Saturday, November 2, 2024
HomeHindiगाजी मियाँ का उर्स नहीं, महाराजा सुहेलदेव का विजय दिवस मनाइए

गाजी मियाँ का उर्स नहीं, महाराजा सुहेलदेव का विजय दिवस मनाइए

Also Read

Saurabh Bhaarat
Saurabh Bhaarat
सौरभ भारत

इस 10 जून को भी सैयद सालार उर्फ़ गाजी मियाँ का सालाना उर्स बहराइच में मनाया गया। गैर-मुसलमानों अर्थात काफिरों को मारने वाले हत्यारों को जिहादी इस्लाम में ‘गाजी’ के रुतबे से नवाजा जाता है। सैयद सालार एक इस्लामी हमलावर था जिसने हजारों हिन्दू पुरुषों, महिलाओं, बच्चों की नृशंस हत्याएं की, इसीलिए इसे भी ‘गाजी मियाँ’ कहा जाता है।

वर्तमान उत्तर प्रदेश के देवीपाटन और श्रावस्ती क्षेत्र(जिसे तब सतरिख क्षेत्र कहा जाता था) में 11वीं सदी में गाजी मियाँ के हमलावर अभियान के दौरान उसकी इस्लामी फ़ौज ने सैकड़ों हिन्दू मंदिरों का विध्वंस, हजारों हिन्दू पुरुषों का कत्ल और हिन्दू महिलाओं का बलात्कार करते हुए इस समूचे शांतिपूर्ण क्षेत्र को अपने अमानवीय अत्याचार से रौंद डाला। गाजी मियाँ ने बाराबंकी में अपनी छावनी बनाई और चारों ओर अपनी फौजें भेजी।

उसके आतंक से त्रस्त होकर मानिकपुर, बहराइच आदि के 24 हिन्दू राजाओ ने महान गौ-रक्षक वीर प्रतापी महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में जून की भरी गर्मी में गाज़ी मियां की सेना का सामना किया और उसकी सेना का संहार कर दिया। हिंदुओं से लड़ाई में गाजी मियाँ इस बात के लिए कुख्यात था कि वह अपनी सेना के आगे हमेशा गौवंशियों को छोड़ देता था ताकि हिन्दू योद्धा गौवंशियों को बचाने के चक्कर में रणनीतिक रूप से कमजोर पड़ जाएं। परन्तु महाराजा सुहेलदेव ने बड़ी चतुराई से सभी गौवंशियों को गाजी मियाँ के शिविर से युद्ध से पहले ही छुड़ा लिया। यह युद्ध 11वीं सदी में इस्लामी आतंक के विरुद्ध विभिन्न जातियों के योद्धाओं की अभूतपूर्व हिन्दू एकता की मिसाल है। इसी युद्ध में महाराज सुहेलदेव ने गाजी मियाँ का वध किया।

महाराजा सुहेलदेव को राजभर और पासी दोनों ही जातियों के लोग अपनी जाति से जोड़ते हैं। वर्तमान जाति-विभाजन की दृष्टि से एक दलित नायक होने के बावजूद भी महाराज का नाम आज के नवबौद्ध अम्बेडकरवादी कभी भी नहीं लेते क्योंकि इससे उनकी ‘दलित-मुस्लिम एकता’ वाली आधारहीन बकवास परवान न चढ़ेगी। विधानसभा चुनाव 2017 से पहले भाजपाइयों ने जरूर महाराज की स्मृति कई यात्राएं निकालीं थीं परन्तु सत्ता में आने के बाद वे भी कभी यह नहीं सोचते कि महाराज के सम्मान में भव्य स्मारक बनवाकर बहराइच में चलने वाले गुलामी के उत्सव को बंद करवाते। मेरी दृष्टि में तो मुम्बई में शिवाजी स्मारक या गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति के ही टक्कर का भव्य स्मारक महाराजा सुहेलदेव की स्मृति में बनना चाहिए। खैर, भुलक्कड़पना तो सत्ता का चरित्र है। हमें बार-बार इन्हें स्मरण दिलाते रहना होगा। राजनीतिक लेख न होने के कारण इस बात को ज्यादा विस्तार नहीं दे रहा हूँ।

