लेफ्ट और लेफ्टिस्ट तो थे ही पर ये अलग से जमात पैदा हो गयी लिबरल- ये ना घर के है ना घाट के इन्हें बस लाइम लाइट में रहने की आदत है इसके लिए ये कुछ भी कर सकते है। क्या बोलना है किससे बोलना है कब बोलना है बखूबी जानते हैं पर ये नही जानते इनके बोलने से किसको फायदा होगा बस चंद वाह वाही के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठे है और इनकी बहुलता हर जगह है राजनीति, फिल्म जगत, स्कूलों, कॉलेजों, यूनिवर्सिटीज, समाज ।हर जगह पैठ है कुछ तो है अपने को एस्टेब्लिशमेंट में इनके साथ लगे पर अब इनके बिना इनका काम नही चल सकता तो कहा जाए बेचारे बन गए ट्रेनी लिबरल ऐसे ही तादाद बढ़ रही इनकी।
कुछ ट्रेनी लिबरल है जिनको ना सही से ट्रेनिंग मिली ना ही ये न ले पाए, ले पाए क्या लेना ही नही था, बस कूछ ही बाते सीखे, अपने कुतर्क पे टिके रहना और बिना बात बिना मतलब का सोशल मीडिया पर घपाघप अपने अब्रॉड वाले लिब्रलो का अधूरा और अपने मन का जिसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नही होता, शेयर करना फिर बोल दो तो कुतर्की पे उत्तर जाएंगे, जो उनका प्राइमरी काम है। अहं ब्रम्हास्मि बस किताबो में पढ़ा था इन्हें देख कर यकीन हो गया कैसे आदमी मद में चूर होके अपने को ही सब कुछ मान लेते हैं ये जो बोले सही ये जो बोले गलत और गलती से अपने बहस कर लिया फिर क्या आपको क्या क्या ना घोसित कर दे ये। पहली पंक्ति में खड़ा हर आदमी देश के लिए कुछ न कुछ जरूर करता है और देश का मान बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकता है पर ये इन्हें देश से क्या और देश होता ही क्या है इनके लिए यहा पैसे लाइम लाइट कम हुआ तो किसी और देश निकल लेंगे वहां तो कुछ न कुछ कर ही रहे होगे पर नजर यही होंगी क्योंकि वहा की बुराई कर नही सकते देश निकाला हो जाएगा तो यहाँ की करेंगे क्योंकि बाहर चले गए तो बड़े लिबरल कहलायेगे और ट्रेनी इनकी मिसाले भी देंगे।
करना कुछ नही है ढिढोरा बिल गेट्स वाला पीटते है। कभी आप ट्राय कर लो निराशा ही मिलेगी। मै ये नही समझ पाता हूं अगर सोशल मीडिया नही होता तो इनका क्या होता अजी होता क्या इनका दुकान बंद रहता ट्रेनी की ट्रेनिंग नही हो पाती और बेचारो का स्ट्रुगल समय बढ़ जाता फिर सड़क पर आते कहते सरकारें कुछ करती ही नही। भाई सरकारे करती तो बहुत है पर तुम्हे कुछ करना ही नही है। एक मुसलमान अपनी जाति का बुराई नही कर सकता नही वो किसी का साथ देते हैं पर एक लिबरल को देखो जिसे अपने मूल से कोई मतलब नही है ना मुसलमान इन्हें भाव देते हैं पर लगे हैं उनकी बेवजह भक्ति मे।
अब एक बात राजनीति में भी हैं । वामपंथ का जन्म हुआ कांग्रेस के खिलाफ, पहले भी था अंग्रेजों के खिलाफ पर वो अलग ही था। वामपंथ छोड़िये सारे दलों का जन्म ही कांग्रेस के खिलाफ ही हुआ पर आज ऐसा क्या हैं जो जानी दुश्मन थे आज गले लगे फिर रहे। खैर राजनीति को इसीलिए राजनीति कहा जाता है जिसका न को ईमान है न ही कोई स्पष्ट एजेंडा। खैर इसपे कभी बाद में लिखा जाएगा आते हैं लिब्रलो पर। ये लोग कभी सही को सही और गलत को गलत कहना नही सीखा बस सीखा अपना स्वार्थ। कभी आप किसी लिबरल को ये नही बोलते देखा होगा केरल में गलत हुआ बंगाल में गलत हुआ दिल्ली में कुछ गलत हुआ पर वही काम किसी बी जे पी शासित राज्यो में हो फिर देखो इनका कूदना डफली बजाना। इनके लिए इतनी यूनिवर्सिटी कॉलेज बने पर किसी को कोई ऐतराज नही क्योंकि लोग यही सोचते हैं अब तो सुधार जाए साले पर इन्होंने तो उसे भी वही बना लिया। आप जेनयू हो आओ या जामिया या अलीगढ़ यूनिवर्सिटी या जाधव पुर यूनिवर्सिटी बहुत है अभी तो। सरकार करोडो खर्च करती है पर रिजल्ट क्या ह 10% भाई इतना किसी लोकल या स्टेट यूनिवर्सिटी पे कर दो 70-80% रिजल्ट मिल जाएगा। पर ऐसा करना तो दूर बोलने मात्र से इनपे साप लोट जाएगा मरने मारने पर उतारू हक जाएंगे।
खैर समझाएं किसे जो समझना चाहे तब ना अब आप इनसे बहस करके देख लेना कभी ये लेख याद आएगा। अब तो डॉकिन्स, मैग्सेसे मिल गया सर्टिफिकेट के तौर पर, अब तो भाई चिर फाड़ देंगे। जावेद अख्तर अपने धर्म की रक्षा के लिए कुछ भी उल्टा सीधा बोले जिसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध ही नही है और वो बाते बिना सर पैर की थी पर क्योंकि उन्होंने इस सो कॉल्ड फासिस्ट माहौल में भी अपने धर्म को नही छोड़ा ऊपर से झूठ पे झूठ बोलते रहे, तो उन्हें अवार्ड मिल गया और उनको गर्व भी है इन चीजों का पर इन लिब्रांडो को कौन समझाए भाई तुम भी तो कर सकते हो ऐसा पर नही तुम्हे तो उल्टा ही करना है। साला ये अवार्ड देता को है मुझे तो उसका स्टेट ऑफ माइंड देखना है ऐसा तो नही सोते हुवे सपना देख कद लकी ड्रा निकल और दे दिया अवार्ड। खैर अवार्डों पर फिर कभी लिखा जाएगा।
आशा है कि थोड़ी बहुत बाते आप तक पहुची होगी आगे भी आती रहेगी बस आपका साथ मिलता रहे।
जय हिंद।