हिन्दू संस्कृति एवं सभ्यता की रक्षा हेतु हिन्दू समाज को हिन्दू विरोधी वैचारिक प्रपंच को जड़ से उखाड़ना ही होगा।
हमारे यहाँ सुसंस्कृत नाम, स्पष्ट परिभाषा एवं शब्दावाली का अति महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदुत्व, धर्म, भारत आदि शब्दों के अर्थ एवं संदर्भ को हिन्दू विरोधी निरंकुश एवं मनमाने प्रयोग कर रहे है, उनके वास्तविक अर्थ को क्षति पहुंचा रहे है। उनका उद्देश्य मात्र हिन्दू समाज की चेतना को शिथिल एवं लम्बी समय तक भ्रम में रखना है।
क्योंकि हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन एवं जागृत सभ्यता है। हमारा प्राचीन इतिहास अत्यंत गौरवशाली एवं विकसित रहा है। कित्नु हिन्दू विरोधी शक्तिओं की विस्तारवादी सोच के कारण भारत सैकड़ों वर्षों से आक्रमण एवं आघात झेल रहा है। यह युद्ध निरंतर चल रहा है, मात्र इसकी रूपरेखा में समयानुसार परिवर्तन होता रहता है। किन्तु इनका एक ही उद्देश्य है हिन्दू संस्कृति को समाप्त कर, हिन्दुओं की मातृभूमि भारत पर अधिकार करना है। हिन्दू विरोधी वैचारिक प्रपंच इस युद्ध के वर्तमान स्वरुप का एक भाग है।
धर्म ≠ Religion / मजहब
धर्म शब्द को जिस प्रकार अनुचित अनर्थकारी व्याख्या के साथ प्रचलित किया गया है। इससे अधिक विनाशकारी आघात हिन्दू समाज को संभवतः ही किसी और शब्द से हुआ हो।
“धर्म” शब्द सुनते ही आपके मस्तिष्क में सर्वप्रथम प्रचालित शब्द “Religion” आता है। वर्तमान प्रसारित अवधारणा के अनुसार, एक मानव समुदाय जो एक विशेष प्रकार की उपासना पद्धति का पालन करता है, वह धर्म विशेष है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म आदि। यह पूर्णतः हिन्दू विरोधी प्रेरित असत्य है। धर्म का अर्थ religion नहीं होता। धर्म के समक्ष शब्द english में नहीं है। इसीलिए धर्म का भाषांतरण इंग्लिश में उपलब्ध ही नहीं है, आपको संस्कृत शब्द “धर्म” ही प्रयोग करना होगा इंग्लिश में संवाद करते हुए।
धर्म क्या है ?
“वेदप्रणिहितो धर्मोंहधर्मस्तद्विपर्ययः। वेदे नारायणः साक्षात्स्वयम्भूरिति शुश्रुम॥”, भागवत पुराण अनुसार वेदों ने जिन कर्मो का विधान किया है और पालन करना अनिवार्य है, वे धर्म हैं और जिनका निषेध किया है, वे अधर्म हैं।
“वेदोखिलो धर्म मूलं”, मनुस्मृति कहती है, सम्पूर्ण धर्म का मूल वेद है, वेदों से ही धर्म को जाना जा सकता है। वेदों का विधान ही धर्म माना गया है।
पूरी के वर्तमान पूज्य शंकराचार्य जी स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के सुन्दर एवं गूढ़ वचनों में धर्म का सार। सम्बंधित उदहारण लेखक की समझ से प्रेषित किये गए हैं।
- जीव के अस्तित्व एवं उपयोगिता जिस पर निर्भर हो, वही धर्म है।