बहरहाल, बाद में भारत में इस्लामी शासन का प्रभाव बढ़ने लगा और कालांतर में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने बहराइच स्थित सूर्य कुण्ड नामक पवित्र तालाब को पाटकर उस पर एक दरगाह और कब्र गाज़ी मियाँ के नाम से बनवा दी। यह मूल रूप से महर्षि बालार्क का आश्रम था जिसे मजार में बदल दिया गया, जैसे श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर तोड़कर बाबरी बना दी गई थी। इस पर हर जून के महीने में सालाना मेला लगने लगा। मेले में एक कुण्ड में कुछ बहरूपिये बैठने और कुछ समय के बाद लाइलाज बीमारियों को ठीक करने का ढोंग रचाने लगे। पूरे मेले में चारों तरफ गाज़ी मियां के चमत्कारों का शोर मचता और उसकी जय-जयकार होने लग जाती। आज भी अपने धर्म-संस्कृति से विमुख हो चुके हजारों की संख्या में मूर्ख हिन्दू स्वास्थ्य, संतान, नौकरी, व्यापार में लाभ इत्यादि की दुआ एक सड़ चुकी मुर्दा कब्र से मांगते है, शरबत बांटते है, चादर चढ़ाते हैं और उसी गाज़ी मियां की याद में कव्वाली गाते हैं जिसने उन्हीं के पूर्वज पुरुषों की हत्याएं और पूर्वज महिलाओं के बलात्कार किए। आत्महीनता की ऐसी त्रासद कथा कदाचित ही कहीं और सुनने-देखने को मिले। विडम्बना ही है।

परन्तु अब समय के साथ जागरूकता भी आई है। गुलामी के काल में अपनी विवशता के कारण हम हिन्दू व्यवस्थित ढंग से भले अपने महापुरुषों के इतिहास को तथ्यवार संकलित न कर पाएं हों और आजादी के बाद भी भले इतिहास लेखन पर मार्क्सवादियों का कब्जा हो गया हो जिन्होंने हिन्दू योद्धाओं की उपेक्षा और इस्लामी आतंकियों महिमामण्डन किया हो परन्तु फिर भी श्रुति-स्मृति परम्परा के वाहक हमारे समाज ने लोककथाओं में महाराजा सुहेलदेव की स्मृति को मिटने नहीं दिया। महापुरुषों के बारे में अपनी पूर्वज पीढ़ी से सुनकर अपनी वंशज पीढ़ी को सुनाते रहने की परम्परा जीवित रही। आपका भी अनुभव होगा कि आपने बीआर चोपड़ा का महाभारत या रामानन्द सागर का रामायण बहुत बाद में देखा होगा लेकिन उससे पहले ही रामायण-महाभारत की महान गाथाएं अपने दादा-दादी या नाना-नानी से सुन चुके रहे होंगे।

सूचना-संचार के इस क्रान्तिकारी दौर में श्रुति-स्मृति की वह हिन्दू परम्परा अब फलित हो रही है। सैयद सालार उर्फ़ गाजी मियाँ के मरने के दिन को अगर कुछ लोग उर्स मनाकर मेला लगा रहे हैं तो स्वाभिमानी लोगों ने इसी दिन को महाराजा सुहेलदेव के विजय दिवस के रूप में मनाना आरम्भ किया है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और उ.प्र. सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर के प्रयास इस सन्दर्भ में प्रशंसनीय हैं। आप भी हर वर्ष गाजी मियाँ के वध-दिवस(10 जून) को विजय दिवस के रूप में मनाइए। स्वयं भी जागरूक होइए और समाज को भी जागरूक करते रहिए। महाराजा सुहेलदेव विजय दिवस की आप सभी को शुभकामनाएं। जय सुहेलदेव।

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

Saurabh Bhaarat
Saurabh Bhaarat
सौरभ भारत
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular