वैशेषिक दर्शन मे महर्षी कणाद ने कहा हे कि लैकिक एवं परलौकिक सुख प्राप्ति का मार्ग ही धर्म है। लौकिक हेतु श्री समृद्धि युक्त स्वस्थ एवं सुखी जीवन एवं परलौकिक हेतु निष्ठा पूर्वक स्वधर्म पालन आवश्यक है। इसमे राजकीय हस्तक्षेप बाधा ना बने यही धर्मनिरपेक्षता है। परंतु स्वधर्म पालन दूसरों के लिये समान लक्ष्य प्राप्ति मे अवरोधक ना हो यह धर्मनिरपेक्षता की सीमा है। यह सीमा अलंध्य बनी रहे एवं संविधान निर्दिष्ट नागरिक कर्तव्यों के दायित्व बोध, की सजग निगरानी सरकारों का कर्तृत्व है। जिसके निष्पादन मे मामूली विक्षेपण सांप्रदायिकता रूपी अग्नि प्रज्वलन का हेतु बनता है। यह अग्नि ना केवल समाज अपितु राष्ट्र एवं लोकतंत्र को भस्म कर देने मे समर्थ होती है। इसके भयावह चेहरे से भारत अपरिचित नही।
सन 1947 के विभाजन की विभीषिका स्मरण करें जब सिंध पंजाब एवं बंगाल जल उठा था एवं धार्मिक उन्माद की अग्निशिखा ने संपूर्ण भारत वर्ष की आत्मा को झुलसाया था। दोबारा साम्प्रदायिकता के इस विषधर ने 1990 मे कश्मीर मे फण फैलाया एवं समूची मानवता को तार तार किया। सत्तासीन जिम्मेदार लोग आंखों पर धर्मनिरपेक्षता की पट्टी बांधे मौन रहे। स्थिति आज और अधिक चिंताजनक है, क्योंकि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दल इस आग की ओर से ना केवल आंखे मूंद रहे वरन् क्षुद्र राजनैतिक हितों के ख़ातिर सांप्रदायिक तत्वों को प्रश्रय देने का महापाप भी कर रहे है।
ताज़ा उदाहरण प्रधानमंत्री की पंजाब यात्रा मे राजनेताओं द्वारा उत्पन्न अवरोध सहित बंगाल उत्तरप्रदेश पंजाब आदि प्रांतों का वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य है। जहां येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने के लिये लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाते अधिकांश राजनैतिक दलों के लिये मानो क्षेत्रीयता एवं सांप्रदायिक विद्वेश को हवा देते भड़काऊ बयानों के अतिरिक्त कुछ भी करणीय शेष ना हो ऐसे विष वमन द्वारा समाज मे उत्पन्न आपसी वैमनस्य कालांतर मे हिंसक उत्पातों मे बदल जाता है। प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के कार्यकाल समाप्त होने पर पुलिस कर्मियों को देख लेने जैसे बढ़ बोले बयानों के साथ देशभर मे हिंसक घटनाओं के विस्तार की खुली धमकी पानी के नाक तक पहुंचने का पूर्व संकेत है। ओर राजनैतिक लाभ हानि का सतत आकलन करते राजनेता इसे समयानुसार एवं क्षेत्रानुसार हवा देकर भारतीय लोकतंत्र की श्वास अवरूद्ध करने पर आमादा है। इस दिशा मे इनके कुत्सित प्रयास का आरम्भ कोरोना महामारी के विरूद्ध जंग मे झूठी अफ़वाहों द्वारा धार्मिक आधार पर विघ्न डाल कोरोना वेक्सीन कार्यक्रम को असफल करने का षड्यंत्र, किसान आन्दोलन की ओट मे मृत खालिस्तान आन्दोलन के पुनर्जन्म की देशद्रोही साजिश को मौन समर्थन, राष्ट्रीय संपदा को क्षति पहुँचाता गत वर्ष गणतंत्र दिवस पर दिल्ली मे अराजक तत्वों का उत्पात, प्रधान मंत्री की सुरक्षा में चूक पर मुख्य मंत्री द्वारा अपने लोगों पर कार्यवाही ना करने वाला बयान आदि घटनाओं मे देखा जा सकता है।
