तक का सारा कार्य देखते ही देखते सेवा भारती के माध्यम से संघ के कार्यकर्ताओं ने संभाल लिया। इस समय में देश के सभी प्रांतों की छोटी से छोटी बस्ती तक फैला हुआ संघ का पूरा तंत्र सक्रिय है, जमीनी स्तर पर जो जरूरतमंद हैं उन्हें अगर किन्ही कारणों से प्रशासनिक मदद पहुंच पा रही है तब भी उन तक मदद पहुंचाने का कार्य पिछले 20 दिनों से बखूबी करते आ रहे हैं। केवल दिल्ली प्रांत की बात करें तो पिछले दिनों में 55 हजार से ज्यादा लोगों को राशन किट का वितरण किया गया है, 179 रसोइयों के माध्यम से 10 लाख से ज्यादा लोगों को भोजन कराया जा चुका है, सेवा भारती की हमेशा एक हेल्पलाइन खुली रहती है, पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए अलग हेल्पलाइन चलाई जा रही है, 400 से अधिक ऐसे परिवारों की देखभाल का कार्य भी संघ के कार्यकर्ता कर रहे हैं।

इसी प्रकार मुंबई में भी नियमित तौर पर एक लाख से अधिक परिवारों को भोजन तथा 30,000 से ज्यादा परिवारों को राशन का वितरण किया जा चुका है। देश के सभी प्रांतों में सेवा भारती के माध्यम से इस तरह के प्रकल्प चल रहे हैं, जिनसे 20 लाख से अधिक परिवारों तक सीधी सहायता किसी न किसी रूप में कार्यकर्ताओं ने पहुंचाई है। गुजरात में आयुर्वेदिक किट का वितरण बड़े स्तर पर किया गया जो काफी लोकप्रिय भी हुई।

कार्यकर्ताओं ने सोशल डिस्टेंस के लिए भीड़ प्रबंधन में भी प्रशासन का सहयोग अनेक स्थानों पर किया है। अभिप्राय यह है कि वर्तमान समय में इस आकस्मिक उपजी आपदा से निबटने के लिए संघ के स्वयंसेवक पूरी तरह सेवा कार्यों में जुटकर आमजन का संबल आमजन का संबल बने हुए हैं।

वस्तुतः कार्यकर्ताओं के सेवा कार्यो को प्रचारित करने में संघ विश्वास नहीं करता, यह विशुद्ध रूप से, निस्वार्थ भाव से किया जाता है। देश का जनमानस इसका प्रत्यक्षीकरण करने के बाद इसकी अनुभूति भी करता है। अतः विरोधियों के दुष्चक्र में कभी नहीं फंसता।

क़इ सारे तथ्यों को उजागर करने के पीछे का उद्देश्य यह दर्शाना है कि कैसे जब जब देश में संकट काल आता है तो संघ संकटमोचक की भूमिका में खड़ा रहता है। इसका उद्देश्य यह भी है कि दुराग्रही लोग निहित स्वार्थ के वशीभूत संघ के क्रियाकलापों को मात्र राजनीतिक कसौटी पर कसने की बजाय उसका सर्वांगीण मूल्यांकन करें। अनेक विश्लेषक संघ की जन स्वीकार्यता का विश्लेषण करते हुए अनायास इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि संघ का मुस्लिम विरोधी कोई एजेंडा इसका कारण है। जबकि वो इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि स्वयंसेवकों के नर सेवा नारायण सेवा की भावना से ओतप्रोत जनसेवा ही उसकी पूंजी है जिसमें सारी शक्ति निहित है।

संकट काल में निश्चित ही सेवा की साधना से तप्त, कुंदन की भांति प्रदीप्त,अलौकिक आभा से युक्त संघ का विराट रूप आमजन को उसी भांति दृष्टिगोचर होता है जिस भांति अर्जुन को कृष्ण के विराट रूप के दर्शन महाभारत में हुए थे।

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