Saturday, November 2, 2024
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काशी विश्वनाथ मंदिर और बाह्य अक्रान्ताओ का आक्रमण

१२ ज्योतिर्लिंगों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रथम ज्योतिर्लिंग अविनाशी काशी के विश्वनाथ मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही माना जाता है

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मेरे सनातन धर्म के महान अनुयायियों जैसा की आप को विदित है की दैवीय और असुरी शक्तियों के मध्य अनादिकाल से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सञ्चालन के संदर्भ में मतभेद रहे हैं और इसी कारण असुरी शक्तियों ने सदैव दैवीय शक्तियों के विनाश के लिए अनवरत प्रयास किया है| चूँकि हम मानव प्रजाति अर्थात सनातन धर्म के अनुयायी अनादिकाल  से ही यज्ञ और अनुष्ठानो के माध्यम से दैवीय शक्तियों अर्थात कल्याणकारी शक्तियों की आराधना करके उन्हें और शक्तिशाली बनाते रहे हैं, इसीलिए असुरी शक्तियों अर्थात विध्वंशकारी शक्तियों के आँखों में कंटक की भांति चुभते रहे हैं|

कोई भी युग हो, असुरी शक्तियों ने सदैव हम मानवों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करके बलपूर्वक हमें देवताओ से दूर करने का प्रयास किया है और  इसके लिए उन्होंने साम, काम, दाम, दंड और  भेद सभी कारको का प्रयोग और दुरुपयोग किया है| त्रेतायुग में  जब इन असुरों ने ऋषियों के यज्ञ अनुष्ठान (उसमे मांस या  मदिरा फेंककर, थूक कर या विष्ठा इत्यादि उड़ेलकर) नष्ट करने, ऋषि मुनियो और अन्य सामान्य मानवो की हत्या करने, उनके मंदिरो को तोड़ने, उनके गुरुकुल को समाप्त करने और मानव समाज का विध्वंश करने की अति कर दी, तब इनके विनाश के लिए महर्षि विश्वामित्र ने अयोध्या के महाराज दशरथ की सहायता ली और उनके परमप्रतापी पुत्रों प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण ने असुरों का वध करके मानव प्रजाति को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई|

मित्रों, त्रेतायुग से लेकर आज तक असुरों का वो अत्याचार और दुराचार जारी है| आज भी असुरी शक्तियां हम सनातन धर्मियों को अनेक प्रकार से प्रताड़ित करती हैं, हमारे मंदिरो को तोड़कर, उन्हें लूटना, अकारण बड़ी संख्या में सनातन धर्मियों की सामूहिक हत्या कर देना, किसी क्षेत्र में  बहुसंख्यक होते ही वहां के सनातन धर्मियों को डराकर, लालच देकर या विवश करके उन्हें अपनी आसुरी मंडली में सम्मिलित करवा लेना और ना मानने पर उन्हें उस क्षेत्र को छोड़कर कंही और जाने की रक्तपिपासु चेतावनी देना इत्यादि ये इन असुरी शक्तियों का दैनिक कार्य है|

आइये इसी क्रम में हम देखते हैं कि मंदिरों के नगर या विश्व के सबसे प्राचीन नगरों में से एक के नाम से सुविख्यात काशी में स्थित काशी विश्वनाथ जी के मंदिर के साथ कुछ पलों को जीने का प्रयास करते हैं|

वैसे तो सनातन धर्म में कुल ६४ ज्योतिर्लिंगों का वर्णन प्राप्त  होता है और इसमें १२ ज्योतिर्लिंग सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं| इन १२ ज्योतिर्लिंगों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रथम ज्योतिर्लिंग अविनाशी काशी के विश्वनाथ मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही माना जाता है| काशी विश्वनाथ मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण में भी प्राप्त होता है|

इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन काशी में हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ “श्रीएकनाथी भागवत” लेखन पूर्ण किया था, और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी थी|

इस मंदिर का सर्वप्रथम जीर्णोद्धार इसा से ११ वी शताब्दी पूर्व इक्ष्वाकू वंश के महान सम्राट और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र द्वारा करवाया गया था| इसके पश्चात इसका नवीनीकरण गुप्त वंश के सबसे महान सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने शाशनकाल के दौरान करवाया था| इस मंदिर की आभा और पवित्रता की देखते ही बनती थी|

