मैं प्रथम बार कुछ कठोर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ।
भारतीय संस्कृति के बारे में इतिहासज्ञों एवं विद्वानों के पास एक भी प्रमाण ऐसा नहीं है कि जो इस सनातन संस्कृति को संकीर्ण, परंपरावादी, धर्मांध, नारी विरोधी एवं दलित विरोधी साबित कर सके। किंतु, जब भी कोई दुष्कर्म जैसी घटना होती है तो उसके तमाम संदर्भों को भुलाकर चोट केवल सनातन के प्रतीकों पर होती है।
आमतौर पर इनका उस घटना से कोई संबंध नहीं होता। टीआरपी, एजेंडा और राजनीतिक दुराग्रहों के चलते सेलेक्टिव मामले उठाए जाते हैं और सनातन प्रतीकों पर हमला किया जाता है।
यह हमारी असावधानी का ही परिणाम है कि उनके सिद्धांतों को झूठ साबित कर देने वाले अनेकानेक तर्क और प्रमाण हमारे पास होते हुए भी हम उनका खंडन नहीं करते हैं।
क्योंकि हम अक्सर उन तर्कों और प्रमाणों पर ध्यान ही नहीं देते हैं।
इस प्रकार हम राष्ट्रवादी प्रगतिशील विचारधारा (भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद से लेकर जयप्रकाश, दुष्यंत कुमार और रामधारी सिंह दिनकर तक के महान लोग इसी विचारधारा के पोषक रहे हैं।) के लोग उनके दोतरफ़ा धोखे का शिकार होते हैं।
हमें हर समकालिक मुद्दे पर मुखर होकर लिखना होगा। स्पष्ट लिखना होगा। तर्क और प्रमाणों सहित लिखना होगा। हमारे सनातन प्रतीकों को अनजाने में अनावश्यक आरोपों से बचाते हुए लिखना होगा।
साथ ही हमें वामपंथ की हर नस को पहचानकर उसे अपनी सशक्त लेखनी से दबाना होगा। ताकि जब उनकी नस दबे, तो वह फड़फड़ाएँ और अपने असली कालनेमि के रूप को धारण करें। ताकि हम प्रभु श्री राम और हनुमानजी का नाम लेकर इस कालनेमि रूपी वामपंथी विचारधारा का सफाया कर सकें।
ऋषभ
युवा कवि एवं लेखक
नोट- ये मेरे निजी विचार हैं।