PATNA : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों, मूल्यों और सिद्धांतों में विश्वास रखने वाले ‘गांधीवादी’ प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को लेकर आज देशभर में खूब चर्चा हो रही है. सत्ताधारी जेडीयू में अल्पकालीन सियासी सफर तय करने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लेकर चर्चा है कि वे एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं. जिसके जरिये वे बिहार की सियासत को नए सिरे से साधने की कोशिश करेंगे. क्या सच में इलेक्शन गुरु पीके ऐसा कुछ करने जा रहे हैं. आइये आपको विस्तार से बताते हैं…
10 साल का इंतजार
राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सोमवार की सुबह एक ट्वीट कर बताया कि वह लोकतंत्र में एक सार्थक भागीदार बनकर जन-समर्थक नीति बनाना चाहते हैं. इसके लिए प्रशांत किशोर पूरे बिहार में ‘जनयात्रा’ करेंगे. इस दौरान वे आम जनता के साथ संवाद कर उनकी राय जानेंगे और संगठन के लिए रणनीति तय करेंगे. ये सबकुछ प्रशांत अचानक से नहीं करने जा रहे हैं. इसके लिए इन्होंने लगातार 10 साल मेहनत की है. जैसा की उन्होंने खुद ट्वीट में किया है. दरअसल पीके अधूरे सपने को बिहार में पूरा करने जा रहे हैं.
PK का प्लान
18 फ़रवरी, 2020 को राजधानी पटना स्थित I-PAC (Indian Political Action Committee) के दफ्तर में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मीडियाकर्मियों से लगभग दो-ढाई घंटे बातचीत करने वाले पीके ने अपनी मंशा तब ही जाहिर कर दी थी कि वे राजनीति में आने को लेकर क्या सोचते हैं. उनका प्लान क्या होगा. ऐसा करने के पीछे उनका इरादा क्या है. दरअसल जेडीयू से निकाले जाने के तुरंत बाद ही प्रशांत ने पूरे बिहार को ये बता दिया था कि उनका अभिप्राय सीमित नहीं है. पीके ने कहा था कि बिहार में उन्हें गांधी-गोडसे वाली सरकार पसंद नहीं क्योंकि पीके गोडसे की विचारधारा से प्रभावित लोगों को पसंद नहीं करते.
100 दिनों की बिहार यात्रा
बिहार विधानसभा चुनाव से लगभग 9 महीना पहले इसी प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत किशोर ने मीडियाकर्मियों को “बात बिहार की” नाम की अपनी एक प्रस्तावित यात्रा के बारे में चर्चा की थी. उन्होंने बताया कि वह 100 दिनों तक बिहार की यात्रा करने वाले हैं. इस दौरान वह “बात बिहार की” के जरिये लगभग एक करोड़ युवाओं को अपने साथ जोड़ना चाहते थे.
लोकतंत्र में ताकतवर वही, जो चुनाव लड़े
“बात बिहार की” को राजनीतिक संगठन के तौर पर देखने वाले कुछ पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए तब पीके ने सरल शब्दों में ये साफ़-साफ़ कहा था कि “मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि फ़िलहाल न तो मैं कोई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहा हूं और न ही किसी पार्टी के साथ जुड़ने जा रहा हूं.” लेकिन इन दो सालों में परिस्थितियां काफी बदल गई है. अभी कुछ दिनों पहले कांग्रेस ज्वाइन करने की बात सामने आई और अब नई राजनीतिक पार्टी बनाने की चर्चा तेज हो गई है. लिहाजा पीके अब अपने ही शब्दों पर अमल करने की सोच रहे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा था “लोकतंत्र में ताकतवर वही है, जो चुनाव लड़ना चाहता है.”
गांधी की राह पर पीके
सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, “जन सुराज” (People’s Good Governance) को स्थापित करने के लिए प्रशांत जल्द ही बिहार में एक बड़ी यात्रा पर निकलने वाले हैं. (जैसा कि उन्होंने फ़रवरी, 2020 में कहा था.) पीके के करीबियों का कहना है कि “जिस तरह गांधीजी अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों के साथ एक बार में नहीं आए. गांधी जी ने यात्रा की. वह लोगों को समझने के लिए उनके बीच गए और उन्होंने उनके विचारों को आकार देने से पहले लोगों की वास्तविक समस्याओं को सुना. ठीक उसी तरह प्रशांत किशोर भी यात्रा पर निकलने की सोच रहे हैं. जनयात्रा के पीछे की उनकी मंशा यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचकर बिहार और बिहार से जुड़े मूल मुद्दों और कठिनाइयों को समझा जाये.
