जॉर्ज साहब नहीं रहे। मैं समाजवादी तो नहीं लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस इस देश के एकमात्र ऐसे समाजवादी नेता रहे जिनके लिए मन मे सदा आदर भाव रहा। एक समय था जब इंदिरा गांधी जैसी भ्रष्ट तानाशाह के खिलाफ जॉर्ज की एक आवाज पर पूरे देश की ट्रेन रुक जाती थी। इंदिरा की आँख में आँख डालकर उन्हें सर से पांव तक झूठी कहने वाले और कांस्टीट्यूशन क्लब में अम्बेडकर और राजेंद्र प्रसाद के बगल में सोनिया गांधी की तस्वीर देखकर उसे उखाड़ फेंकवाने वाले जार्ज से वंशवाद की चाटुकारिता करने वाला हर कांग्रेसी हद दर्जे की घृणा करता था।
इसी घृणा के चलते अटल जी की सरकार में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज के खिलाफ कांग्रेसियों द्वारा ताबूत घोटाले जैसा निहायत ही झूठा और मनगढ़ंत आरोप मढ़ा गया, उन्हें कफनचोर जैसी अपमानजनक गालियाँ दी गईं। कारगिल युद्ध मे जवानों की गिरती लाशों को सम्मानजनक ढंग से रखने के लिए पर्याप्त संख्या में ताबूत न होने के कारण आपात स्थिति में बिना टेंडर के ही ताबूत खरीदने का आदेश जॉर्ज फर्नांडिस ने दिया क्योंकि यदि टेंडर निकालते तो कई दिन लगते और तब तक खुले में शवों का अंबार लग जाता जो शहीद जवानों के साथ-साथ पूरे देश के लिए अपमानजनक होता। लेकिन नीच कांग्रेसियों ने बिना टेंडर के ताबूत खरीदने की प्रक्रिया को घोटाला कहकर प्रचारित किया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ताबूत खरीदी प्रक्रिया में घोटाले जैसा कुछ नहीं हुआ और सारे आरोप राजनीति से प्रेरित थे।
लेकिन दुःख की बात यह थी कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को सुनने के लिए जॉर्ज साहब चेतना में नहीं थे। उन्हें अल्जाइमर की बीमारी हो चुकी थी जो उनकी मृत्यु तक बनी रही। इस प्रकार अपनी अंतर्चेतना में वो अपने ऊपर लगाए गए घटिया आरोपों की पीड़ा में ही चले गए। सुप्रीम कोर्ट में झूठ पकड़े जाने के बावजूद भी किसी निर्लज्ज कांग्रेसी ने अपने कुकृत्य के लिए माफी नहीं मांगी।
दुःखद यह भी रहा कि एक ओर तो कांग्रेस की भ्रष्ट और वंशवादी राजनीति के विरुद्ध जॉर्ज फर्नांडिस जीवन भर लड़ते रहे, दुर्भाग्य से दूसरी ओर उनके ही मौकापरस्त चेले कालांतर में ‘सेकुलरिज्म’ के नाम पर उसी कांग्रेस की गोद मे जा बैठे, चाहे वो मुलायम रहे हों या लालू, चाहे शरद यादव और यहाँ तक कि कुछ समय के लिए नीतीश कुमार भी। अपने चेलों की दगाबाजी के बावजूद भी जब तक शरीर ने साथ दिया तब तक जॉर्ज “कांग्रेस मुक्त भारत” की दिशा में ही पूरी ऊर्जा के साथ लगे रहे।
बहरहाल, जॉर्ज साहब हमेशा ईमानदारी, सादगी और लोकतांत्रिक प्रतिरोध की राजनीति के प्रतीक बन रहेंगे। बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि जॉर्ज साहब के सरकारी बंगले में कोई गेट नहीं था। ये उनका अपना स्टाइल था कि जनता और जनप्रतिनिधि के बीच गेट जैसे अवरोध क्यों! कांग्रेसी भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, कुशासन और तानाशाही के खिलाफ “अखिल भारतीय चक्काजाम” और “भारत बंद” जैसे उग्र विरोधी तौर-तरीकों के रचयिता का नाम था जॉर्ज। आंदोलन, जुझारूपन, मुखरता और उसूलों पर लड़-भिड़ जाने का दूसरा नाम था जॉर्ज।
राजनीतिक बन्दी को गिरफ्तारी की सूचना दे देना ही गिरफ्तारी मान ली जाती है लेकिन आपातकाल में जॉर्ज को जिस तरह लोहे की जंजीरों में जकड़ कर गिरफ्तार किया गया मानों उस समय पूरी कांग्रेस उनसे थर-थर कांप रही हो। अब जॉर्ज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जॉर्ज के संघर्षों और कांग्रेसियों की कायरताजन्य क्रूरता का ऐतिहासिक उदाहरण बनी यह तस्वीर सदा-सर्वदा हमारे मन-मस्तिष्क में अंकित रहेगी।
प्रणाम जॉर्ज साहब। विनम्र श्रद्धांजलि।