Saturday, July 27, 2024
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पत्रकारिता; कल, आज और कल

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पत्रकारिता शब्द अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का हिन्दी रूपांतरण है। ‘जर्नलिज्म’ शब्द ‘जर्नल’ से निर्मित है और इसका अर्थ है ‘दैनिकी’, ‘दैनंदिनी’, ‘रोजनामा’ अर्थात जिसमें दैनिक कार्यों का विवरण हो। आज जर्नल शब्द ‘मैगजीन’, ‘समाचार पत्र‘, ‘दैनिक अखबार’ का द्योतक हो गया है। ‘जर्नलिज्म’ यानी पत्रकारिता का अर्थ समाचार पत्र, पत्रिका से जुड़ा व्यवसाय, समाचार संकलन, लेखन, संपादन, प्रस्तुतीकरण, वितरण आदि होगा। हमेशा परिवर्तित होनेवाले जीवन और जगत का दर्शन पत्रकारिता द्वारा ही सम्भव है। परिस्थितियों के अध्ययन, चिन्तन-मनन और आत्माभिव्यक्ति की प्रवृत्ति और दूसरों का कल्याण अर्थात् लोकमंगल की भावना ने ही पत्रकारिता को जन्म दिया। पत्रकारिता लोकतन्त्र का अविभाज्य अंग है।

पत्रकारिता की परिभाषा

पत्रकारिता को अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किया गया है। पत्रकारिता के स्वरूप को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण परिभाषायें इस प्रकार हैं:-

न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी : प्रकाशन, सम्पादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है।

डॉ. अर्जुन : ज्ञान आरै विचारों को समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारों के कार्यों, कर्तव्यों और लक्ष्यों का विवेचन होता है। पत्रकारिता समय के साथ-साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है।

डॉ. बद्रीनाथ : पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है।

सी. जी. मूलर : सामायिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं ठीक-ठीक प्रस्तुतीकरण होता है।

जेम्स डब्ल्यू कैरी : संस्थाओं या लोकतंत्र की भावना के बिना, पत्रकार; प्रचारक या मनोरंजन करने वाले बन जाते हैं। लोकतंत्र के लिए जुनून एक आवश्यक बंधन है जो पत्रकारों का जनता के साथ होना चाहिए, क्योंकि वे परस्पर संवैधानिक संस्थाएं हैं।

भारत में पत्रकारिता

भारतवर्ष में आधुनिक ढंग की पत्रकारिता का जन्म अठारहवीं शताब्दी के चतुर्थ चरण में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में हुआ। 1780 ई. में प्रकाशित हिके (Hickey) का “कलकत्ता गज़ट” कदाचित् इस ओर पहला प्रयत्न था। हिंदी के पहले पत्र उदंत मार्तण्ड (1826) के प्रकाशित होने तक इन नगरों की ऐंग्लोइंडियन अंग्रेजी पत्रकारिता काफी विकसित हो गई थी।

1873 ई. में. भारतेन्दु ने “हरिश्चंद मैगजीन” की स्थापना की। एक वर्ष बाद यह पत्र “हरिश्चंद चंद्रिका” नाम से प्रसिद्ध हुआ। वैसे भारतेन्दु का “कविवचन सुधा” पत्र 1867 में ही सामने आ गया था और उसने पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण भाग लिया था।

पत्रकारिता का स्वरुप (कल, आज और कल)

पत्रकारिता कई बदलावों से गुज़री है, जबकि पत्रकारिता की अभिव्यक्ति का मूल हमेशा मौजूद रहा है। अपने परिश्रम के साथ एक माध्यम से दूसरे माध्यम में विकसित होते हुए वर्तमान की पहचान बनाई है, छपाई से लेकर आगे तक का सफर इसी कड़ी का हिस्सा है। पत्रकारिता हमारे समुदायों का बुनियादी ढांचा है, था और हमेशा रहेगा। जैसे-जैसे सोशल मीडिया का प्रचलन बढ़ रहा है, पत्रकारिता एक और नया रूप लेती जा रही है।

कल की पत्रकारिता : इतिहास पर नजर ड़ालें तो स्वतंत्रता के पूर्व की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति ही था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई है। उस दौर में पत्रकारिता ने परे देश को एकता के सूत्र में बांधने के साथ-साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से जोड़े रखा। आजादी के बाद निश्चित रूप से इसमें बदलाव आना ही था।

आज की पत्रकारिता : आज इंटरनेट और सूचना अधिकार ने पत्रकारिता को बहु-आयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते ही प्राप्त की जा सकती है। पत्रकारिता वर्तमान समय मे पहले से अधिक सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी बन गई है। अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता की पहुंच का उपयोग सामाजिक सरोकारों और समाज के भले के लिए हो रहा है लेकिन कभी-कभार इसका दुरुपयोग भी होने लगा है।

अब स्नैपचैट, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर का जमाना है ये सभी ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जो अब पत्रकारिता की दुनिया को काफी प्रभावित कर रहे हैं तथा उसे नये तरीके से चला रहे हैं। हालांकि सोशल मीडिया जनता के लिए आसानी से उपलब्ध तो है, पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि यह सच्ची पत्रकारिता करता है। ऐसा लगता है कि अब पत्रकारिता उन लोगों के लिए एक साधन बन गई है जो विनाशकारी सोच के साथ काम करते हैं तथा अपनें काम में गपशप, घोटालें, तथा मनोरंजन जैसी चीजों का समावेश करते हैं और जो गंदगी में लिपटे रहना चहाते हैं। पत्रकारिता मुक्त होनी चाहिए।

परन्तु अभी भी कई ऐसे प्रकाशन और पत्रकार हैं जो लोगों के लिए सच्ची और प्रामाणिक खबरे तैयार करते हैं। उन्हें दर्शकों के रूप-रंग, उनके रहन-सहन, जाति आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता।

भविष्य की पत्रकारिता : पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। इसने लोकतंत्र में यह महत्वपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा इसे दिया है। लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका का पालन करे। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निर्वाह करे।

पत्रकारिता मर नहीं रही है वह अपना स्वरूप बदल रही है अब वह दूसरे आयाम में जा रही है। कल की पत्रकारिता बीत चुकी है, आज की पत्रकारिता चल रही है और विकसित हो रही है और कल की पत्रकारिता अभी बाकी है।

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