ऐसा लगता है कि राहुलजी का मूत्र और उनके समर्थकों द्वारा उसका सहर्ष पान 2019 के आमचुनाव का एक प्रमुख मुद्दा होने जा रहा है। कतिपय भाजपाइयों द्वारा अभी से अगले चुनाव को चाय और मूत्र के बीच चुनाव के तौर पर प्रचारित करने का अभियान शुरू कर दिया गया है जिसके आने वाले दिनों में और तेज़ होने की सम्भावना है। कांग्रेसी खेमा इस अभियान से अभी से असहज दिख रहा है, और उससे भी असहज दिख रहे हैं हमारे सम्पादकजी, जो एक सेकुलर मिजाज़ के व्यक्ति हैं और मोदी से बेहद दुःखी रहते हैं, पर जब मुझ जैसे कनिष्ठ रिपोर्टर को उन्होंने कमलनाथजी का इंटरव्यू करने का आदेश दिया तो मुझे घोर आश्चर्य हुआ। हमारे सम्पादकजी सेकुलर होने के कारण बुद्धि पर अपना एकाधिकार समझते थे और बड़े नेताओं के इंटरव्यू खुद ही लेना पसंद करते थे। अभी तक मुझे उन्होंने जिला-स्तर के ऊपर के किसी नेता के पास नहीं भेजा था, अब अचानक कमलनाथ का इंटरव्यू लेने का आदेश सुनकर पहले तो मैं चौंक गया, पर तभी मुझे याद आया कि सम्पादकजी कुछ मीटू वाले मामलों में फँसे हुए थे और आजकल बाहर कम ही निकल रहे थे। मैंने पहले सम्पादकजी का ही इंटरव्यू करने का फ़ैसला किया।
“क्यों?” कमलनाथ का इंटरव्यू क्यों?”- मैंने पूछा।
सम्पादकजी पहले तो चश्मे के अंदर से मुझे घूरते रहे जैसे पहचानने की कोशिश कर रहे हों, फिर अचानक चश्मा उतार कर मेज पर रखते हुए बड़प्पन के साथ बोले: “यही तो कमी है आजकल के लड़कों में! न अख़बार पढ़ते हैं, न सोशल मीडिया पर ख़बरें देखते हैं, बस चले आते हैं पत्रकार बनने। जाकर पहले कमलनाथजी को गूगल पर सर्च करो और देखो कि वह क्यों चर्चा में हैं, फिर मेरे पास आओ।”
पर मैं बेशर्मी के साथ वहीँ खड़ा रहा और बोला: “सर, मैं कमलनाथजी को जानता हूँ। वह मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री-पद के उम्मीदवार हैं, पर ऐसे उम्मीदवार तो और भी हैं, फिर उन्हीं का इंटरव्यू क्यों?”
सम्पादकजी ने जल्दी से मुझे चलता कर देने के उद्देश्य से कहा: “तुमने आरवीएस मणि का नाम सुना है?”
“आरवीएस मणि?”- मैंने कहा: “कहीं यह कोई मीटू वाली तो नहीं? कहीं कमलनाथजी पर भी तो किसी ने मीटू नहीं कर दिया?”
अब सम्पादकजी का धैर्य जवाब दे गया। आजकल मीटू का ज़िक्र छिड़ने पर उनके साथ ऐसा ही हो जाता था। पहले तो गुस्से में आकर बोले: “जाकर गूगल पर देखो!” फिर शायद समय बचाने की गरज से बोले: “आरवीएस मणि गृह मंत्रालय का कोई जूनियर अधिकारी था जिससे कमलनाथ ने कभी कोई काम करने के लिए कहा जिसके लिए उसके मना करने पर ज़ोर डालने के लिए कहा कि लोगबाग राहुलजी का पेशाब पीने के लिए तैयार हैं, और तुम उनके लिए इतना सा काम नहीं कर सकते?! अब उस आरवीएस मणि के बच्चे ने अपने गृह मंत्रालय के अनुभवों पर एक किताब लिख डाली है और एक घण्टे का एक वीडियो जारी किया है जिसमें उसने इस घटना का ज़िक्र किया है।”
“फिर?”- मैंने मासूमियत से पूछा।
मेरी मासूमियत का उनपर वाजिब असर हुआ और उनके माथे की त्यौरियाँ उतर गयीं और उनकी आवाज़ में भी मुलायमियत आ गयी।
“भाजपा वालों को तो तुम जानते ही हो कैसे घटिया किस्म के लोग हैं। अब इसी को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर चुनावी मुद्दा यह बन गया कि कांग्रेसी राहुलजी का मूत्र पीते हैं अथवा पीने के लिए तैयार रहते हैं, तो कांग्रेस के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होगा, इसलिए तुम फ़ौरन जाकर कमलनाथजी से मिलो और देखो कि चुनावी मुद्दा बनने से पहले कैसे इस किस्से को ख़त्म किया जा सकता है।”
“पर सर” मैंने उसी मासूमियत के साथ कहा: “कमलनाथजी जैसे बड़े नेता के पास तो आपको खुद जाना चाहिए; मुझे क्यों भेज रहे हैं?”
“इसे अपनी ट्रेनिंग का हिस्सा समझो”, उन्होंने आराम से समझाना शुरू किया, पर तभी शायद मेरी आँखों में उन्हें शरारत की चमक दिख गयी और वह एकदम से उबल पड़े: “जितना कहा जा रहा है उतना करो; ज्यादा काबिल बनने की कोशिश मत करो! जाते हो या मैं किसी और को भेजूँ?”