जाति व्यवस्था इसका उत्तम उदारहण है, इसमें समाज एक दूसरे की मर्यादा का ध्यान रखते हुए अपने कर्म का पालन निष्ठा से करता है। जिस प्रकार एक लोहार का अस्तित्व एवं उपयोगिता उनके अपने लोहार धर्म का पालन करने में हैं, ठीक उसी प्रकार एक राजपूत का अपने राजपूत धर्म पालन करने में। आप ही विचार करे लोहार के शस्त्र ही तो राजपूत को उनके क्षत्रिय धर्म पालन में सहायता करते हैं। लोहार की तलवार में पीढ़ीओं का अनुभव एवं विशेष ज्ञान निहित होगा, जो कोई भी आधुनिक कोर्स करने या मशीन से नही प्राप्त हो सकता। लोहार की समाज में अपनी उपयोगिता एवं अस्तित्व है।
- परमात्मा तक मन को पहुंचने में जिस से बल एवं वेग की समर्थ अर्जित हो, वह धर्म है।
इसके लिए उत्तम उदहारण है पत्नी धर्म, अर्थात मनसा वाचा कर्मणा पति को इष्ट रूप स्वीकार कर समर्पित रहना। सती सावित्री जी अपने पत्नी धर्म से प्राप्त, सतीत्व के प्रभाव से, स्वयं यमराज से अपने पति के प्राण दान ले आयी थी।
- प्रकति प्रदत्त भेद का सदुपयोग एवं सम्मान करते हुए परमात्मा प्राप्त हो सके, वह धर्म है।
इसके लिए उत्तम उदहारण है स्त्री पुरुष का प्राकृतिक भेद। प्रकृति ने स्त्री को माँ बनाने का सौभाग्य दिया, स्त्री भी मातृ धर्म पूर्ण निष्ठा से निभाती है। स्त्री पुरुष को प्रकृति ने पूरक बनाया है। स्त्री अपनी मर्यादा प्रकृति अनुसार घर को संवारती हैं, पुरुष अपनी मर्यादा प्रकृति अनुसार घर का वाहक बनता हैं। तभी कोई घर परिवार के रूप में पोषित होता है।
धर्म जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में प्राथमिकताओं को समझने एवं स्वीकारने की दृष्टि देता है। धर्म जीवन से सम्बंधित प्रत्येक विषय वस्तु के प्रति जीव के आचार व्यवहार में उच्च कोटि स्तर बनाये रखने की दृष्टि देता है। धर्म के फल स्वरुप अधिकार है। अत्यंत सरल भाषा में, व्यवहारिक रूप में, सतही दृष्टि में व्यक्त करना हो तो, कर्त्तव्य बोध धारण करने वाला जीव ही धर्म परायण है।
जब भी आप किसी विषय वस्तु के साथ धर्म उपनाम के रूप में जोड़ते हैं, आप उससे सम्बंधित कर्तव्यबोध की बात कर रहे होते हैं। जैसे उदहारण के लिए हिन्दू धर्म-हिन्दू होने का कर्त्तव्यबोध, ना की हिन्दू रूप में पूजा उपासना, सनातन धर्म-सनातन वैदिक परंपरा के वंशज होने का कर्तव्यबोध, पत्नी धर्म-हिन्दू परंपरा से पत्नी होने का कर्तव्यबोध, आदि।
सम्प्रदाय / पंथ / धर्म ≠ Religion / मजहब
सम्प्रदाय और पंथ क्या है?
सम्प्रदाय: सरंचनात्मक दृष्टि से समझे तो, सनातन वैदिक गुरु शिष्य परम्परा प्राप्त गुरु के शिष्यों का समूह। सम्प्रदाय सनातन वैदिक धर्म की विभिन्न शाखाओं पर आधारित होते हैं। उदहारण के लिए: नाथ सम्प्रदाय, लिंगायत सम्प्रदाय, आदि।
पंथ: सरंचनात्मक दृष्टि से समझे तो, सनातन दृष्टि से युक्त किसी बुद्ध/ज्ञानी व्यक्ति के शिष्यों का समूह। पंथ में वैदिक कर्मकाण्ड हो आवश्यक नहीं है। उदहारण के लिए: बुद्ध पंथ, जैन पंथ, खालसा पंथ आदि।
सम्प्रदाय एवं पंथ शब्द का मूल हिन्दू संस्कृति से है, जो की सनातन आधारित आध्यात्मिक उत्थान की भिन्न भिन्न परंपरागत समुदायों के प्रति सम्बोधन के लिए प्रयुक्त होते हैं।
Religion और मजहब क्या है ?
