Saturday, July 27, 2024
HomeHindiपृथक-पृथक संस्कृतियों का विकास एवं उत्थान, पारस्परिक सहिष्णुता एवं समन्वय से ही संभव

पृथक-पृथक संस्कृतियों का विकास एवं उत्थान, पारस्परिक सहिष्णुता एवं समन्वय से ही संभव

Also Read

भारत सिर्फ एक देश ही नहीं अपितु एक राष्ट्र भी है। जिसकी संस्कृति, ज्ञान एवं विचार का अनुशीलन, अनुपालन और अनुसरण संपूर्ण विश्व प्राचीन काल से ही करता आया है।

संस्कृतियों के इस विषय को समझने से पहले देश एवं राष्ट्र में अंतर समझ लेना आवश्यक है। चारों ओर सीमाओं से बंधा एक भू-भाग जिसकी अपनी सिर्फ एक राजनीतिक पहचान होती है देश कहलाता है, परंतु राष्ट्र वह देश है जिसके नागरिकों की एक विशिष्ट सांस्कृतिक, वैचारिक, सामाजिक पृष्ठभूमि होती है तथा उसकी जीवनपद्धति व आचार-विचार की एक पारंपरिक व चैतन्य विरासत होती है।

भारत की विस्तृत, चिंतनशील एवं प्राचीन संस्कृति में हिंदू सनातन संस्कृति की मान्यता आज वैश्विक रूप से है। कालांतर में विभिन्न क्षेत्रीय विशेषताओं एवं आवश्यकताओं के आधार पर इनमें कुछ संशोधन, परिवर्तन एवं परिवर्धन होकर यह अनेक स्थानीय जैसे बुंदेली, बघेली, कर्नाटकी, पहाड़ी, जनजातीय एवं सभी 1400 बोलियों तथा औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त 18 भाषाओं एवं उनके वर्चस्व वाले क्षेत्रों की अपनी-अपनी संस्कृति में रूपांतरित हो गई। आज इन सभी संस्कृतियों का विकास, उत्थान एवं परिष्कृत रूप प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सभी में परस्पर सामाजिक सौहार्द्र एवं एक दूसरे की सांस्कृतिक विशेषताओं की स्वीकार्यता व समन्वय आवश्यक है क्योंकि इन सभी क्षेत्रीय संस्कृतियों का उद्भव एक ही मूल से हुआ है तथा सब का उद्देश्य मानव को सुखी, समृद्ध, सुरक्षित, सुसंगठित, सुशिक्षित एवं संस्कारित करना है अतः सभी विभिन्नताओं को पूरक के रूप में समावेशित करना एवं उनकी उच्च नैतिक मान्यताओं को आत्मसात करते हुए आवश्यकता होने पर सुधारात्मक दृष्टिकोण के साथ संस्कृति की मूल धारा में जोड़ने का प्रयास करना ही इनके सामूहिक विकास एवं उत्थान की ओर अग्रसित करेगा।

शताब्दियों से भारतीय संस्कृति में असंख्य सांस्कृतिक धारायें मिलती रही है एवं उनका प्राकट्य नये रूपों में होता दिखाई दिया। भारतीय जीवन को बुनने वाले भिन्न-भिन्न धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक तारों को अलग करना असाध्य ही नहीं अपितु असंभव हो सके इसके लिए, जिस अखिल मानवीयता की परिकल्पना हमने की है उसके लिए तालमेल स्थापित करना,सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति से ही संभव है। एवं जिस परिपक्व,समृद्ध एवं संस्कारित राष्ट्र की आकांक्षा हम रखते हैं उसका निर्माण इन संस्कृतियों के उत्थान की परिणति के रूप में ही प्राप्त किया जा सकता है।

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular