रक्षाबंधन की तरह ही जन्माष्टमी पर भी HeTA (Human for the Ethical Treatment of Animals) के नये कैंपेन का बिलबोर्ड सामने आया, कहा कृष्ण का अनुसरण करते हुए गाय को अपना दोस्त मानें और इस जन्माष्टमी चमड़ा मुक्त बनें।
खुद को तीस मार खाँ साबित करने के चक्कर में HeTA ये भूल गया जिस धर्म के लोगों को वो गाय की रक्षा करने के पूण्य प्रसूनी ज्ञान दे रहा है वो गाय को माता मानते हैं और संसार में सबसे ज्यादा वेगन (शाकाहारी) लोग इसी हिन्दू धर्म से संंबंध रखते हैं। अब आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि “मजाक-मजाक में रज्जाक मियाँ मर जाते हैं” इन HeTA वालों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो गया। अगर इन्होंने इंटरवल के पहले वाले कालिदास से सीख ली होती तो शायद ये रक्षबंधन को लेदर से जोड़ने की गलती नहीं करते। केवल इतना ही नहीं “चोरी और सीनाजोरी” की इनकी आदत ने इन्हें नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या” वाली स्थिति में पहुँचा दिया। वामपंथी मनोरोग विशेषज्ञ शैफाली वैद्या ने अकेले ही इनके धागे खोल कर रख दिए, वो तो इन HeTA वालों के पीछे ऐसे हाथ धो कर पड़ी कि मानो इनकी हंसिया-हथौड़े वाली किडनी ट्रांसप्लांट कर के ही छोड़ेगी।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार HeTA अपने शरण में आये लगभग 80-90% पशुओं को मर्सी किलिंग (दया मृत्यु) के नाम पर मार देती है।
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इसका मतलब ये हुआ कि अगर कसाईयों की कैटेगरी में ऑस्कर दिए जाते तो ओसामा और बगदादी को भी पीछे छोड़कर HeTA इस अवार्ड का सबसे प्रबल दावेदार होता। कुछ दिनों पहले बकरीद के समय लोनबाज़ पाकिस्तान का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक गाय को लोग क्रेन से लटका कर नीचे फेंक देते हैं पर उस पर HeTA वालों ने डेढ़ चम्मच फेवीकॉल का सेवन कर के अपना मुँह बंद रखने में ही भलाई समझी। वैसे HeTA की पाकिस्तान में कोई शाखा नहीं है, शायद इसलिये बचे हुए भी हैं वरना कब चिड़ियाँ उड़, मैना उड़ करते करते HeTA उड़ हो जाता कहना मुश्किल है।
अब इस पर हमारे बकैत कुमार अपनी बकैती से पीछे कैसे रह सकते थे, उन्होंने HeTA का समर्थन करते हुए हमेशा की तरह अपने संवाद की शुरुआत ‘बड़ी बिडंबना है’ वाले अपने सिग्नेचर लाइन से की पर जैसा कि आपको पता है कि हमारे देशी जॉनी डेप अजीत भारती साहब ने बकैत कुमार मर्दन का पेटेंट अपने नाम पर ले रखा है तो इन बकैतों का बी.पी. टेस्ट करने के हसीन सपने देखने वाला ये मुंगेरीलाल चाह कर भी बकैत कुमार पर कोई टिप्पणी भला कैसे कर सकता है।
काशी मथुरा बाकी है
वैसे तो बात 40,000 मंदिरों की है लेकिन भक्तों ने पहले इंडिया वर्सेस इंवेडर्स के बीच होने वाले तीन मैचों की सीरीज पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। अयोध्या में विजय के साथ ही मथुरा की तैयारियाँ शुरू हो गयी हैं, अब तो भक्तों को बस मोटा भाई के हेलीकॉप्टर शॉट का इंतजार है। वैसे ये 5 अगस्त, हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों और जिहादियों के लिए धीरे-धीरे काला दिवस बनता जा रहा है। पिछ्ले साल 5 अगस्त को सरकार ने धारा 370 हटा दी और इस साल 5 अगस्त को ही राममंदिर का भूमिपूजन हो गया। कुछ बुद्धिजीवियों को भय सता रहा है कि अगले साल 5 अगस्त को सरकार UCC (यूनिफॉर्म सिविल कॉड) न पास करवा दे पर मोटा भाई की स्पीड और मोदी जी की नई शिक्षा नीति में सेमेस्टर के प्रति प्यार देख कर तो लगता है, सरकार कहीं साल के पहले सेमेस्टर में ही UCC या जनसंख्या नियंत्रण बिल न निपटा दे। तब तो असदुद्दीन हबीसी का खौफज़दा होना भी जायज़ है, भूमिपूजन के दिन से ही उनका सूजन लगातार बढ़ता ही जा रहा है और छाती पे एनाकोंडा का लोटना भी जारी है। वैसे ही डॉ. स्वामी मथुरा मुक्त करवाने की राग भैरवी छेड़ चुके हैं और सोशल मीडिया पर भी आज-कल #काशी_मथुरा_बाकी_है खूब ट्रेंड कर रहा है, बाकी चक्रधारी कृष्ण की माया।
