फिल्में मनोरंजन का एक साधन हैं,और अभिनेता अभिनय कर के लोगों का मनोरंजन करता है। अभिनेता का एक उद्देश्य यह भी है की वह मनोरंजन के साथ-साथ समाज को एक सकारात्मक संदेश भी दे। फिल्में समाज का आइना होती हैं और यह समाज में हो रहे अच्छे बुरे चीजों को दर्शाती हैं। निर्देशक अपने दर्शकों को एक निष्कर्ष तक पहुँचना चाहते हैं, एक ऐसे निष्कर्ष तक जिससे इस समाज का कुछ भला हो सके।हालाँकि यह बात और है की मनुष्य की प्रविर्ती होती है गलत चीजों के तरफ आकर्षित होने की और ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिसमे अपराधी रुपहले पर्दे पर निभाए हुए अभिनेता के किरदार से प्रेरित हो कर अपराध करता है।
कच्ची उम्र में तो अभिनेता ही आपका आदर्श होता है और आप उसका ही अनुकरण करते हो। पर्दे पर निभाए हुए कलाकार की तरह ही कपड़े पहनना, ठीक वैसा ही अपने बालों को बनवाना या फिल्मों में कहे गए संवादों को दोहराना, ये सब अनुकरण करने का आम तरीका है। चाहे ७०-८० के दशक में राजेश खन्ना,देवानंद को लेकर दीवानगी हो या एंग्री यंग मैन के तौर पर अमिताभ बच्चन को पसंद किया जाना हो। ९० के दशक में शाहरुख खान से प्रेरित हुए प्रौढ़ आज भी आपको अपनी दीवानगी के किस्से सुनते हुए मिल जायेंगे।
ऐसे अभिनेता जब अपने अभिनय से बहार निकल कर अपने अंदर की भावनाओं को प्रकट करते हैं तो कई बार यह बहुत सारे लोगों को नगवार गुजरता है। हालिया दिनों में लोकसभा चुनाव के कारन बहुत सारे लोगों ने अपना वक्तव्य व्यक्त किया जिसमे कई अभिनेता भी हैं। स्वरा भास्कर, जावेद अख्तर का कन्हैया कुमार को समर्थन करना, कमल हसन का हिन्दू आतंकवाद को लेकर नाथूराम गोडसे को आतंकवादी कहना, अनुराग कश्यप का सरकार के खिलाफ अपने विचार रखना, रणवीर शोरी का सरकार के साथ खड़े होना ऐसे कई उदाहरण हैं।
बॉलीवुड का दो खेमे में बट जाना, एक सरकार के खिलाफ वोट की अपील करता है एक मोदी सरकार को वोट करने की अपील करता है, यह भी इस लोकसभा चुनाव का एक अविश्मरणीय हिस्सा रहा है। पहले भी कई अभिनेता राजनीती में आये है अभी भी आ रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे, लेकिन गौर करने वाली बात यह है की पहले के अभिनेता इतने बर्हिमुखी नहीं हुआ करते थे, या अगर होते भी थे तो सोशल मीडिया का इतने बड़े पैमाने पर मौजूद नहीं होना उनके लिए लाभकारी होता था। अब जब हर चीज मोबाइल पर उपलब्ध है तो छोटी से छोटी बात भी तूल पकड़ लेती है।
ऐसे माहौल में या तो एक अभिनेता को सचेत रहना चाहिए या अपने विचारों को सोच समझ कर प्रकट करना चाहिए, क्यूंकि न जाने उस अभिनेता के कितने अनुयायी होंगे होंगे और महज दो शब्दों के कारन दिग्भ्रमित हो जायेंगे। अभिनेता भी एक इंसान है और इंसान से ही गलतियां होती हैं लेकिन जब आपके ऊपर जिम्मेदारी आती है और आपके हर चीज से कोई न कोई प्रेरित होता है तो आपको अपनी गलतियों का ध्यान रखना पड़ेगा और यह भी ख्याल रखना पड़ेगा की आपके कहे वक्तव्यों का किसी को आघात न पहुँचे। वैसे भारत देश में आप कुछ भी कहोगे तो किसी न किसी को ठेस लगेगी ही।
कुछ अभिनेता अपने राजनितिक लाभ लेने के चक्कर में जहर उगलने लगे हैं।कमल हसन इसका वर्तमान उदाहरण हैं। हिन्दू आतंकवाद को साबित करने के लिए नाथूराम गोडसे का नाम लेना हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलने जैसा ही है। वैसे तो आतंकवाद का कोई जात या धर्म नहीं होता लेकिन इसको किसी मजहब के साथ जोड़ना कहाँ तक सही है इसका निर्णय कोई नहीं कर सकता। आतंवाद के ज्यादातर घटनाओं में एक ही मजहब के लोग दोषी पाए गए हैं लेकिन फिर भी इसको एक ही मजहब के रंग से पोत देना गलत होगा।हिन्दू आतंकवाद अगर बोला जाता है तो इसको गलत साबित करने के लिए मुस्लिम आतंवाद का उदाहरण पेश किया जायेगा और इससे समाज में हिन्दू और मुस्लिम के बीच की खाई और बढ़ेगी।
अब इसको बढ़ावा कौन दे रहा है? मोदी या कमल हसन?स्वरा भास्कर ने भी साध्वी प्रज्ञा के लिए हिन्दू आतंवाद का जिक्र किया था।तो आप ही बताइए हिन्दू मुसलमान के बीच दरार कौन पैदा कर रहा है स्वरा या मोदी? मोदी ने तो कभी भी मुस्लिम आतंवाद शब्द का प्रयोग नहीं किया लेकिन इन अभिनेताओं को हिन्दू आतंवाद कहने की खुली छूट है, और इन्ही अभिनेताओं से प्रेरित हो कर लोग भी इस हिन्दू मुस्लिम के झगड़े में फस के रह जाते हैं। सवाल इन अभिनेताओं से करना चाहिए की उनको क्या हक है हिन्दू, मुस्लिम, धर्म, राजनीती के बारे में टिपण्णी करने का और अगर उसे वो अपनी अभिव्यक्ति की आजादी मानते हैं, तो, वो व्यक्त करें जिससे समाज में एकजुटता बढे न की समाज विभाजित हो।
समाज में जहर घोलना ही अभिव्यक्ति की आजादी है तो ऐसी आजादी से बेहतर है परतंत्र रहें। वैसे भी ऐसे लोग अपने नकारात्मक विचार धारा के अधीन ही हैं और उन्हें केवल समाज में नकारात्मकता ही फैलानी आती है।भले ही अभिनेता के अभिनय के लिए आप उसे पसंद करें लेकिन ऐसे अभिनेता की विचारधारा को न ही अपनाये तो बेहतर।