इस्लामिक अक्रान्ताओ  का आगमन

जैसा की हम सबको विदित है की लगभग ७१२ ई के आसपास अरब के सबसे शक्तिशाली इस्लामिक अक्रान्ता हज्जाज बिन युसूफ ने अपने ही एक रिश्तेदार इस्लामिक अक्रान्ता  मोहम्मद बिन कासिम को भयानक सेना के साथ सिंध (आज पाकिस्तान में स्थित है और स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ रहा है) के राजा दाहिर सेन से युद्ध  करने के लिए भेजा| राजा दाहिर सेन ने बड़ी वीरता से युद्ध किया परन्तु तत्कालीन भितरघातियों की सहायता से इस्लामिक अक्रान्ता  मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर सेन को पराजित कर दिया और फिर आरम्भ हुआ इस्लामिक अक्रान्ताओ का तांडव जिसके फलस्वरूप मंदिरों को तोड़ना, सनातनियो को हत्या करना, उन्हें लूटना, उनकी औरतो और बेटियों का सामूहिक शीलभंग कर उनको अपमानित करना और उन्हें इस्लामिक अक्रान्ता बनने के लिए विवश करना इत्यादि जैसी अनेक भयानक क्रियाएं आरम्भ कर दी गयी|

वर्ष ११९४ ई. में शिहाबुद्दीन उर्फ़ मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी (जो १२वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था और  १२०२ ई. में अपने भाई गियासुद्दीन मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात, ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान बना।) ने तराइन के युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक (जो बाद में दिल्ली का सुल्तान बना और गुलाम वंश की स्थापना की) के माध्यम से काशी के विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण करवाया और मंदिर को न केवल तोड़ा अपितु मंदिर के खजाने को भी जी भर कर लूटा|

इसके पश्चात स्थानीय निवासियों के सामूहिक प्रयास से एक बार फिर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया और फिर एक बार इस मंदिर की भव्यता और पवित्रता  इस्लामिक अक्रान्ता के ह्रदय में  घात करने लगी और अंतत: वर्ष १४४७ ई. में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ( १३८९ ई. में, जौनपुर के एक अफ्रीकी गवर्नर मलिक सरवर ने स्वयं को जौनपुर का सुल्तान घोषित कर दिया, उसके पश्चात, वर्ष १३९९ ई में उसका  दत्तक पुत्र मलिक करनफल उसका  उत्तराधिकारी बना, जिसने  मुबारक शाह की उपाधि धारण की, इसके पश्चात वर्ष १४०२ ई  में उसके  छोटे भाई इब्राहिम को  उसका उत्तराधिकारी बनाया गया, इसी असुर इब्राहिम शाह का पुत्र महमूद शाह था ) ने मंदिर पर आक्रमण करके इसे तहस नहस कर  दिया और वक्त मंदिर को लूटना नहीं भुला और जमकर लूटपाट मचाया|

डॉ A S Bhatt ने अपनी किताब “दान हारावली” में इस तथ्य का प्रकटीकरण करते हुए बताया है कि, वर्ष १५८५ई में राजा टोडरमल ने  विद्वान श्री नारायण भट्ट की सहायता से एक बार फिर मंदिर का पुननिर्माण करवाया|

बताया जाता है की, उस वक्त इस मंदिर के निर्माण में लगभग रूपये ३५ लाख का खर्च आया था| जब यह मंदिर निर्मित होकर तैयार हुआ तो यह एक आश्चर्य की भांति था और इसकी ख्याति दूर सुदूर तक विस्तारित हो चुकी थी| इस मंदिर की भव्यता और पवित्रता एक बार पुन: इस्लामिक अक्रान्ताओ  को पीड़ा पहुंचाने के लिए पर्याप्त थी | इस्लामिक अक्रान्ता प्रजाति, सनातनधर्मियों के दैवीय शक्तियों की और प्रतिबद्धता को देख भयानक रूप से शत्रुता पाले हुए थे और वर्ष १६६२ ई. में  शाहजंहा नाम के इस्लामिक अक्रान्ता ने इस भव्य और पवित्र मंदिर को तोड़ने के लिए अपनी सेना भेज दी, परन्तु सनातनधर्मियों के व्यापक विरोध के कारण इस मंदिर को तोड़ने में सफलता नहीं प्राप्त हो सकीय तो असुरों ने काशी के लगभग ६५ मंदिरो का सर्वनाश कर दिया |