Religion / मजहब दोनों अब्राहमिक विचारधारा एवं दर्शन से उपजे विषय विचार हैं।
Around the 1200s root word religio became as religion into English, it took the meaning of “life bound by monastic vows” or monastic orders. The compartmentalized concept of religion, where religious things were separated from worldly things, was not used before the 1500s. The concept of religion was first used in the 1500s to distinguish the domain of the church and the domain of civil authorities.
Religion शब्द की मूल अवधारणा ईसाईयत (Europe) से हैं। प्रारंभिक रूप में Religion शब्द मुख्यतः ईसाई पहचान लिए ही प्रयुक्त हुआ था।
The modern concept of religion, as an abstraction that entails distinct sets of beliefs or doctrines, is a recent invention in the English language. Such usage began with texts from the 17th century due to events such the splitting of Christendom during the protestant reformation and globalization in the age of exploration, which involved contact with numerous foreign cultures with non-European languages. Some argue that regardless of its definition, it is not appropriate to apply the term religion to non-Western cultures. Others argue that using religion on non-Western cultures distorts what people do and believe.
The concept of religion was formed in the 16th and 17th centuries, despite the fact that ancient sacred texts like the Bible, the Quran, did not have a word or even a concept of religion in the original languages and neither did the people or the cultures in which these sacred texts were written.
Though traditions, sacred texts, and practices have existed throughout time, most cultures did not align with Western conceptions of religion since they did not separate everyday life from the sacred. In the 18th and 19th centuries, the terms Buddhism, Hinduism, Taoism, Confucianism, and world religion first entered the English language.
भारतीय भाषाओं में सामान्यतः नवीन शब्द निर्मित करने की प्रणाली है, इसीलिए पुराने शब्द का अर्थ नहीं बदला जाता । चूँकि English भाषा में शब्द निर्मित करने की क्षमता ना के बराबर ही है, तो इसमें समय एवं आवश्यकता अनुसार शब्द का अर्थ ही बदलता रहता है ।
Religion word meaning as per oxford dictionary “the belief in the existence of a god or gods, and the activities that are connected with worship”. Belief का अर्थ होता है “यह भावना कि कोई वस्तु या व्यक्ति नैतिक रूप से सही है, अथवा इसका अस्तित्व है” । यह अपने आप में ही एक अन्धविश्वास जैसा है , इसमें वास्तविकता नहीं है । religion के सन्दर्भ में आपने पुस्तक या संदेशवाहक की कही बात को मान लिया । हिन्दू संस्कृति में पौराणिक इतिहास के साक्ष्य उपलब्ध हैं, उदहारण के लिए आपको रामायण महाभारत से सम्बंधित सभी खगोलीय, भौतिक साक्ष्य पूरे देश में मिल जायेंगे । हमारे यहाँ मंदिर निर्माण, वैदिक कर्मकांड का अपना विज्ञान शास्त्र है। इसीलिए भी हिन्दू समुदाय को religion / मजहब कहना पूर्णतः अतार्किक एवं अस्वीकार्य है ।
इसी प्रकार मजहब शब्द की मूल अवधारणा इस्लामिक (Arabic) हैं। Google “YouTube video” named “What is the meaning of word Mazhab” , for better understanding.
यहाँ मूल प्रश्न है की, विशेष उपासना पद्धिति वाले समुदाय को कैसे एक शब्द में व्यक्त किया जाये ?
