बेंगलुरु में एक कांग्रेसी विधायक के सम्बन्धी द्वारा किये गए भड़काऊ फेसबुक पोस्ट जिसे ज्यादातर लोगों ने पढ़ा भी नहीं होगा उस पर डरे हुए समुदाय के हज़ारों लोगों की उग्र भीड़ जमा हो गयी,फिर डरते-डरते उन्होंने उपद्रव का सिलसिला शुरू किया, नारा ए तकबीर अल्लाह हु अकबर के नारों से इलाका गूंज उठा, गाड़ियां जला दी गई, डरे हुए लोगों ने विधायक का घर जला दिया, पुलिस स्टेशन को आग के हवाले कर दिया गया।
अब तक इस हिंसा में 3 लोगों की मौत हुई है और 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हैं, स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।
अभी दिल्ली दंगे की स्मृतियाँ धूमिल नहीं हुई थी कि बेंगलुरु में दंगा भड़क गया। ऐसे में ये प्रश्न उठता है कि ऐसा करने की इनमें हिम्मत कैसे आती है?
वो अपनी इच्छानुसार बेंगलुरु, पूर्णिया, मालदा में भीड़ जुटाते हैं, मजहबी नारे लगाते हैं और अपने धर्म पर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए आगजनी, दंगे करते हैं।
सरकारों को घुटने पर ला देते हैं, प्रजातांत्रिक देश में शरिया कानून के तहत सजा चाहते हैैं और ऐसा होता भी है दूसरे पक्ष की दलील सुने बिना उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। मीडिया, नेता सब इनकी जेब में होते हैं और इन्हें खुली छूट मिलती है आगजनी, दंगे करने की।
बहुसंख्यकों के धर्म पर की गई टिप्पणी वाह-वाही बटोरती है, अभिव्यक्ति की आजादी के अंतर्गत आती है, आपको पुरस्कार दिला सकती है।
वहीं दूसरे धर्म पर की गई टिप्पणी आपको अपने कर्मचारियों समेत मरवा सकती है, आपकी गर्दन कटवा सकती है, यहाँ पर उदाहरण देने की जरूरत नहीं है। हद तो तब हो जाती है जब ये खुद को डरा हुए कहते हैं, ये डरे हुए भी हैं और डरा भी रहे हैं, बड़ी विडंबना है।
ऐसे में जरूरत है भीड़ के बल पर अपनी मांगे मनवाने के इनके आदत पर विराम लगाने की ,उत्तर प्रदेश मॉडल को पूरे देश में लागू करना चाहिए,दंगाइयों की सम्पत्तियां जब्त होनी चाहिए, इनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा दर्ज की जानी चाहिए और जेल में सड़ने के लिए छोड़ देना चाहिए तब जा के इनके होश ठिकाने आएंगे नहीं तो ये एक के बाद एक हर शहर में फिर किसी फेसबुक पोस्ट से आहत हो कर अपनी संख्या के बल पर कोहराम मचाएंगे क्योंकि इन्हें बस देश में आग लगाने का मौका चाहिए।
आज बेंगलुरु जल रहा रहे हैं ,कल आपका शहर जलाएंगे,परसो आपका घर जलाएंगे। अगर आप ये सोचते हैं कि ऐसा नहीं होगा तो आप भ्रम में जी रहे हैं।