अब तक इस्लामिक अक्रान्ताओ  में से सबसे भयानक और क्रूर अक्रान्ता औरंगजेब का काल आ चूका था (जिसने अपने अब्बू शाहजँहा को कैद में तड़पा तड़पा कर मार डाला तथा उससे पूर्व इस्लामिक अक्रान्ता प्रजाति में मानवीय गुणों के साथ पैदा हुए अपने बड़े भाई दारा शिकोह का कत्ल करवा दिया )| इस भयानक और क्रूर इस्लामिक अक्रान्ता ने दिनांक १८ अप्रैल १६६९ को एक फरमान जारी करके काशी विश्वनाथ के इस भव्य मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया | आपको बताते चले की इस आदेश की प्रति आज भी  कलकत्ता के एशियाटिक लाइब्रेरी में मौजूद है|

इस भयानक और क्रूर औरंगजेब के समकालीन इतिहासकार हुए हैं, जिनका नाम “साकी मुस्तइद खां” है, इन्होने अपनी किताब “मसीदे आलमगीरी” में उक्त आदेश और इसके पश्चात हुए काशी विश्वनाथ मंदिर के भयानक विध्वंश का वर्णन किया है| यही नहीं औरंगजेब को २ सितम्बर १६६९ में मंदिर तोड़ेने का कार्य पूरा हो चूका है, इसकी सूचना दी गयी|

इसी क्रूर और महाभयानक औरंगजेब ने ज्ञानवापी कुंड को घेरते हुए ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया जो मंदिर के टूटे अवशेषो पर ही बनाया गया और मंदिर के अवशेष  आज भी चीख चीख कर इस तथ्य को प्रमाणित कर रहे हैं | 

नोट :-म आपको इस तथ्य से भी अवगत कराते चले की वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के नेता श्री सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब “Sunrise Over Ayodhya Nationhood in our Times” के page no. १०३ में उद्धरित चैप्टर जो काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ा है , में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है की वो एक भव्य मंदिर है, जिसे मोहम्मद गोरी, महमूद शाह, शाहजँहा और औरंगजेब द्वारा अपने अपने समय पर तोड़ा और लूटा गया |

मराठा महायोद्धाओं दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होल्कर ने वर्ष १७५२ से १७८० के मध्य मंदिर की मुक्ति के कई प्रयास किये, परन्तु इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ही एक बार फिर इस पवित्र मंदिर का जीर्णोद्धार करने में सफल हुई| बाद में पंजाब के शेर महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर पर स्वर्ण छत्र का निर्माण करवाया| नेपाल के राजा ने भी इस मंदिर के प्रांगण में  नंदी जी के विशाल प्रतिमा की स्थापना करवाई| ज्ञानवापी का मंडप ग्वालियर की महारानी बैजाबाई द्वारा बनवाया गया|

अंग्रेजो का राज्य स्थापित हो जाने के पश्चात दिनाक ३० दिसम्बर १८१० को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी Mr. Watsan ने “वाईस प्रेसिडेंट इन कौंसिल” को पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर सनातन धर्मियों को देने लिए कहा, परन्तु ये बात कभी आगे नहीं बढ़ पाई|

इसके पश्चात वर्ष २०२१ ई में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री और विश्व के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने इस मंदिर का पुन : जीर्णोद्धार करवाया और इसकी प्राचीन भव्यता और पवित्रता स्थापित करने का प्रयास किया परन्तु इसकी पवित्रता तभी वापस आ सकती है जब इस प्रांगण को स्पर्श करने वाले ढांचे को इस मंदिर से कंही दूर स्थापित कर दिया जाये और ज्ञानवापी परिसर औरंगजेब से मुक्त करा लिया जाये|

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