Tuesday, March 19, 2024
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वैभव वर्मा

होली की पौराणिक पृष्ठभूमि एवं क्षेत्रीय परंपरायें

होली सर्वसाधारण का पर्व है इस दिन छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, भेदभाव मिटाकर सभी समरसता के साथ पर्व को मनाते है। होली एक ऐसा पर्व है जो खुशियों, रंगो, उत्साह और सौहार्द्र का प्रतीक है यह सर्दियों को विदा करने के साथ ही बसंत ऋतु का भी स्वागत करता है।

ऊर्जा क्षेत्र में भारत के उज्जवल भविष्य का निर्माण कर रहे है, सौर उर्जा की ओर बढते हमारे कदम

भारत आज सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत प्रगति कर रहा है एवं इसके अनेक ऊर्जा संवर्धन व सुरक्षा के प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन व साथ प्राप्त है।

पृथक-पृथक संस्कृतियों का विकास एवं उत्थान, पारस्परिक सहिष्णुता एवं समन्वय से ही संभव

भारत सिर्फ एक देश ही नहीं अपितु एक राष्ट्र भी है। जिसकी संस्कृति, ज्ञान एवं विचार का अनुशीलन, अनुपालन और अनुसरण संपूर्ण विश्व प्राचीन काल से ही करता आया है।

स्वच्छ, स्वस्थ व सकारात्मक नागरिक पत्रकारिता: इस समय की बड़ी आवश्यकता

नागरिक पत्रकारिता लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का वह मंच है जिसके माध्यम से पत्रकारिता के विभिन्न मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करके किसी भी विषय को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाया जाता है।

संयम, सेवा और युवा उद्यम: यही कोरोना पर विजय पाने का मंत्र

समन्वय एवं सेवाभाव से जुटकर, प्रत्येक अभाव को अपने संभव प्रयास से दूर करके, समाधान की ओर बढ़ना एवं संयम, मनोबल के साथ अनुशासन व परस्पर सहयोग की भावना रखना, इन सभी से ही हम इस भीषण परिस्थिति से उभर कर पुनः एक खुशहाल एवं स्वस्थ जीवन शैली की ओर बढ़ सकते हैं।

नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- प्रकृति के उल्लास का पर्व

चैत्र मास का वैदिक नाम मधु मास है अर्थात आनंद से परिपूर्ण मास क्योंकि इसी मास में समस्त वनस्पति एवं सृष्टि प्रस्फुटित होती है चारों तरफ कोयल की स्वर लहरी होती है यह पवित्र दिन इसलिए भी पूजनीय है क्योंकि लंका विजय के पश्चात प्रभु श्री राम के अयोध्या वापस आने के बाद इसी दिन उनका राज्याभिषेक हुआ था सिखों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी का भी प्रकट उत्सव है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में चलता हिन्दू धर्म का अपमान

जिस हिन्दू धर्म ने इस राष्ट्र को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया, सर्वधर्म समावृत्ति की शिक्षा दी उसी धर्म के सम्मान की अव्हेलना कर देना इस देश में कहाँ तक उचित है? क्या समीक्षा एवं अपमान के बीच कोई विभाजन की रेखा नहीं बची अथवा कोई रेखा खींचना नहीं चाहता।

स्वदेशी, स्वावलंबी, आत्मनिर्भर भारत – संकल्प राष्ट्र का

आत्मनिर्भर भारत मतलब विदेशो की बैसाखी का सहारा छोड स्वयं के पैरो पर खडा भारत, अपनी आत्मा पर निर्भर भारत और भारत की आत्मा उसकी ज्ञान, संस्कृति, सिद्धांत व मूल्य आधारित व्यवस्थायें है, अर्थव्यवस्था जिसका की एक महत्वपूर्ण अंग है।

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