बात को सँभालते हुए मैंने कहा: “मेरा मतलब था सर, कि क्या कमलनाथजी मुझसे मिलेंगे?”
-“मेरी बात उनसे हो गयी है, वह तुम्हारा कार्ड देखते ही तुम्हें बुला लेंगे; अब दफ़ा हो जाओ, और हाँ, जाने से पहले थोड़ी तैयारी कर लेना। वह मणि वाला वीडियो तो देख ही लेना।”
मैं अदब के साथ संपादकजी के कमरे से बाहर निकल गया। वीडियो मैंने पहले ही देख रखा था। किसी और तैयारी को अनावश्यक जान मैंने कैमरामैन और एक सहायक को साथ लिया और सीधा कमलनाथजी के यहाँ दस्तक दी। जैसा कि पहले से तय था, कमलनाथजी ने तुरंत मुझे बुला लिया, और वहाँ पहले से मौजूद लोगों को थोड़ी देर के लिए बाहर बैठने को कहा, और मुझे इंटरव्यू शुरू करने का इशारा किया।
“कमलनाथजी”, मैंने इंटरव्यू शुरू किया: “आजकल एक वीडियो चर्चा में है जिसमें एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी कहता हुआ दिख रहा है कि आपने उससे कुछ ऐसा कहा कि कांग्रेसी राहुलजी का पेशाब भी पीने के लिए तैयार रहते हैं। इस पर आपको क्या कहना है?”
ज़ाहिर है, कमलनाथजी इस सवाल के लिए पहले से तैयार थे। उन्होंने तुरन्त जवाब दिया: “यह सब संघियों की चाल है। राफेल मुद्दे पर राहुलजी के आरोपों का वह जवाब नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए उन्होंने यह नया नाटक शुरू किया है।”
“पर सर, यह आरोप तो किसी आरवीएस मणि ने लगाया है।”-मैंने कहा।
“आरवीएस मणि की औकात क्या है? मामूली अंडर सेक्रेटरी था। मुझे तो याद भी नहीं कि मैं उससे कभी मिला भी था।”
“यह बेहतर है”, मैंने अपनी बात जारी राखी: “तो आप कह रहे हैं कि आप उससे कभी मिले, पर उसने तो एक किताब भी लिख दी है जिसमें उसने इस घटना का ज़िक्र किया है। किताब हाथोंहाथ बिक रही है और लोग उसकी एक-एक बात को सच मान रहे हैं। अगर आप उससे कभी मिले ही नहीं तो उस पर मानहानि का दावा क्यों नहीं करते? मंत्रालय में हर आने- जाने वाले की एन्ट्री दर्ज होती है, और जगह-जगह वीडियो कैमरे लगे होते हैं; मणि का झूठ फ़ौरन पकड़ा जाएगा, और आपकी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी।”
कमलनाथजी का आत्मविश्वास थोड़ा डगमगा गया; थोड़ा हिचकिचाते हुए उन्होंने कहा: “शायद एक बार मैं उससे मिला था।” एक अल्पविराम के बाद उन्होंने आगे कहा: “शक तो मुझे उसी समय हुआ था कि वह संघ से प्रभावित है, पर अब तो यह बिल्कुल पक्का है कि वह संघ से मिला हुआ है। अवश्य वर्तमान सरकार में किसी ने उसे द्वारा-धमका कर उससे यह कहलवाया है!”
– “हो सकता है वह संघी हो, पर इसे बाद में देख लेंगे; अभी तो आप यह बताइए: क्या आप यह कह कि आप मणि से मिले, पर कांग्रेसियों के राहुलजी का मूत्र पीने हेतु तत्पर रहने की कोई बात आपने उनसे नहीं की?”
– “बिल्कुल नहीं की!” उन्होंने मुट्ठियाँ भींचते हुए कहा। “यह सब संघियों की चाल है।”
– “इसका मतलब हुआ कि आपको सबकुछ याद है कि आपने उनसे क्या-क्या बातें कीं। तो दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डालिए और यह बताइए कि आपने उनसे यह कहा कि राहुलजी का कृपापात्र होने के लिए भी कांग्रेसी उनका मूत्र पीने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे?”
अब कमलनाथजी बिल्कुल घबरा गये, और बोले: “मैंने ऐसा कब कहा?”
– “तो क्या आप मान रहे हैं कि राहुलजी के कृपाकटाक्ष के लिए कांग्रेसी उनका मूत्रपान करने के लिए सहर्ष तैयार रहते हैं?”
कमलनाथजी के चेहरे पर घबराहट के स्थान पर क्रोध के भाव आ गये। उन्होंने पूछा: “क्या तुम्हें दिग्विजय सिंह ने भेजा है?”
– “तो क्या अब आप यह कह कि दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री होने के लिए के लिए राहुलजी का मूत्रपान करने के लिए तैयार हैं, पर आप इसके लिए तैयार नहीं हैं?”
कमलनाथजी ने अब शराफ़त का चोला बिल्कुल उतार फेंका, और मुझे धक्का देते हुए बोले: “फ़ौरन निकलो यहाँ से। न जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं पत्रकार बन कर! गार्ड, इनको बाहर निकालो यहाँ से!”
किसी तरह हम अपना सामान और जान दोनों बचाकर वहाँ से भाग निकले, और इस तरह किसी बड़े नेता का मेरा पहला इंटरव्यू समाप्त हुआ।