एक अन्य सूत्र बताते हैं कि, “विचार, निश्चित रूप से, चुनावी राजनीति में जाने का है. लेकिन गुजरात मॉडल या केजरीवाल मॉडल या फिर किसी और ‘मॉडल’ के आधार पर नहीं, बल्कि सुशासन के विचारों पर आधारित है. शुरुआत भले ही बिहार से होनी है लेकिन यह स्पष्ट है कि यह केवल बिहार तक ही सीमित नहीं है.
कैसी होगी पीके की जनयात्रा
चर्चा है कि प्रशांत किशोर यानी PK की जनयात्रा डिजिटल तकनीक से लैस होगी. जनसंपर्क करने के नए उन्नत तकनीक के साथ लॉन्च होगी. इस यात्रा में “बात बिहार की” टीम और इस संगठन से जुड़े लगभग 12 लाख सदस्य एक अहम भूमिका निभाएंगे. आपको बता दें कि प्रशांत किशोर पूर्व में मीडिया के सामने यह खुद स्वीकार कर चुके हैं कि “बात बिहार की” में जितने सारे सदस्य हैं. उनमें बीजेपी और जेडीयू समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों के सक्रीय सदस्य भी शामिल हैं, जो अब उनके साथ खड़े हैं.
सियासत में युवाओं की भूमिका
पीके ने दो साल पहले जब आई-पैक के पटना स्थित कार्यालय में यह बात कही थी कि वह युवाओं को पंचायत में मुखिया के तौर पर देखना चाहते हैं तो वहां मौजूद कई पत्रकार हैरान थे. तो कई लोग पीके की बात सुनकर मुस्कुरा भी रहे थे. लेकिन हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में ऐसा देखा गया कि भारी संख्या में कम उम्र के युवाओं ने पंचायत चुनाव में बाजी मारी. निर्वाचन के समय उनके प्रचार-प्रसार का तरीका भी अभूतपूर्व था.
क्या पीके लाएंगे क्रांति
क्या सच में प्रशांत किशोर कुछ अद्भुत करने वाले हैं. क्या सच में पीके बिहार की राजनीति में क्रांति लाने वाले हैं. चूंकि पीके आजकल वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए आदर्श और सिद्धांत की बात कर रहे हैं. इसलिए युवाओं के बीच ऐसी चर्चा खूब है. कुछ लोगों का मानना है कि पीके के इस कदम से बिहार की सियासत पर क्या असर पड़ने वाला है, इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है. लेकिन इतना जरूर है कि वह एक बड़ा संगठन खड़ा करने में सफल जरूर होंगे.
गांधी-गोडसे साथ नहीं चल सकते
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर मानते हैं कि बिहार का असली विकास नहीं हुआ है. साल 2005 में जब नीतीश ने सत्ता संभाली तब बिहार सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल था और नीतीश कुमार के करीब 17 सालों के शासन के बाद भी बिहार सबसे पिछड़े राज्यों की कतार में ही है. विकास की सूची में बिहार नीचे है. जिसे वह युवाओं की बदौलत देश के 10 सर्वश्रेष्ठ राज्यों की सूची में लाने का सपना दिखा रहे हैं. पीके आज भी इसी बात पर टिके हैं कि गांधी-गोडसे साथ नहीं चल सकते हैं.
करोड़ तो नहीं मिलियन सदस्य
दो साल पहले किसी संगठन या किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़ने का दावा करने वाले पीके ने 10 प्रतिशत टारगेट पूरा करने के बाद बड़ा एलान कर दिया है. एक करोड़ तो नहीं लेकिन एक मिलियन से ज्यादा लोगों को एक प्लेटफार्म पर साथ लेकर आने वाले पीके का हौसला बुलंद है. पीके का अगला पत्ता क्या होगा, ये बात सिर्फ पीके ही जानते हैं.
मोतिहारी से यात्रा की शुरुआत?
बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले एक पत्रकार ने बताया कि “हो सकता है कि प्रशांत किशोर मोतिहारी जिले से अपनी यात्रा की शुरुआत कर सकते हैं, जहां से महात्मा गांधी ने चंपारण यात्रा की शुरुआत की थी. हालांकि प्रशांत किशोर अभी इस मसले पर और भी पत्ते खोलने वाले हैं. पीके 5 मई को प्रेस कांफ्रेस कर विस्तृत जानकारी देने वाले हैं. तब तस्वीर और भी साफ़ हो पायेगी.