एक मुख्यमंत्री ने पुन: देश विभाजन की भूमिका के रूप मे बेशर्मी से देश मे चार राजधानियों का सुझाव दिया था यद्यपि ये घटनाऐं प्रकट रूप से सांप्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता से संबद्ध नही लगती तथापि कानून एवं व्यवस्था को बहाल करने हेतु अंतिम विकल्प के रूप मे शासन द्वारा बल प्रयोग करने पर ये आन्दोलन निरंकुश होकर सांप्रदायिक रूप ले सकते है। स्वातंत्र्योपरान्त प्राय: ऐसी घटनाओं की परिणति शासन द्वारा बल प्रयोग ना करने पर भी सांप्रदायिक दंगों मे होकर उत्पाती तत्व धर्मनिरपेक्षता के आवरण मे कानूनी कार्यवाही मे रियायत पाते देखे गये हैं, क्योंकि लोकतंत्र मे किसी भी मुद्दे पर निर्णायक लड़ाई के लिये संख्या बल का विशेष महत्व होता है और धर्मनिरपेक्षता के कवच मे सांप्रदायिक ध्रुविकरण संख्या बल जुटाने का आसान मार्ग है। खास तौर से जब मुद्दे लचर एवं प्रभाव हीन हो तब धूर्त आयोजक कमज़ोर होते आन्दोलन मे साम्प्रदायिकता का परोक्ष तड़का लगाकर आमजन को भ्रमित कर सरकारों को झुकाने मे आंशिक ही सही कामयाब हो जाते है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण किसान आंदोलन की परिणति है। उचित अनुचित का भेद किये बिना सांप्रदायिक तत्वों के मंसूबे नाकाम करने के लिये सरकार ने कृषि कानून वापस लिये क्योंकि यहां सरकार को किसान से अधिक सिक्ख, जाट एवं पंजाब विरोधी प्रचारित करने का कुचक्र चल रहा था।
ऐसे आंदोलनों मे शरारती तत्वों द्वारा प्रायोजित हिंसात्मक गतिविधियां कानून व्यवस्था का विषय होने पर भी धर्मनिरपेक्षता की जंजीरों मे जकड़ा प्रशासन जाति व धार्मिक समुहों पर सख़्त कार्यवाही से परहेज़ करता है। ऐसे आंदोलन सांप्रदायिक रूप तब लेते है जब बहकावे मे आकर आम निर्दोष जन इसमें भागीदारी करते है और दूसरा पक्ष भी इससे संक्रमित हो स्वाभाविक रूप से समान प्रतिक्रिया व्यक्त करता है ऐसी सभी घटनाओं मे प्राय: असामाजिक तत्वों को राजनैतिक दलों का परोक्ष संरक्षण प्राप्त रहता है। सत्तारूड़ दल कभी भी जन विरोधी विरोधी नीतियाँ नही थोप सकते यदि विपक्ष अपने उत्तर दायित्वों के प्रति सजग रहे असल मुद्दों को छोड़ केवल विरोध के लिये विरोध करना कमजोर एवं अकर्मण्य विपक्ष का लक्षण है। अपने पैरों तले खिसकती ज़मीन बचाने के लिये यदि सरकार का विरोध अनिवार्य हे तो पेट्रोल रसोई गैस एवं अन्य अनिवार्य जीवनोपयोगी सामग्री की कीमतों में हो रही बेलगाम वृद्धि, बेकाबू बैरोज़गारी, निजीकरण आदि मुद्धों पर आन्दोलन कर विपक्ष वांछित जनसमर्थन हासिल करने का प्रयास करे सामाजिक सौहार्द, देश हित एवं सामरिक विषयों पर सरकार का अंधा विरोध कतई आवश्यक नही है, विपक्षी दलों को विदेशी राष्ट्रघाती शक्तियों का मोहरा ना बन देश हित के लिये अनिवार्य निर्णयों मे सरकार का समर्थन करना चाहिये। राजनैतिक प्रतिबद्धताओं से मुक्त हो देश हित मे धर्मनिरपेक्षता जैसे संवेदनशील विषय की सर्वसम्मत लक्ष्मण रेखा का निर्धारण आवश्यक है। धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण पर्यायार्थी शब्द नही है। इस गणतंत्र दिवस पर सभी जागरूक नागरिक देश विरोधी गतिविधियों पर मौन राजनैतिक दलों के बहिष्कार का संकल्प लें यह सभी देश भक्त भारतीयों का राष्ट्रीय कर्तव्य है।