प्रिय राहुल, मैं मानसरोवर!
आशा है तुम शिवभक्तों के लिए खास सावन महीने में सोमवार का व्रत अवश्य कर रहे होगे। ब्रह्मचर्य आश्रम से ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश किये बिना ही वानप्रस्थ आश्रम में पहुँचने वाले हो तुम हालांकि पल्लवि और सागारिका आज भी ‘कमिंग ऑफ़ एज’ कहकर तुम्हारी बाल्यावस्था का ही बोध कराती हैं। उधर इलाहाबाद की वो दलित महिला आज भी सपने में किये तुम्हारे वादे को संजोये तुम्हारी राह देख रही है जिस प्रकार अमेठी तुम्हारे परिवार के किए वादों के भरोसे विकास का इंतज़ार कर रही है।
कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कहते हैं संकट के समय व्यक्ति उसे याद करता है जो मन के पास हो। विमान के हवा में डोलते ही तुम्हारा मुझे याद करना इस बात का सूचक है कि भले ही तुम्हारे पुरखों ने मेरे इलाके को बंजर जमीन कहकर चीन को भेंट कर दिया हो लेकिन तुम इसे अपना मानते हो। परंतु संकट टलते ही मुलायम सिंह यादव की तरह तुमने गुलाटी खा ली।
एक बार नंदी को मैंने कहा कि जाकर तुम्हें ले आए, तैयार भी हो गया। फिर उसने अपने समनाम टीवी चैनल पर तुम्हारे दल के लोगों द्वारा ‘Ox’ काटे जाने की खबर देखी तो मना कर दिया। वहाँ राज्य सभा के किसी गुप्ता जी के गले में अपने संबंधी को देखकर नाग देवता ने मचलकर कहा वो तुम्हें ले आयेंगे पर लट्येंस दिल्ली में गिद्धों की बढ़ती संख्या और ज़हर की बढ़ती मांग को देखकर मैंने उसे रोक लिया।
पिछले दिनों तुम्हारे साथी बबुआ के बनाये एक्सप्रेस वे का हिस्सा ऐसे धंस गया जैसे तुम्हारी खानदानी पार्टी 400 से 44 पे आ गई। सांगली के बाद तो लगता है जैसे तुम चुनाव हारने में जमानत-जब्त-धरनाधिकारी से प्रतिस्पर्धा कर रहे हो। मुझे बड़ी चिंता है तुम्हारी। एक बार आ जाओ। तुम्हारे लिए उस गधे के बच्चे, नेहरू जिसपे सवार हुए थे, को तैयार रखा है।