Saturday, November 2, 2024
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किसान आंदोलन का उतरता आवरण

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumar
Politics -Political & Election Analyst

लखीमपुर खीरी में चार लोगों की गाड़ी से कुचलने से मौत हो गयी, ये जानबूझकर किया गया या इसके पीछे कोई दूसरा काऱण हैं ये जाँच का विषय हैं तथा इसके जाँच पुलिस कर भी कर रही हैं। राज्य सरकार ने किसानो की सभी मांगे मान ली थी, भाकियू नेता राकेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश के एडीजे कानून व्यवथा के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी घोषणा कर दी थी, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष पर आरोप लगा, जिसके खिलाफ केस दर्ज होकर उसकी गिरफ्तारी भी हो गयी थी। ऐसा लगा था कि मामला अब शांत हो गया हैं,मगर दूसरे खेमे में फिर बैचनी आने लगी,इतना बड़ा मौका कैसे हाथ से निकल गया, राकेश टिकैत को जिधर फायदा दिखता हैं उधर झुक जाता हैं, पलटी मरते हुए. भारत बंद, रेल रोको,अस्थि कलशयात्रा,अरदास और लखनऊ में महापंचायत जैसे कार्यक्रमों की घोषणा की गयी,अरदास के कार्यक्रम में कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा भी पहुंच गयी थी.मंच पर जगह ना मिलने पर अग्रिम पंक्ति में बैठी नजर आयी।

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणो और गरीबों के लिए आंसू बहाने वालों ने लखीमपुर खीरी में भीड़ ने चार व्यक्तियों की पीट पीटकर हत्या कर दी मगर उन सभी शुभचिंतकों ने घोर चुप्पी धारण कर ली, भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का बयान लखीमपुर खीरी में भाजपा के चार कार्यकर्ताओं की हत्या को जायज ठहराया हैं, भाकियू नेता राकेश टिकैत के इस बयान पर किसी भी विपक्षी दल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। देश की किसी भी अदालत ने इसपर संज्ञान नहीं लिया। क्या देश में खून के बदले खून वाला कानून लागू हो गया।

स्वतंत्रता के बाद भारत में इस प्रकार की स्थिति पहले कभी नहीं देखी गयी होगी, भारतीय राजनीति में सभी मर्यादाएं टूट रही हैं। सभी राजनैतिक दलों ने कानून की व्याख्या अपने हिसाब से तय कर ली है। कुछ संगठनों के भारत बंद के आहवान पर महाराष्ट्र मे सरकार और गुंडागर्दी दोनो का भरपूर इस्तेमाल किया। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी संगठन के बंद को सफल बनाने के लिए राज्य सरकार कैबिनेट प्रस्ताव पास करे, सविंधान बचाने की बात करने वाली किसी पार्टी को संविधान और जनतंत्र खतरे में नजर नहीं आया।

कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए चल रहे इस आंदोलन को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के वादे और दावे कहीं से भी धरातल पर नहीं दिख रहे हैं। आंदोलन को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा कहता आ रहा है कि ये आंदोलन गैर राजनैतिक है और इसमें हिंसा की कोई जगह नहीं है,ये अहिंसक आंदोलन है मगर ये दावे और वादे बैमानी साबित हो रहे हैं। हमेशा से गांधी की बात करने वाले शायद भूल गए है कि चौरीचौरा की हिंसक घटना के बाद महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। अगर सयुंक्त किसान मोर्चा को देखे तो इस संगठन का आचरण बिलकुल विपरीत हैं। किसान आंदोलन के नाम पर ऐसा गृहयुद्ध लड़ा जा रहा हैं जिसमे भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों से संयम बरतने की अपेक्षा हैं मगर दूसरी तरफ कुछ भी करने अथवा अराजकता फ़ैलाने की पूरी छूट हैं।

जब गणतंत्र दिवस पर लालकिले और दिल्ली के आसपास उपद्रवियों ने अराजकता का नंगा नाच किया था, इस कथित अहिंसक आंदोलन को रोकने का सरकार के पास पर्याप्त कारण था मगर सरकार कहीं ना कही नाकाम हुयी थी, वर्तमान में इसके भयानक रूप सामने आ रहे है जहां मुजफ्फरनगर में विधायक की गाडी पर हमला होता है, पंजाब में बीजेपी विधायक के कपडे फाड दिए गए, हरियाणा में विधायक को बंधक बना लिया गया,हरियाणा और पंजाब में जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र में जाने से रोक दिया जा रहा है, हमले किए जा रहे हैं।

कथित किसान नेता किसी सवैधानिक पद पर नहीं हैं,कानून और संविधान में उनका विश्वास नहीं दिखता हैं। संसद द्वारा बनाये गए तीन कृषि कानून वापस करो, कानून में क्या काला है ये बताने के लिए तैयार नहीं है मगर जिद पकडे हुए है वापस लेने के लिए। सभी विपक्षी दलों ने अपनी पुरी ताकत लगा दी मगर सरकार के खिलाफ चलाये जा रहे इस आंदोलन को ढाई राज्यों से बाहर नहीं ला पाए हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा के ये आंदोलन अराजकता और हिंसा के नए कीर्तिमान स्थापित  कर रहा हैं, जिस महाराष्ट्र में मोर्चा नेताओं को साल भर से कभी समर्थन नहीं मिल रहा था, वहाँ बंद के नाम पर सत्तारूढ़ पार्टी को अपने गुंडे उतारने पड़े, इस से आंदोलन की किसानो के मध्य अविश्वसनीयता का बड़ा प्रमाण क्या हो सकता हैं, ऐसा हाल किसी भी आंदोलन का हो सकता हैं जैसा इस आंदोलन का हो रहा हैं, इस आंदोलन को सभी मोदी विरोधी राजनैतिक दलों का भरपूर समर्थन प्राप्त हैं, आम किसानो के समर्थन से वंचित ये आंदोलन मोदी विरोधियो के जनाधारहीन होने की कहानी कह रहा हैं।

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