मेरे कुछ बहुत ही अच्छे सेक्युलर शुभचिंतकों को मेरी एक बात खूब दिनों से खाई जा रही थी। उन मासूम से दिखने वाले इंसानों की रक्त कणिकाओं तक में बसा सेक्यूलरिसम और डुप्लीकेट लिब्रलिसम का ज़हर जो आने वाले समय में उनके DNA का हिस्सा बनने वाला है या हो सकता है की DNA बन ही चुका हो, वो दिन रात सुबह शाम उनको चैन नहीं लेने दे रहा था वो ज़हर चीख चीख कर उनको बोल रहा था इस इंसान को रोको इसको टोको इसको समझाओ ये जो प्रतिकार कर रहा है, लिख रहा है, लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा है।
सनातन को समाप्त करने वालों ने बरसों की मेहनत से सभी सनातनियों के चहरे और ज़ुबान को सेक्यूलरिसम और लिब्रलिसम के नक़ाब के नीचे सिल कर कमज़ोर बना कर क़ैद कर रखा था। इसने अपना वो कायरता का नक़ाब उतार के फेंक दिया और अब ये दूसरों के चहरे और ज़ुबान पर चमड़ी की गहराइयों तक अंदर घुसे इस कायरता के नक़ाब को उतर फ़ेकने की कोशिश में लगा हुआ है।
इसे रोको…इसे रोको…इसे रोको…और इसी ज़िद्दों जहद में उन सेक्युलरिसम के ज़हर मे सने हुए मेरे कुछ शुभचिंतकों ने आख़िरकार अलग अलग समय पर अपने अपने तरीक़े से मुझे समझाने और रोकने की क़ाबिल ए तारीफ़ कोशिश की किसी ने मुझे मोदी भक्त के ताने मारे तो किसी ने मुझे बताया की इस देश पर राज करना पप्पुराज किलविश की बपौती है, कई लोगों ने मुझे समझाने और ये बताने की कोशिश करी की मोदी या मोदी जैसे राष्ट्रवादी लोग कितने ख़राब है और ख़राब कैसे हैं ये पुछने पर हालाँकि उनके पास कोई जवाब नहीं था तो उन सबने दो कारण तपाक से फेंक के मारे की एक तो मोदी ने भारत की GDP और अर्थव्यवस्था को गिरा दिया हालाँकि जब मैंने उनसे GDP का मतलब पुँछा तो वो खिसियानी बिल्ली की तरह खंबा नौचने लगे पर इतने में मैंने पुँछ लिया की ये अर्थव्यवस्था कैसे गिर गयी जो खड़ी थी और मोदी ने कैसे गिराई टंगड़ी भिडा कर यार धक्का देकर?
तो इसके जवाब में वो लोग, जो सच मायने में अर्थ और व्यवस्था दोनों ही शब्दों और उनके वास्तविक शब्दार्थ और भावार्थ से अनभिज्ञ थे, बोल पड़े की मनमोहन के समय अर्थव्यवस्था कितनी ऊँची और अच्छी थी और जब उनसे पूँछा की कितनी अच्छी थी तो आँकड़े देने के नाम पर कुछ ने कहा की हमें मनमोहन पर भरोसा है क्यूँ की वो दुनियाँ का सबसे अच्छा अर्थशास्त्री है (नोट: दुनियाँ का?: जैसे मोदी के आने से पहले दुनियाँ का सबसे धनवान देश भारत ही था और मौन मनमोहन ग़रीब दुनिया को क़र्ज़े में धन बाँटने का काम किया करते थे।) और कुछ महानुभाव तो ये बोल गये की देश का विकास सिर्फ़ कोंग्रेस ने किया है लेकिन ये नहीं बता पाए की फिर कोंग्रेस सत्ता में क्यूँ नहीं है?
हालाँकि एक तार्किक उत्तर की उनसे उम्मीद करना उसी पाप के समान है जैसे की कट्टरपंथियों के सामने काफ़िरों का मूर्ति पूजा करना है।
फिर उन्होंने तपाक से दूसरा कारण ब्रह्मास्त्र समझ के फेंका की मोदी के आने के बाद से हिन्दु मुस्लिम की लड़ाई और नफ़रत बढ़ गयी है पता है तुझे?
