इतिहास में ऐसे पल दुर्लभ ही होते हैं जब व्यक्ति से बड़ा उसका नाम हो जाता है। अगर भारतीय इतिहास के दुर्लभतम व्यक्तित्वों को देखे तो भी यह सबों को नसीब नहीं होता। तुलसीदासजी नें “राम” का नाम श्री राम से बड़ा कहा। बुद्ध एवं महावीर भी इसी श्रेणी में आयेंगे। आधुनिक भारत पर दृष्टि डाले तो गाँधी का नाम स्वयं महात्मा गाँधी से भी बड़ा हैं। इन सबों ने अपने पुरुषार्थ से अपने नाम को इतिहास मे अमर ही नहीं वरण अपने नामों की काया इतनी बड़ी कर दी कि पीढ़ी दर पीढ़ी स्वयं को इन नामों से जोड़ती चली आई।
अगर इस कालचक्र की दिशा वर्तमान की ओर मोड़े तो एक आनंदमय अनुभूति होती है मोदी नाम की। परन्तु, अगर मोदीजी की खानदानी पृष्ठभूमि पर नजर डाले तो जो तुलनात्मक अध्ययन की चाह मन को उत्साहित कर रहा है उस पर प्रश्नचिह्न लगना स्वभाविक है कारण कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हो, या बुद्ध अथवा महावीर या फिर राष्टपिता गाँधी, इन सभी के समाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि कुलिन हैं। पर, अगर हम वर्तमान प्रधानमंत्री मोदीजी की बात करें तो एक अति समान्य पृष्ठभूमि से तालुक रखतें हैं। गरीबी की संघर्ष ने उन्हे मानवीय मूल्यों को समझकर राष्ट्र एवं नीतियों की ज्ञान से अनुभूति कराया।
पर, क्या उन विभूतियों से मोदीजी की तुलना की कुचेष्टा हास्यापद हैं? वेदानुसार, व्यक्तित्वों की तुलना का मजबूत आधार कर्म है। और कर्म मे प्रगाढ़ता लाने का सुगम मार्ग अनुशासन होकर गुजरता है। बीजेपी में एक जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर अपनी निष्ठा एवं रचनात्मक शैली से अटलजी के मन: भाव मे प्रवेश कर 2001 मे गुजरात राज्य का मुखिया बनने का अवसर मिला। मुखिया पद को सेवक पद मे तब्दील कर, गुजरात की अनुपम सेवाकर अपने नाम को हर गुजरातियों के श्वास में प्रवाहित करवा दिया। अपनी राजकीय सेवा भाव से उन्होंने गुजरात माॅडल की ऐसी अमित छाप छोड़ी कि सम्पूर्ण भारतवर्ष उन्हे अपना बनाने को लालायित हो उठा। मोदी-मोदी की वह आँधी चली की पूरा भारतवर्ष मोदीमय हो गया।
मई 2014 में वें प्रधानमंत्री बन गए। विश्व इतिहास में कई ऐसे मोके आये जब प्रभावी वक्ता जन मन में आश की दीप जलाकर जन-मानस के मन भाव मे प्रवेश कर अपने नेतृत्व की शिखा पर चढ जाता है। संभवतः सभी राजनीतिक आलोचक इसी आशा के तत्व को मोदीजी के राजनीतिक उत्थान का कारण बताया। उनके सफल चुनावी बोल- अच्छे दिन आनेवाले हैं – जन सैलाब बन जन मानष के अन्तःकरण में बस गया। अच्छे दिन के विश्वास तले पूरे हिन्दुस्तान में सर्वोपरी नेता के रूप मे स्वीकृति मिली। पर,एक नेता से एक विचार बनने का सफरनामा यहाँ से शुरु हुई।
मोदीजी ने अपने नेतृत्व से सरकारी योजनाओं में जन-भागीदारी बढ़ाकर अत्यधिक योजना को जन-आन्दोलन मे तब्दील कर दिये ।स्वच्छता अब सबों का हक एवं दायित्व बन गया। गंगा की सफाई जन जन की चेतना बन गई। नोटबंदी- कालाधन एवं भ्रष्टाचार- पर विरोधात्मक प्रतीक बन गया।
सबों का हो घर
हर घर में बिजली
हर परिवार का हो खाता
बैंक हो गई अपनी।
कई दशकों तक जो सपना था, अब अपना होने लगा था। एक नई भारत की एक नई सुबह, मोदी मे हर जन, जन जन में मोदी सार्थक हो रहा था। पाँच साल बाद आज “मोदी” नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक क्रांति का नाम है।
जन जन की चेतना का नाम है मोदी
बच्चों बच्चों का विश्वास है मोदी
संतों के आशीर्वाद का फल है मोदी
खेत खलिहान का छाव है मोदी
सेना प्रतिकार है मोदी
घर घर की पहचान है मोदी
हर भारतीयों की शान है मोदी
मोदी साहब वृद्ध होते जा रहे, पर मोदी नाम लोगों में उर्जा का संचार करता। मोदीजी सख्त प्रशासकीय छवि के है, पर इनका नाम बच्चों में नटखटपना प्रवास करवाता है। समर्थक हो, आलोचक हो या समालोचक हो, मोदीजी के ईतर “मोदी” नाम की लहर पर चर्चा की केन्द्रबिंदु रखते है। भारतीय राजनीतिक इतिहास मे पहली बार महिलाओं को भी रैली तक खींचा है तो मोदी के नाम ने। हर चायवाला खुद को मोदी और चौकीदार खुद मे मोदी देखने लगा है। मोदी नाम भारतीय जन -मानष की संघर्ष की कहानी बन चूका है। मोदी नाम की ध्वनि जन जन की आत्मा में बस चूका है शायद मोदी से बड़ा मोदी का नाम हो चूका है?