OTT पर वेब सीरीज के नाम पर सेक्स, गालिया और नग्नता परोसी जाती ये तो हम सब जानते है। पर शायद पहली बार समाज में तांडव करवाने के उद्देश्य से फिल्म बनायीं गयी है।
रामानंद सागर की रामायण में एक दृश्य है। एक तरफ नल निल राम सेतु बाँध रहे होते है ठीक उसी समय दूसरी तरफ प्रभु राम शिवलिंग का रुद्राभिषेक कर रहे होते है। प्रभु राम कहते है आज से यह स्थान रामेश्वर के नाम से जाना जायेगा। हनुमान जी के पूछने पर भगवान् राम रामेश्वर की परिभाषा “रामस्य ईश्वर” अर्थात जो राम का ईश्वर है वही रामेश्वर है बताते है। वो खुद को भगवन शिव का दास बताते हुए शिवलिंग का नमन करते है। ठीक उसी समय शिव जी माँ उमा को बताते है की राम जी ने चतुराई से रामेश्वर की परिभाषा ही बदल दी। रामेश्वर का असली मतलब होता है राम जिसके ईश्वर है। शिव जी खुद को भगवान् राम का अनन्य भक्त बताते है। प्रभु राम और भगवान् शिव का परस्पर स्नेह और आदर पूरी रामायण में अविस्मरणीय तरीके से दिखाया गया है।
इस आत्मीयता को दर किनार करते हुए हाल ही में प्रदर्शित फिल्म “तांडव” में भगवान् शिव को राम जी के भक्तो की बढ़ोतरी से चिंतित दिखाया गया है। रचनात्कमक्ता के नाम पर एक भद्दा कलाकार चेहरे पर ब्लू क्रॉस बना कर भद्दी बाते करता है। फिर वो आज़ादी के नारे लगाता है।
आज़ादी के नारो का इतिहास कश्मीर की गलियों से होता हुआ आज दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों के चौराहो पर आ गया है। ये अलग बात है की अब कश्मीरी मुख्यधारा में आ चुके है। जहाँ कभी चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार नहीं मिलते थे अब वहाँ सत्तर फीसद लोग वोट डाल रहे है। आजादी पाकिस्तान का दिया हुआ एक ऐसा झुनझुना है जिसे बजाने की फ्रेंचाइजी एक खास युवा वर्ग और एक खास विश्वविद्यालय ने ले ली है। हर आंदोलन में ये लोग अपनी अपनी ढपली ले कर अपना किरदार निभाने पहुंच जाते है। पाकिस्तान प्रयोजित नारो की जरुरत भारत के युवाओ को क्यों पर रही है। बेरोजगारी से आज़ादी की मांग करने वाले कितने इन तथाकथित युवाओ ने नौकरी के लिए आवेदन दिया है। कितनो ने नौकरी का इंटरव्यू दिया है। नौकरी चल कर किसी के पास नहीं आती। बेरोजगारी से बाहर निकले के लिए प्रयास करने होते है। ये यहाँ नारे लगाते रह गए और वहाँ इनके अपने गावो के लड़के नौकरियों पर लग गए।
फिल्म तांडव के निर्माताओं की रचनात्मकता सिर्फ धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुंचाने तक सिमित नहीं रही बल्कि सामाजिक ताने बाने पर भी पुर जोर चोट करने की कोशिश की गयी है। दलित और स्वर्णो के बीच की दुरी को भी बेशर्मी की हद तक भंजाया गया है। फिल्म में एक संवाद के जरिये यह बताया गया है की दलित जब स्वर्ण से सम्बन्ध बनाता है तो उसकी क्या मंशा होती है। फिल्म के किसी भाग में दलित अपमान का विरोध किसी भी किरदार ने नहीं किया। पक्ष और विपक्ष होने से एक तार्किक बहस होती है। पर इस फिल्म को देख कर ऐसा लगता है जैसे जान बुझ कर दलितों को झकझोरने और भड़काने का अभूतपूर्व प्रयास किया गया है।
रचनात्मकता यही नही रुकी। देश की पहली महिला पायलट को आपत्तिजनक संबंधों में भी दिखाया गया।
कुछ लोग है जो इस फिल्म की प्रशंसा भी कर रहे है। पर ये वो लोग है जिन्हे एक खास व्यक्ति को टारगेट करने वाली हर चीज़ अच्छी लगती है। कुछ मुठी भाग लोग है जो तांडव के साथ खड़े है। पर हमें कोई दिक्कत नहीं है क्यूंकि हम अल्पसख्यको का सम्मान करते है चाहे वो अल्प सख्या दर्शको की ही क्यों न हो। …
ॐ नमः शिवाय
@graciousgoon