सोशल मीडिया की बढ़ती पहुँच और डिजिटलाइजेशन ने अचानक से सदियों से डायनासोरी निंद्रा में लीन हिन्दुओं को जगा दिया है। 60 वर्षों से इस देश की जनता को बेवकूफ बनाने वाली आशिक मिज़ाज गुलाब वाले चचा के परिवार की पार्टी की करतूत अब आय दिन सोशल मीडिया पे ट्रेंड करती रहती है। अब ये डिजिटलाइजेशन का ही प्रभाव है कि आपको मेरे इस बिना सिर-पैर वाले लेख को बर्दास्त करना पड़ रहा है। हाँलाकि अपने खून-पसीने से लिखे इस लेख का मजाक उड़ाने के पीछे मेरी प्रेरणा श्रोत वो चायवाला है जो रेल के जेनरल कंपार्टमेंट में अपनी चाय को ‘खराब चाय’ बोल कर बेचा करता था और ऐसे गर्दा उड़ा कर कमाई करता था कि फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में दार्जीलिंग और असम चाय बेचने वाले का फ्लेवर फीका पड़ जाए।
खैर, वापस से मुद्दे पे लौटते हैं वरना हम बिहारियों की ये पुरानी समस्या है कि जब तक ट्रेन प्लेटफॉर्म से छोड़ न दे तब तक हम जिसे छोड़ने गये हैं उससे असल मुद्दे की बात नहीं करते। लोगों का तो ऐसा मानना है कि दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे के क्लाइमेक्स में अमरीश पुरी साहब वाली दृश्य का आइडिया यश चोपड़ा को उनके बिहार यात्रा के दौरान ही आया था।
भले कोरोना के कारण ढेर सारी कंपनियों की हालत खस्ता हो गयी हो पर सूत्र बताते हैं कि बरनोल ने इस साल लाइफ टाइम बिजनेस किया है, यहाँ तक कि भूमिपूजन के दिन ऑनलाइन स्टोर्स पे भी बरनोल आउट ऑफ स्टॉक चल रहा था। कुछ दिनों पहले तक “और बताओ क्या चल रहा है?” के जवाब में जो लोग “फॉग चल रहा है” कहते थे, आज-कल वो भी जवाब में “अभी तो बरनोल चल रहा है “ कहने लगे हैं।
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भूमिपूजन के सीधा प्रसारण के समय टी.वी. स्क्रीन के सीमावर्ती क्षेत्रों में बरनोल का एड दिखाने वाले ‘आज तक‘ चैनल को भी बुद्धिजीवियों ने संघी बताना शुरू कर दिया है। उनके इस तरह जले पर बरनोल छिड़कने का प्रकरण देखकर मैं भी अपनी प्रतिक्रिया देने से खुद को रोक न पाया- “ऐसा कौन करता है भाई!”
खैर, बरनोल प्रकरण से सीख लेकर कायम चूर्ण वालों ने भी अपना उत्पादन तेजी से बढ़ा दिया है, क्योंकि इन दिनों बुद्धिजीवियों की शोपिंग लिस्ट में ये दोनो सामग्रियाँ ‘मस्ट बाय’ वाली सेक्शन में स्थान बनायी हुई हैं।
इसी बीच ओली ने मथुरा पर दावा ठोकते हुए बयान दिया है “भगवान श्रीकृष्ण नेपाल में पैदा हुए थे और असली मथुरा नेपाल में है।” ओली जिस प्रकार बयानों की गोली चला रहे हैं उससे तो आज-कल अमेरिका भी दहशत में है कि कहीं ओली नासा को भी नेपाल में न बता दे।
काशी-मथुरा मुक्ति की उठती चिंगारी के बीच ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि खुद को यदुवंशी बता कर अपना सीना ठोकने वाले हमारे चारापूंजी लालटेन प्रसाद के लाल और हरे तथा समाजवादी जेनरल डायर कठोर प्रसाद यादव के सुपुत्र मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर की मांग का समर्थन करते हैं कि नहीं। अगर नहीं तो इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं, काहे कि यही तो राजनीति है गुरु।
वहीं, ‘जय श्रीराम’ से सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेंंन करने वाली दीदी का ‘जय श्रीकृष्ण’ पर प्रतिक्रिया देखना भी मजेदार होगा जबकि बंगाल के घर-घर में कृष्ण (गोपाल) की पूजा होती है।
अंत मेंं कुछ पंक्तियाँ-
बाबर की तोप चली, औरंगज़ेब की तलवार चली
भाईचारे का ढोल बजाकर, कातिल घूमा था गली-गली
पर सुनो समय फिर लौटा है, अब हर हिन्दू बेबाकी है
अयोध्या तो बस झांकी है, अभी काशी-मथुरा बांकी है..
चलते-चलते आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनायें, राधे-राधे