Saturday, November 2, 2024
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काशी की धरा अब डोल रही है मुक्ति मुक्ति बोल रही है – कविता

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काशी की धरा अब डोल रही है
मुक्ति मुक्ति बोल रही है
बाबा का नंदी जाग उठा है
प्रभु के दर्शन को खड़ा है

वक्त का पहिया घूम रहा है
इतिहास के राज खोल रहा है
माँ गंगा का प्रवाह तेज हुआ है
अभिषेक के लिए व्याकुल हुआ है

द्वारपाल तटस्थ हुए हैं
चिताओं की भस्म से महक रहीं है
अघोरीयो की ज्वाला जली है
साधु संतो ने शंखनाद किया है

बाबा विश्वनाथ को याद किया है
औरंगजेब का काल खत्म अब
बाबा महाकाल ने आगाज किया है
काशी की धरा अब डोल रही है

मुक्ति मुक्ति बोल रही है

बोलो जय श्री काशी विश्वनाथ

-अघोरी अमली सिं

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