आजकल मीटू चलन में है। कुछ दिन पहले एक अभिनेत्री अमेरिका से आयी और अपने साथ मीटू का तूफान ले आयी। यह तूफान पहले अमेरिका में आया था, अब हिंदुस्तान में। आते ही इस तूफान ने अच्छे-अच्छों को उड़ा दिया। बड़े मुद्दे भूल गए, सब मीटू में उलझ गए।
हर व्यक्ति आजकल दहशत में है, कि कहीं उसका मीटू न हो जाये। कुछ चुटकुले व्हाट्सएप पर आ रहे हैं, जैसे कि जो कल तक आपकी स्वीटु थी, हो सकता है वो आज आपकी मीटू हो जाये या फलां व्यक्ति मृत्यु के बाद अपने पीछे एक पत्नी, दो बच्चे व पचास मीटू छोड़ गए, इत्यादि।
आलम यह है, कि रोज़ एक मीटू का बम फूटता है, और कोई घायल हो जाता है। कुछ केस असली होंगे, कुछ ऐंवेंई। इतने नाम आ गए है कि सड़क पर कोई घूमता दिखे तो लगता है यह भी मीटू का केस है। कोई युवती अगर तोते को मिट्ठू कर के बुलाये तो भी लोगों को लगे यह मिटू कह रही है। यह एक दहशतगर्द शब्द हो गया इस महीने।
डर तो ऐसा मेरे अंदर भी ऐसा समाया है कि दो दिन पहले जब मैं मॉल गया तो सब लड़कियों से दूर-दूर ही चला। जब एक से टकराया तो सबसे पहले यह देखा कि यह कोई लड़की तो नहीं, शांति मिली कि आदमी था। भई, आज कुछ न हो, पर कल ट्वीटर पर आपका नाम ट्रेंड हो जाये, कि यह रहा एक और दरिंदा। गलत तरीके से छुआ। झूठे केस तो वैसे भी थोक में मिलतें है। नज़र हटी दुर्घटना घटी। इसलिए हम संभल के चले। ज़माना वैसे भी खराब है। पुलिस सवाल बाद में पूछेगी, पहले अंदर कर देगी। मुफ्त की पब्लिसिटी मिले सो अलग।
मीटू तो साब ऐसा छाया कि जो लड़कियाँ-औरतें मीटू पर बड़ी-बड़ी बातें कर रहीं थी, उनके घर में ही मीटू निकल आया। और अब उनके यहाँ लंबी चुप्पी छायी हुई है। एक शब्द नहीं। नीरव (जिसमे रव न हो, मोदी नहीं)।
पूरा बॉलीवुड इस मीटू के चपेट में आ गया है। अब तक सिर्फ बारिश ही ऐसी चीज़ थी जो मुम्बई में तहलका मचाती थी, अब मीटू भी शुरू हो गया। बीएमसी भी अब क्या करे। फिर मीटू आया राजनेताओं पर। एक विदेश मामलों से जुड़े मंत्री साहब पर भी मीटू लग गया। उन्होंने मानहानि का दावा ठोक दिया। नेताजी ने इस्तीफा दे दिया। जिन्होंने आरोप लगाए उन्होंने कहा कि यह उनकी नैतिक जीत है। है?
नैतिक जीत भी आजकल बहुत होती है। यूँ कोर्ट में शायद हार जाए, पर नैतिक जीत ले ली। एक पत्रकार महोदय तो कब तरह-तरह के व्यंजन खाते-खाते मीटू के शिकार हो गए, पता ही नहीं चला। कल तक दिल्ली की गलियों में देखते थे इन्हें, अब मीटू में देख रहें है। अब बस लोग उन्हें ‘दुआ’ में याद रखें।
बीस साल-तीस साल पुराने मामले निकल के आ रहे हैं। जवानी के जोश में आपने एक तोप चलाई तीस साल पहले, गोला अब आकर आपके ऊपर ही गिर रहा है। हाल यह कि 20 साल का नवयुवक हो या 70 साल का बुजुर्ग, सब अपने-अपने मीटू की चिंता में हैं। कब कहाँ से कोई मीटू टपक जाए। पता नहीं कौन सा गड़ा मुर्दा कब उखड़ जाए, और वे पूरी दुनिया के सामने एक्सपोज़ हो जाये। वैसे भी दुनिया ज़ालिम है, और सोशल मीडिया तो कटार है ही। कुछ नहीं भूलती।
हमारे यहाँ प्रधानमंत्री जी को एक रेडियो समझा जाता है। बटन घुमाओ और रेडियो चालू हो जाये। कहीं कुछ हो, प्रधानमंत्री को बोलना चाहिए। पहले राफेल कार्यक्रम चल रहा था, अब मीटू पर बोलो। बस बोलो। प्रधानमंत्री जवाब ही नहीं देते। तो लोग कहने लगे कि आप मीटू के विरोध में है।
इधर एक अंग्रेजी चैनल तो इस कोशिश में लगा है कि मीटू के आरोपी को सबसे पहले फाँसी दो, फिर आरोप सिद्ध करो। अच्छा हुआ न्याय व्यवस्था कोर्ट देखता है, नहीं तो यह चैनल ज़िल्लेइलाही हो गया होता। अब चैनल वाले एक-एक व्यक्ति को पकड़-पकड़ के पूछ रहे हैं कि उनकी क्या राय है मीटू पर, जवाब दिया तो ठीक, नहीं तो यह बाईट मिल जाये कि फलां नेता सवालों से बचता दिखा। अब आप तो हर किसी से सवाल पूछो, ये क्या बात हुई।
हमारे एक साथी ने एक लड़की को आई लव यू कहा, लड़की ने भी थोड़ा शरमाते हुए जवाब दिया मी टू। बस भाई को काटो तो खून नहीं। बहन-बहन कहते हुए राखी लेने दौड़े। पर मालूम पड़ा कि रक्षाबंधन तो गुज़र गया और अगले साल ही आएगा। अब वे ख़ौफ़ज़दा है।
पर असल बात यह है, कि इस मुहिम से उन लड़कियों की मुसीबत कितनी बढ़ेगी जो नौकरी करने बाहर जाती है? जिनके पास और कोई उपाय नहीं है? आपने ट्विटर पर कुछ लिख दिया, और आप शायद मुक्त भी हो गए लिख के, पर सड़क पर कोई लड़की कभी फँस गयी, तो क्या उसकी मदद की जाएगी तब? लड़कियों को नौकरी देने पर भी विचार किया जाएगा, अगर मिल गयी, तो हो सकता है कि उससे दूर रहा जाये।
गलत बात का विरोध होना चाहिए, करवाई भी होनी चाहिए, सज़ा भी मिलनी चाहिए, ताकि दोबारा ऐसा न हो। पर जब आप किसी के कंधे पर बंदूक रख कर चलाते हो, तो फिर आप पर भी उँगलियाँ उठती है। और इसकी गोली किसी का जीवन तबाह कर सकती है, इसलिए इसे बहुत सोच समझकर चलाएं तो ही अच्छा।