रियल लाइफ और सोशल साइट्स पर दोनों ही जगह मेरे बहुत से दोस्त अपने आपको अक्सर ज्यादा सेक्युलर और मुझे संघी और या मोदी भक्त का तमगा देते रहते हैं. परन्तु उन सभी दोस्तों का कुछ मामलो में व्यवहार, चाहे मामला अफज़ल का हो, इसरत का हो कसाब का हो या याकूब मेनन का हो, या बटला हाउस का हो, कही से भी सेक्युलर नहीं होता.
उनके लिए अगर एनकाउंटर किया तो मोदी की पुलिस ने निर्दोष को मारा (स्टेट टेररिज्म) चाहे वो एनकाउंटर दिल्ली में कांग्रेस राज़ में ही क्यों न हुआ हो बाद में ये पता चले की वो निर्दोष नहीं थे. तो फिर लॉजिक (स्टेट किलिंग) एनकाउंटर क्यों किया, गिरफ्तार करना था (इसरत) अगर गिरफ्तार करके सज़ा दे कोर्ट तो उनका लॉजिक- कोर्ट बिक आया है (अफज़ल, याकूब, कसाब) ये जुडिशल किलिंग है. अगर सुप्रीम कोर्ट बार बार सुनवाई के बाद फांसी दे, और राष्ट्रपति भी माफ़ ना करे तो ये सब हिन्दुओं की चाल है, ये सब आरएसएस माइंडेड हैं.
भाई चाहते क्या हो इस देश में? वही, जो जे ऐन यू में भारत की बर्बादी के नारे लग रहे थे और ये तथाकथित स्वघोषित सेक्युलर इसे अभ्व्यक्ति की आज़ादी बता रहे थे.और फिर ये भी कहते हो की मोदी राज़ में बहुत इनटॉलेरेंस हो गई गई? और कितना टॉलरेन्स चाहिए इन्हे? देश के और टुकड़े करने देने का टॉलरेंस? अगर इनटॉलेरेंस होता तो ये कर पाते? पंजाब में भिंडरवाला को फिर से हीरो बनाने की चाल चली जा रही है, केवल वोट क लिए? अफज़ल, इसरत, याकूब को हीरो बना दिया. केवल वोट के लिए?
मोदी हेटिंग में इतने अंधे हो चुके हैं की ना अपना भला दिख रहा है ना देश का. और अगर ये इनका सेकुलरिज्म है, तो ये सेक्युलरसिम इन्हे मुबारक. कल को मैं मोदी सप्पोर्टर रहूँ ना रहूँ पर इन जैसा सेक्युलर नहीं बन सकता.