देश का माहौल कितना ख़राब हो गया पता है तुझे? (और ऐसे ख़ुश हुए जैसे यही तो वो कारण हो जो मुझे वो बताना चाह रहे थे) लेकिन चिरकाल से हम सच्चे सनातनियों के DNA में एक बहुत अच्छी चीज बसी है और वो है सवाल करना, तर्क शास्त्र जो की इन तथाकथित लिब्रल लोगों को नहीं पसंद, क्यूँ की वो बरसों से यही चाहते और करते आयें हैं की सिर्फ़ वो ही बोलें और बाकी के लोग उनके बोले हुए शब्दों को आसमानी किताब का सच मान कर बिना किसी तर्क या सवाल के उसका अनुसरण करे। लेकिन एक सच्चा सनातनी होने के नाते मेरे लिए ये सम्भव नहीं था।
तो मैंने पुँछ ही लिया कैसे?
जिस सवाल की उनको उम्मीद भी नहीं थी वो सामने आने पर, वे बौखलाये लेकिन जवाब नहीं दे पायें…
की कैसे मोदी के आने के बाद हिन्दु मुस्लिम की लड़ाइयाँ और नफ़रत बढ़ गयी? कुछ टूचिये वापस 2002 में चले गये हालाँकि 2002 में जाने से मुझे कोई समस्या नहीं है पर भाई 2002 का सबसे भयावह कांड तो बताओ दंगे मत बताओ क्यूँ की दंगे और जंग दो समुदायों या सेनाओं के बीच होती है और उसमें दोनों सेनाओं के लोग मरते हैं और अंत में वही जीतता है जिसके पास ताक़त ज़्यादा होती है इसलिये 2002 के दंगो को हिन्दु मुस्लिम झगड़े का कारण मत बताओ असली कारण बताओ और अगर तुम नहीं बता सकते क्यूँ की तुम्हारी सेक्यूलरिसम की कायरता तुमको रोकती है तो मैं बताता हूँ की 2002 में गोधरा में हिन्दु घृणा के ज़हर में सने हज़ारों मुस्लिम आतंकियों की भीड़ ने सिर्फ़ इसलिये 60 के लगभग हिन्दु आदमी औरतों और बच्चों को ट्रेन में घुस कर ज़िन्दा जला दिया क्यूँ की वो लोग राम जन्मभूमि के दर्शन कर के लौट रहे थे, क्यूँ की वो लोग सेक्युलर नहीं हिन्दु थे, क्यूँ की वो लोग सच मायने में काफ़िर थे जिनका क़त्ल आसमानी किताब में जायज़ बताया है।
यें है सच जो सेक्युलर कायर लोग बोलना नहीं चाहते।
फिर कुछ लोगों ने बोला की देखो देश में नफ़रत फैल रही है हालाँकि मैंने उनको पूँछा की नफ़रत फैलती तो झगड़े फ़साद होते तो ये बताओ की मोदी के आने के बाद से देश में हिन्दु मुस्लिम के कितने फ़साद हो गये?
जवाब था शून्य (2020 दिल्ली दंगो को दंगों की श्रेणी में नहीं रखा जायेगा और इस बयान का तर्कों और तथ्यों के साथ अन्य लेख में उत्तर दिया जायेगा)।
तो उनके पास इसका जवाब नहीं था की कितने दंगे हुए क्यूँ की दंगे हुए ही नहीं भाई और यही तो इन मुग़लिया सल्तनत के मानसिक ग़ुलाम सेक्यूलरों और लिबरलों की सबसे बड़ी समस्या है की 2014 के बाद से हिंदुओं को काफ़िर मानने वाले शरियाती क़ानून से चलने वाले हत्यारे लोग अपनी खून की प्यासी तलवारों पत्थरों चाक़ुओं को हिंदुओं के ख़ून से लाल नहीं कर पा राहे है। (नोट: बंगाल आंध्र और केरल में जो हिन्दुओं की सामूहिक हत्याएँ की जा रही है वो दंगों की श्रेणी में नहीं आती, क्यूँ की जैसे मैंने पहले भी बताया दंगों में दो समुदाय या सेनायें अपनी पूरी ताक़त से टकरातीं है और जो ताकतवर होता है जीत उसकी ही होती है लेकिन इन सभी जगहों पर हिन्दु तो लड़ा ही नहीं वो तो सिर्फ़ कमज़ोर असहाय और लाचार होकर अपनी और अपने परिवार दोस्तों साथियों की हत्याएँ होता देखता है।)
फिर एक सच्चाई से आँख मूँद कर बुद्धी के अंधे जीव ने बहुत ही आत्मविश्वास के साथ ये कुतर्क तर्क समझ के मरा की मोदी के आने के बाद से लिंचिंग कितनी बढ़ गयी है पता है?
बात भाई की सच थी बिल्कुल, की लिंचिंग बढ़ गयी या सच बोलूँ तो इंटेरनेट और फोन सस्ता होने से अब ये लिंचिंग दिखने लगी है जो की बरसों से होती आ रही है।
पर फिर भी मेरे जिज्ञासु दिमाग़ ने सवाल पुँछ ही लिया की ये लिंचिंग क्या होती है? और कैसे होती है?
तो उस सेक्यूलरिसम और लिब्रलिसम के ज़हर के DNA से जन्मे विचित्र जीव ने जवाब दिया की जब हिन्दु किसी मुस्लिम को मार देते हैं। जी हाँ आपने सही पढ़ा है ये विलक्षण ज्ञान सिर्फ़ लिब्रांडु क़ौम के पास ही मिलेगा।
हालाँकि मैंने अपने प्रति उत्तर देने की आदत से प्रभावित होकर उस जीव को बताया की हे मूर्ख लिंचिंग का अर्थ होता है जब कोई भीड़ किसी अकेले व्यक्ति या कुछ निहत्थे निर्दोष व्यक्तियों के समूह को अकारण ही या किसी घृणा से प्रेरित होकर पीट पीट कर मार देती है। हालाँकि लिंचिग के कई प्रकार होते हैं लेकिन हमारे देश में देश में सबसे प्रचालित प्रकर है धार्मिक लिंचिंग।
तो वो जीव तुरंत बोला की हाँ यही तो देखो कितने मुस्लिम लोगों को हिंदुओं ने लिंचिंग में मार दिया! मैंने पूँछा कितने? तो उस जीव ने नाम गिनाने शुरू किये:
1: अखलाख
2: तबरेज
3:पहलू ख़ान
4:….
5:….
भाई को नाम याद नहीं थे पर पहले वो जो 20-25 लोगों की लिंचिंग का नाम ले रहा था 5 पर आकर रुका जिसमें उसने 3 के नाम लिये। हालाँकि जब मैंने बोला की भाई ऐसी बात है तो जब से मोदी आया है तब से तो हिन्दुओं की लिंचिंग के 100 से ज़्यादा मामले हैं पूरे देश में। तो वो भड़क कर बोला तू दस के नाम गिना दे ऐसा है तो?
मैंने बोला भाई नाम तो मैं 100 के गिना दू पर तुने दस बोला है तो दस तो सिर्फ़ दिल्ली के ही गिना देता हूँ।
1: कोंस्टबल रतन लाल CAA की विरोध प्रदर्शन करती बुर्ख़ाधारी औरतों ने।
2: अंकित शर्मा CAA विरोध के नाम पर मौत का आतंक मचाने वाले तहिर हुसैन और उसके साथियों ने।
3: ध्रुव त्यागी
4:अविनाश सक्सेना
5:रवींद्र कुमार
6:रिया गौतम
7:योगेश कुमार (14 साल)
8:डाक्टर पंकज नारंग
9:अंकित सक्सेना
10: रिंकु शर्मा
मेरे मासूम से तर्कों और तथ्यों का उनके पास कोई जवाब नहीं था तो वो लोग किसान आंदोलन पर आ गये, हालाँकि जब मैंने उनसे 3 किसान क़ानूनों के सिर्फ़ नाम पूँछे तो वो लोग गूगल का इस्तेमाल कर के नाम तक नहीं बता सके।
खैर नक़ली किसान आंदोलन पर अलग से चर्चा की जा सकती है जिसमें निश्चित रूप से ये लिब्रांडु जीव नहीं आएँगे क्यूँ की इनको एक चीज से बहुत डर लगता है और वो है “सच”।
हालाँकि कुछ वास्तविक शुभचिंतकों ने मुझसे एक तार्किक सवाल पूँछा की भाई तू कलाकार आदमी है एक्टिंग कर, ये राजनीतिक बातें क्यूँ लिखता है ये काम पत्रकारों मीडिया और नेताओं तक ही रहने दे। बात बिल्कुल सच थी पर सही नहीं थी।
मैंने बोला भाई बात सिर्फ़ अर्नब और रेबीज़ कुमार और रनDTV और रेपब्लिक के बीच की होती तो मैं नहीं लिखता। बात सिर्फ़ राजनेताओं के बीच की होती तो भी मैं नहीं लिखता। और बात सिर्फ़ हिंदुओ और मुसलमानों के छुटपुट झगड़ों की होती तब भी मैं नहीं लिखता। और वास्तव में बात और झगड़ा हिन्दु मुस्लिम का है ही नहीं जो तू समझ कर डर रहा है। वास्तव में ये लड़ाई चल रही है करोड़ों साल पुरानी सनातन सभ्यता संस्कृति को बचाने वालों और समाप्त करने वालों के बीच।
मैं नहीं लिखता अगर ये लड़ाई सिर्फ़ राजनेता या चंद मीडिया वाले लड़ रहे होते लेकिन जब मैंने सेक्यूलरिसम की कायरता और लिब्रलिसम की चाटुकरिता का मुखौटा हटा के देखा तो सनातन को मिटाने पर तुले राजनीतिक दलो नेताओं मीडिया और दलाल पत्रकारों के अलावा…
खुद को लिबरल दिखाने वाले जावेद अख़्तर से लेकर ज़िशान क़ादरी और शबाना आज़मी से सुअरा बहंसकर और तापसी पन्नु से लेकर टिकटोकियों तक।
पूरा बोलिवूड़ जिसमें कुछ अपने Godfathers का ऋण चुकाने में कुछ चाटुकरिता में तो कुछ जिहादी मानसिकता के कारण क्रियेटिविटी के नाम पर समाज में बरसों से फ़िल्मों tv और संगीत के मध्यम से हिन्दू घृणा का विष घोल रहे हैं। JNU AMU जमिया NSD और FTII जैसे हिन्दु घृणा से भरेपड़े मदरसे सरिके के शिक्षण संस्थान जहाँ शिक्षा के नाम पर युवाओं में सनातन संस्कृति के विरुद्ध विष का बीज बोया जा रहा है।
और खुद को स्वयं ही बुद्धिजीवी का तमग़ा देने वाला एक वर्ग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ज़हरीले नागों जैसे निरंतर सनातन को समाप्त करने का विष फेंकते रहते हैं। और पीढ़ियों से आसमानी किताब को मानने वाले ग़जवा ए हिन्द का ख़्वाब आँखों में पाले सनातनियों को निश्चित रूप से काफ़िर मानने चुके लोगों की एक विशाल फ़ौज संतनियो का “सर तन से जुदा” करने को बिल्कुल तैयार खड़ी है।
और सेक्यूलरिसम का नक़ाब हटा कर यें सब जब मैंने देखा तो मेरी आत्मा ने मुझे बोला की पार्थ धर्म युद्ध प्रारम्भ हो चुका है महाभारत के लिये सेनाएँ सज रही है और अब मौन बैठने का समय नहीं है क्यूँ की आज सेक्यूलरिसम के मौखौटे की आड़ में जो भी चुप बैठे तमाशा देखते रहेंगे वो सभी सनातन को समाप्त करने के षड्यंत्र के उतने ही सहभागी हैं जितने सनातन को समाप्त करने वाली आसुरी शक्तियाँ है।
तुम अपना पक्ष चुन लो की तुम किसकी तरफ़ से युद्ध करने वाले हो?
तब मैंने देखा की निश्चित रूप से हिन्दु घृणा से सने सनातन को समाप्त करने वालों की सेना कौरवों के समान विशाल, धनवान, शक्तिशाली और स्वयं को बुद्धिजीवी और उदारवादी बताने वाले आडंबरकारी कपाटियों से भरी पड़ी है देखने पर भ्रम भी ऐसा ही होता है की निश्चित रूप से विजय इनकी ही होगी लेकिन फिर भी मैंने धर्म और देश के पक्ष को चुना और अधर्मियों के विरुद्ध बोलना और लिखना शुरू कर दिया।
क्यूँ की हमारे पुरखों ने भी समय समय पर कभी राणा प्रताप बन कर तो कभी शिवाजी और गुरुगोबिंद सिंह बन कर धर्म और देश की रक्षा के लिये अपने प्राण तक लुटा दिये। और अब हमारी बारी है धर्म और देश की रक्षा करने की।