Thursday, April 25, 2024
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भाजपा से विपक्ष को सीखना चाहिए

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumarhttps://muckrack.com/abhishekkumar
Politics -Political & Election Analyst

वो कहते हैं ना सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता हैं, भाजपा ने ये साबित कर दिखाया। याद कीजिए 2014 से पहले की भाजपा को, एक ऐसी पार्टी जिसमें जीत की बहुत ज्यादा ख्वाहिश नहीं दिखती थी, जो महज संयोग पर निर्भर करती थी। आडवाणी की रथयात्रा के बाद ले-देकर वह ‘राम’ के फ़ोर्मुले पर निर्भर थी। जब भी कोई चुनाव नजदीक आता, वह ‘राममंदिर’ को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा देती थी। जीत का फोर्मुला इतना घिस-पिट चुका था न तो उसकी कोई गंभीरता रह गईं थी और न ही साख। इसी दरमियान पार्टी के एक राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते पूरी दुनिया ने कैमरे पर भी देखा था।लेकिन 2014 के बाद का जो घटनाक्रम रहा, उसमे भाजपा ने एक नई इबादत लिख दी, उसने जो पहला पाठ पढाया, वह यह कि पॉलिटिक्स कोई पार्ट टाइम जॉब हो ही नहीं सकती।

इन सारी बातों का जिक्र इसलिए, क्यूंकि देश की सबसे बड़ी पार्टी और ताकतवर पार्टी बन चुकी भाजपा को हमने देखा था कैसे तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद नगर निगम चुनाव में उसने अपने शीर्ष नेतृत्व को झोंक दिया था, यह एक नया परिदृश्य था, किसी राज्य के महज एक नगर निगम के चुनाव में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी इस तरह से मोर्चा ले रही थी, जैसे वो आम चुनाव का हिस्सा हो। विपक्ष ने इस नए प्रयोग का मजाक भी उड़ाया और आलोचना भी की। लेकिन उनका ये व्यवहार शुतुरमुर्ग की मानिंद कहा जायेगा। शुतुरमुर्ग के बारे में कहा जाता हैं कि जब तूफान आने वाला होता हैं तो वह अपना सिर रेत में छुपा लेता हैं ताकि उसे ये दिखे नहीं तूफान आने वाला हैं। हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भाजपा ने दूसरा पाठ ये सिखाया कि कोई चुनाव छोटा नहीं होता, क्यूंकि बड़े चुनाव का रास्ता छोटे चुनाव से ही होकर गुजरता हैं। भाजपा ने 150 वार्ड वाली हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में 35.56 % वोट शेयर के साथ 48 सीटें जीतकर धमाकेदार एंट्री मार दी थी। जिस तेलंगाना राज्य का गठन कांग्रेस ने किया था वहां पर दो विधानसभा चुनाव हो चुके हैं जिसमें कांग्रेस की बुरी हार हुई थी, हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था।

‘आराम हराम है’ बना सूत्र वाक्य

भाजपा ने हाल ही में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और त्रिपुरा सहित चार राज्यों में दोबारा से सरकार बनाई हैं,एक राज्य का चुनाव खत्म होता नहीं कि भाजपा का अगले राज्य में डेरा जम जाता हैं। चार राज्यों के बाद अब अगर सबसे ज्यादा प्रतिष्ठापूर्ण मुक़ाबले होने हैं तो वो गुजरात और हिमाचल। कोई विपक्ष का नेता यह बता सकता हैं कि पिछले छः महीने के दौरान उसने गुजरात और हिमाचल को कितना वक़्त दिया या उसके पास इन दोनों राज्यों के चुनाव के लिए कोई ख़ाका हैं? यकीनी तौर पर उसका जबाब नहीं में ही होगा। उधर भाजपा के लिए अमित शाह खुद मोर्चा संभाले हुए हैं। चुनाव घोषित होने तक अमित शाह का ज्यादातर वक़्त गुजरात और हिमाचल में ही बीतेगा। हिमाचल प्रदेश के भाजपा संगठन ने अपने कार्यकर्ताओं को 2 दिन का अवकाश दिया हैं, जो भी जरुरी कार्य करने हैं वो निपटा ले उसके बाद चुनाव समाप्त होने तक कोई छुट्टी नहीं मिलेगी। विधानसभा सीटों को जोन में बांट दिया हैं, हर जोन एक राष्ट्रीय पदाधिकारी के ज़िम्मे सौंप दिया गया हैं। राष्ट्रीय पदाधिकारी प्रदेश के सांसद, विधायक, जिलाध्यक्ष, पूर्व जिलाध्यक्ष,जिला प्रभारी और बूथ अध्यक्षों  से सीधा संपर्क में रहेंगे। विपक्ष शायद तब सक्रिय होगा, जब चुनाव की तारीख घोषित हो जाएगी और पहला कदम होगा कि महागठबंधन बने।

भाजपा जब अपने उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप दे रही होगी, तो विपक्ष के ख़ेमे में गठबंधन का हिस्सा बनाने को हाँ और ना चल रही होगी.अगर राष्ट्रीय परिदृश्य से देखे तो पता चलता हैं की भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अगले कुछ महीनें देश को मथते हुए नजर आएगें।अलग- अलग राज्यों में पहुंचकर वे अपने को सांसदों और विधायकों तक ही सीमित नहीं रखेगें, बल्क़ि बूथ अध्यक्ष और बूथ समितियों के साथ बैठकें भी करेगें। 2019 में जिन लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, उन क्षेत्रों में संगठन की मजबूती पर उनका फोकस रहेगा। विपक्ष के लिए यह सब सिखाने वाली बातें हैं।अगर नहीं सीखता हैं तो फिर निराशा के भंवर से निकल पाना उसके लिए आसान नहीं होगा।

लेख – अभिषेक कुमार (Political & Election Analyst)

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