यह चुनावी परिणाम साफ संकेत हैं कि बड़े-बड़े मीडिया गिरोहों, बौद्धिक संस्थानों, वामधारा से प्रदूषित अकादमिक मंचों द्वारा फैलाया गया वितण्डा एक चीज है और आम जनता के मूल्य, मानक, सोच और वास्तविकता बिल्कुल दूसरी चीज।
इंदिरा की आँख में आँख डालकर उन्हें सर से पांव तक झूठी कहने वाले और कांस्टीट्यूशन क्लब में अम्बेडकर और राजेंद्र प्रसाद के बगल में सोनिया गांधी की तस्वीर देखकर उसे उखाड़ फेंकवाने वाले जार्ज से वंशवाद की चाटुकारिता करने वाला हर कांग्रेसी हद दर्जे की घृणा करता था।
यदि इंडियन स्टेट के कर्ताधर्ताओं (चाहे नेता हों या प्रशासन या न्यायालय) को हिंदुत्व की इन विविध सुंदरताओं की रत्ती भर भी समझ होती तो सबरीमाला जैसे मूर्खतापूर्ण निर्णय न आते।
आए दिन हिंदू मान्यताओं की ना सिर्फ़ मज़ाक उड़ाई जाती हैं बल्कि उनको पिछड़ा और नीचतम कह के उनकी इज़्ज़त भी उतरी जाती हैं: और इन सब में सुप्रीम कोर्ट भी सहभागी बन रही है