हिन्दू अब जाग रहा है। एक समय था जब कि कोई भी व्यक्ति हिन्दू धर्म के प्रति कुछ भी ऊट-पटाँग कह देता था, लिख देता था और हिन्दू समाज से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती थी। और यदि विहिप या बजरंग दल ऐसे लोगों पर कोई कार्यवाही करते थे तो हिन्दू ‘सभ्य-समाज’ (कथित) का अधिक पढ़ा-लिखा वर्ग ही उनकी भर्त्सना करने में लग जाता था। एक समय था जब पढ़े-लिखे मध्य वर्ग का हिन्दू किसी भी सार्वजनिक स्थल पर गर्व से यह कहने में झिझकता था कि वह हिन्दू है। पुरोगामित्व व सेकुलरवाद के मिथ्या श्रेष्ठ-बोध के चलते हिन्दू स्वयं ही धर्म का तिरस्कार करता था। जितना अधिक तिरस्कार, व्यक्ति उतना ही महान। फिर वह वर्ण-जाति व्यवस्था हो या सती या मंदिरों एवं यज्ञों में बलि अथवा कोई अन्य धार्मिक परम्परा, बिना इन प्रथाओं के सम्पूर्ण ज्ञान के ही अनेकों हिन्दू तथा विधर्मी हमारे सनातन धर्म को अपमानित करने और स्वयं को अन्यों से श्रेष्ठतर सिद्ध करने के लिए इनके विरुद्ध अनेकों बातें कह देते थे। परंतु अब और नहीं। अब हिन्दू समाज हर ऐसी बात को काटता है, धर्म की अवहेलना पर चुप नहीं रहता है। भले ही अपमान करने वाला कोई विधर्मी हो या कथित रूप से हिन्दू ही क्यों ना हो।
इस जागरण का एक कारण है २०१४ में माननीय नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में बनी प्रचण्ड बहुमत वाली भाजपा सरकार। अपितु अपने पहले कार्यकाल में भाजपा सरकार ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया और ना ही ऐसी कोई नीति बनाई जिसे विशुद्ध रूपसे कहा जाए कि वह हिन्दुओं के हित के लिए है, परन्तु इस सरकार की नीतियाँ पिछली सरकारों के जैसे हिन्दू-विरोधी नहीं थीं। साथ ही साथ नरेन्द्र मोदी एवं अन्य उच्च-स्तरीय नेता जैसे माननीय राजनाथ सिंह, अमित शाह आदि का गर्व के साथ अपनी हिन्दू आत्मता को सार्वजनिक जीवन में रखना। इस एक छोटी सी बात से सामान्य हिन्दू को यह आत्मविश्वास एवं साहस मिला कि वह जिन बातों को निजी कक्षों में साथियों और मित्रों के बीच ही कहता था, अब उन्हें अभय होकर कर सड़कों तक पर कह पा रहा है।
दूसरा कारण है कि सौ वर्षों के अंग्रेजी शासन एवं सत्तर वर्षों के सेकुलर वामपंथी शासन व शिक्षा के उपरान्त जो युवा हिन्दू अपने को अपनी जड़ों, अपने धर्म से पूर्ण रूप से कटा हुआ पाता है वह पुनः उनसे जुड़ने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए एक वर्ग गोवर्धन मठ तथा कांची के शंकराचार्यों को सुनता है, स्मृतियों-श्रुतियों एवं अन्य धर्मशास्त्रों को भी पढ़ने का प्रयास करता है। वह इतिहास, विशेष रूप से भारत पर इस्लामी आक्रमण, के बारे में शोध करता है। साथ ही आज का हिन्दू युवा अब्राहम के मजहबों और सनातन धर्म के बीच के परस्पर विरोध को भली-भाँति समझता है। यह युवा ‘सोशल मीडिया’ के माध्यम से और भी हिंदुओं से जुड़ता है। ऐसे युवाओं को ट्विटर की बोली में ‘ट्रैड’ भी कहते हैं। सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथ में इनके और दूसरे तत्वों के बीच संबंध पर के भट्टाचार्य जी पहले ही ऑपइंडिया पर लिख चुके हैं। संक्षिप्त में बस इतना ही कहूँगा कि वे अत्यंत मुखर तथा ग्लानिहीन होकर अपनी बात रखते हैं। अन्य वर्ग भी किसी प्रकार से इन जड़ों को हेरने का प्रयास कर रहें हैं।
हिन्दू समाज, प्रमुख रूप से समाज का युवा वर्ग जो १६ से ३० वर्ष का है, जागृति के मार्ग पर प्रसस्थ है। इनमें ट्रैड्स और अन्य सभी आते हैं। उन्हें अपनी सभ्यता व धार्मिक आत्मता और वैश्विक परिपेक्ष्य में भारत और हिन्दुत्व कि वर्तमान स्थिति तथा उचित स्थान की पूर्ण जागरूकता है। उनमें धर्म की रक्षा की ललक भी है लेकिन अपने सामान्य जीवन, पारिवारिक या दूसरे दायित्वों के त्याग के बिना ये कैसे करें यह उन्हें नहीं ज्ञात है। वे प्रायः यह पूछते हैं, “धर्म के लिए हम अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं?”। इससे उनका अभिप्राय यह कि व्यक्तिगत जीवन में धार्मिक सूचिता के अलावा बिना सामान्य जीवन छोड़े वे क्या कर सकते हैं। अतः इस लेख के माध्यम से मैं कुछ संस्थाओं के बारे में बताऊँगा जिनका समर्थन करके आप धर्म के उत्थान में सहयोग कर सकते हैं।
रीक्लेम टेम्पल्स (#ReclaimTemples):
यह कई अलग अलग संस्थाओं के द्वारा संचालित एक जन-भागीदारी वाला आंदोलन है। इसका मुख्य उद्देश्य टूटे-फूटे, गंदे हो चुके या प्रयोग से बाहर हो चुके मंदिरों का पुनरुद्धार है। इसके लिए वे क्षेत्र के स्थानीय हिन्दुओं कि सहायता से ऐसे मंदिरों की साफ-सफाई एवं जीर्णोद्धार करते हैं और उनमें पूजा-अर्चना पुनः आरंभ कराते हैं। यदि आपके क्षेत्र में कोई ऐसे छोटा या बड़ा मंदिर है जो गंदा, मैला या जीर्ण अवस्था में है तो अपने साथी मित्रों और भाइयों-बहनों-बच्चों के साथ मिल कर एक रविवार को स्वच्छता अभियान चलायें और उस मंदिर के पास रहने वालों को भी इसमें सम्मिलित करें। वहीं के किसी ब्राह्मण पुजारी से वहाँ विग्रह की पुनः प्राण-प्रतिष्ठा करवाएं। इसके लिए आप ट्विटर व फेसबुक के माध्यम से रीक्लेम टेम्पल्स से जुड़ सकते हैं।
इस आंदोलन की मुख्य संस्थाएँ कर्नाटक की ऊग्र-नरसिंह फाउंडेशन (UgraNarsimha Foundation) और केरल की क्षेत्र भूमि संरक्षण वेधी भारत (KBSV Bharat) हैं। कुछ ही समय पहले इन्होंने १९२१ के मोप्ला दंगों में मुसलमानों द्वारा ध्वस्त किए गए मलापुरम के तिरुर तालुक के प्राचीन मलयबाड़ी नरसिंह मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य किया है जिसमें ८-१० लाख की लागत आई, पर लगभग ६ लाख ही दान के माध्यम से उन्हें मिल सका। इस दौरान उन्हें मलापुरम में बहुसंख्यक मुस्लिमों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। निर्माण के दौरान मुस्लिमों ने मंदिर परिसर में गौ माँस फेंक कर बाधा डालने का भी प्रयास किया।
Would like to express our heartfelt gratitude to @Girishvhp , @AhmAsmiYodha and amazing individuals from across world who supported and contributed towards restoration of Malayambadi Narasimha temple.
Will email invitation to PunarPratishta ceremonies once dates are finalised. pic.twitter.com/t6temulVdV
— UgraNarasimha (@UgraNarsimha) December 8, 2019
अभी ये केरल के पट्टीथर, पालक्कड़ के प्राचीन श्री राम मंदिर के पुनर्निर्माण में जुटे हुए हैं और हिन्दू समाज से आर्थिक समर्थन माँग रहे हैं।
इसी के साथ वे केरल के थवानूर, मलापुरम में होने वाले प्राचीन माघ महोत्सव को पुनः आरंभ कर रहे हैं जो १७६६ में हैदर अली के आक्रमण के बाद से बंद हो गया था।
We would like to invite all followers of Sanatana Dharma to Maghamaka Mahotsav, the ancient river festival of Kerala.
Venue: Thavanur, Malappuram
Date: 10-13 Jan 2020
The festival was abruptly stopped in 1766 AD due to invasion of Hyder Ali.
Details: https://t.co/BOJ7xsJ2IH
— UgraNarasimha (@UgraNarsimha) December 7, 2019
इन संस्थाओं का आर्थिक समर्थन करें।
वैदिक भारत (VaidikaBharata):
यह मुख्यतः एक वैदिक गुरुकुल है। महर्षि पतंजलि ने ऋग वेद की २१ शाखाएं बताई हैं, जिनमें से आज मात्र २ बचीं हैं। इनमें भी शंखायन शाखा के पूरे भारत में मात्र २ वेदाचार्य हैं जो कि ८० वर्ष की आयु के हो चुके हैं। इस शाखा के पुनर्जीवन के लिए इन वेदाचार्यों से प्रसिक्षण लेकर इस शाखा की एकमात्र पाठशाला वैदिक भारत चला रहा है। इसके अतिरिक्त वैदिक भारत अनेकों दुर्लभ हस्तलिपियों एवं पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य भी करता है। वैदिक भारत की पाठशाला में ब्रह्मचारियों को वेद शिक्षा के साथ आधुनिक सिक्षा भी दी जाति है। दुर्भाग्यवश इनको धन व संसाधनों की बहुत कमी है। यदि आप इनके शुभ कार्यों में योगदान करना चाहते हैं तो यथा संभव दान करें। आप ब्रह्मचारियों के लिए पुस्तकें कलम इत्यादि से लेकर उनके भोजन, दूध, वस्त्रों आदि का प्रायोजन कर सकते हैं, अथवा यदि आपके पास कोई पांडुलिपि या हस्तलिपि हो तो उसे डिजिटल करने के लिए इन्हें दे सकते हैं। किसी अन्य प्रकार से सहायता करने के लिए आप इनसे संपर्क भी कर सकते हैं।
इस पांडुलिपि पर लिखा है- “भग्नपृष्टि: कटिग्रीवो बन्धमुष्टिरधोमुखः कष्टेन लिखितं ग्रन्थं यज्ञेन परिपालयेत्” – “मेरी पीठ भग्न हो चुकी है, उँगलियाँ काम नहीं करतीं, नेत्रों से सीधा दिखता नहीं है। फिर भी इन कष्टों में भी मैं यह ग्रंथ लिख रहा हूँ, इसके यज्ञ करना, इसकी रक्षा करना, इसका ध्यान रखना।”
सोचिए यदि हमारे पूर्वजों ने इतनी कठिनाइयों के बाद भी हम तक ऐसी अमूल्य धरोहर को विधित किया है, उसको सदियों के उन्मादी दुर्दान्त इस्लामी आक्रमणों के बाद भी किसी प्रकार इन्हे सुरक्षित रखा तो यह हमारा दायित्व है कि हम इसे नष्ट ना होने दें।
पीपल फॉर धर्म (People4Dharma)
यह धर्म के लिए न्यायिक युद्ध लड़ने वाली एक संस्था है। संभवतः आपने इनके एक सदस्य जे साई दीपक के बारे में पढ़ा या सुना हो। दीपक जी सबरीमला मंदिर के न्यायालय अभियोग से चर्चा में आए थे। पीपल फॉर धर्म हिन्दू हितों कि रक्षा के लिए न्यायिक मार्ग से लड़ता है। इन्हें आप आर्थिक समर्थन दे सकते हैं या अगर आप अधिवक्ता हैं तो इनसे जुड़ कर स्वयं भी हिंदुओं के लिए न्यायालयों में लड़ सकते हैं।
इन सभी के अतिरिक्त आप अपवर्ड (Upword), विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी आदि के जुड़ सकते हैं या उन्हें आर्थिक दान दे सकते हैं। चाणक्य ने कहा था धर्मस्य मूलं अर्थः। धर्म का मूल अर्थ है, बिना धन के धर्म का उत्थान संभव नहीं है। अतः अपनी क्षमता अनुसार धार्मिक कार्यों के लिए आर्थिक अंशदान अवश्य करें। और यदि आपके सामने किसी हिन्दू का धर्मांतरण हो रहा हो तो हस्तक्षेप करिए, उसकी विडिओ बनाइये और हो सके कन्वर्शन का प्रयास करने वाले विधर्मी के विरुद्ध पुलिस केस करिए।
लाठी, खंजर, तलवार या भाला खरीदिए व चलाना सीखिए:
भारत में वैध रूप से बंदूक खरीदना अत्यंत कठिन है। जिस प्रकार से मुसलमानों की संख्या बढ़ती जा रही है, और संख्या बल मिलते ही आक्रमणकारी हो जाने की इनकी प्रवृत्ति के चलते वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर में जो हुआ वह कहीं और दोहराया जाए। अतः प्रत्येक हिन्दू को स्वयं व परिवार की सुरक्षा में समर्थ होना अनिवार्य है। यदि संभव हो तो लाइसेन्स्ड बंदूक उपार्जित करें तथा उसके प्रयोग में दक्ष बनें अन्यथा लाठी, तलवार या भाला रखें और दक्षता से चलाना सीखें। किस दिन आपके सामने रक्त की प्यासी झबरीली दाढ़ी, उठे हुए पायजामे और जालीदार टोपी वाली भीड़ खड़ी हो जाए कहा नहीं जा सकता। इसलिए धर्म के प्रति सबसे बड़ी सेवा यह होगी कि हिन्दू समाज आवश्यकता पड़ने पर लड़ने के लिए उद्यत हो। गीता का सार यही है- “न दैन्यं न पलायनम्” – ना दुर्बल हो ना पलायन करो। यदि हम सभी स्थानों से पलायन करते जाएंगे तो एक समय और पलायन करने के लिए कोई स्थान ही नहीं रह जाएगा। हमें एक ऐसा सशक्त समाज बनना है जो कि किसी भी विषमता में डट कर लड़ सके, आत्मरक्षा कर सके।