उत्तर है विशेष उपासना पद्धिति वाले समुदाय को एक सर्वमान्य शब्द में व्यक्त नहीं किया जा सकता । प्रचलित ढर्रे में धर्म तो विषय वस्तु से पूर्णतः भिन्न/अलग है । सम्प्रदाय एवं पंथ शब्द का मूल हिन्दू संस्कृति से है, जो की सनातन आधारित आध्यात्मिक उत्थान की भिन्न भिन्न परंपरागत समुदायों के प्रति सम्बोधन के लिए प्रयुक्त होते हैं। सभी सम्प्रदाय एवं पंथ का मूल स्तोत्र सनातन वैदिक परंपरा है, इसीलिए स्वाभाविक रूप से इनमे भेद उत्पन्न नहीं होता ।
सनातन वैदिक परंपरा से अब्राहमिक विचारधारा एवं दर्शन पूर्णतः भिन्न हैं। दोनों ही अब्राहमिक समुदायों के विस्तारवादी दर्शन के इतिहास से सभी भलीभांति परिचित है। वर्तमान आधुनिक काल में मतांतरण / religious conversion इनके विस्तारवाद का प्रमुख उपकरण है। गैर ईसाई – infidel एवं ग़ैर इस्लामिक – काफ़िर के रूप मे देखा जाता है । अब्राहमिक दर्शन में दूसरी विचारधारा एवं दर्शन के प्रति स्वीकारोक्ति का अभाव है। एक उदहारण से समझते है , अनार और सेब दोनों फल हैं, दोनों सतही रूप से लाल रंग के हैं , किन्तु भिन्न प्रकृति के हैं । आप अनार के लिए सेब और सेब के लिए अनार का सम्बोधन प्रयोग नहीं करते हैं। ठीक उसी प्रकार इन वास्तविकताओं के साथ, religion / मजहब को सम्प्रदाय / पंथ के समक्ष नहीं रखा जा सकता, और ना ही भाषांतरण में प्रयोग किया जा सकता है। आपको इन्हे इनके मूल रूप में संज्ञा समान ही प्रयोग करना होगा, चाहे संवाद की भाषा कोई भी हो ।
Secularism ≠ धर्मनिरपेक्ष / पंथनिरपेक्ष
Secularism क्या है ?
Secularism की मूल अवधारणा ईसाईयत के अंतर द्वंद से जन्मी है । यूरोप में Protestants और Catholics के बीच ” wars of religion” नामक दीर्घकालिक एवं भीषण युद्ध हुए । जिनके परिणाम स्वरुप , आधुनिक युग मे प्रवेश के उपकरण के भांति, Religion एवं शासन के पृथकीकरण की विचारधारा secularism को पृष्ठ्भूमि मिली । जिसका मूल स्वरुप / उद्देश्य Church और सत्ता में सम्मानजनक दूरी बनाना था ।
भारत में पंथनिरपेक्ष नीति का औचित्य ?
यहाँ हमे यह ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है की भारत में आध्यात्मिक पक्ष हमारी सामूहिक/व्यक्तिगत पहचान का एक महत्वपूर्ण अंग एवं प्रणाली हैं। क्योंकि भारत में समाज की संस्कृति का मूल धर्म (सतही समझ से कहे तो कर्त्तव्यबोध) आधारित है, धर्म आध्यात्मिक विकास का सधान है। हमारे दैनिक जीवन में परंपरायें रीती रिवाज अत्यंत गूढ़ता के साथ गुथी हुई हैं। समाज के विकास का साधन सत्ता है। कोई कितना भी कुप्रयास करे, भारत में आध्यात्मिक पक्ष और सामाजिक पक्ष को पृथक नहीं किया जा सकता, यह पृथकीकरण विचारधारा भारत की मूल संस्कृतिक दृष्टि के विरुद्ध है। भारत की मूल संस्कृति सनातन वैदिक परंपरा है, जो की स्वभावगत निरपेक्ष एवं सहिष्णु है।
भारत की सनातन वैदिक संस्कृति में आध्यात्मिक पक्ष सत्ता पक्ष से द्वन्द का कारक नहीं बनता। सभी अपनी अपनी मर्यादा का पालन धर्म के अनुसार करते हैं। पंथनिरपेक्षता हिन्दू संस्कृति का स्वभाविक गुण है, जो हमे धर्म के साधन “मर्यादा” के फलस्वरूप प्राप्त होता है। नीति नियम की आवश्यकता वहाँ होती, जहाँ विषय वास्तु का आभाव हो, स्वभावगत विषय वास्तु का आभाव कैसे हो सकता है, भारत में पंथनिरपेक्ष नीति के औचित्य पर भी गंभीर चर्चा आवश्यक है। किस प्रकार secularism आपातकाल में संविधान में अनैतिक रूप से डाला गया। यह अपने आप एक और विचार विमर्श का विषय है।
भाग -२ प्रतीक्षा में