विश्वविद्यालय समाज के वह महत्वपूर्ण अंग हैं जो उसके लिए विकास और संभावनाओ के द्वार खोलते हैं। भारत के सदर्भ में इनका बहुत महत्व हैं क्योकि प्राचीन काल से ही तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों ने हमारे देश और समाज को नयी दिशा प्रदान की। यही विश्वविद्यालय वह शक्ति केंद्र थे जहां से भारत को अक्रमणकारियो और साम्राज्यवादियो से मुक्त कराने का विचार प्रस्फुटित हुआ। प्राचीन काल में जहा एक ओर तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य और उनके शिष्य चाद्रगुप्त मौर्य ने मकदूनियाई राजा सिकंदर के खिलाफ विद्रोह कर उसकी साम्राज्यवादी नीतियों पर अंकुश लगाया तो वही आधुनिक दौर में औपनिवैशिक काल में स्थापित विश्वविद्यालयों ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों और उन लोगों को प्रशिक्षित किया जिन्होंने आधुनिक भारत के लोकतान्त्रिक भारतीय राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और आज भी यह विश्वविद्यालय भारत के भविष्य को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
आजादी के बाद बदलते दौर में इन विश्वविद्यालयों को समाज की ज़रूरतों के हिसाब से ढालने के लगातार प्रयास किये गए और इस दिशा में अंतिम शिक्षा नीति से बदलाव 1986 में किया गया था परन्तु तब से ले कर आज तक देश और विश्व बहुत बदल चुका हैं खासकर 1991 की उदारवादी नीतियों के बाद, अंततः यह जरुरी हो गया था कि नयी शिक्षा नीति लाकर देश के विश्वविद्यालय और शिक्षा के अन्य संस्थानों को समय के साथ जोड़ा जाये, उनके विकास और गति प्रदान की जाये ताकि भारतीय विश्वविद्यालय विश्व की उच्चतम् विश्वविद्यालयों में सम्मिलित हो सके। देश में अबतक की शिक्षा नीतियाँ अग्रेजो की शिक्षा नीति या मैकाले की शिक्षा नीति का विस्तार ही रही है, जिसके अनुसार शिक्षा लेने के बाद भी छात्र एक मशीन बनकर रह जाता था और अपने आगे के भविष्य का रास्ता भी चुन पाने में कहीं न कहीं असमर्थ होता था। इसलिए देश के कई विद्वानों ने अपनी विचारधारा से परे हटकर देश की शिक्षा नीति को परिवर्तित करने पर लगातार सरकार पर दबाब बनाते रहे है एवं अपने लेखों, पुस्तको के माध्यम से बताया कि भारत की अपनी शिक्षा नीति कैसी हो, जिसमें युवा अपने आप मे सक्षम बने सम्रद्ध बने।
चौतीस वर्ष के बाद भारत की अपनी नयी शिक्षा नीति ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’, जो देश की तृतीय शिक्षा नीति है, 5 साल के मंथन बाद दो लाख से अधिक सुझावो के समावेश के साथ कैबिनेट की मंजूरी के पश्चात देश को सौंपी है। इस शिक्षा नीति ने शिक्षा के पुरे पुराने ढांचे को बदल दिया है और एक नयी शुरुआत शिक्षा जगत में हो गयी है। विवधताओं में एकता वाला देश भारत जिसमे अलग अलग भाषाए बोली जाती है हर राज्य की अपनी अलग अलग संस्कृति है इस नीति में स्थानीय भाषाओ के अध्ययन एवं उन भाषाओं में दूसरे विषयो को पढ़ने के अवसर है जो भारत के सांस्कृतिक विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी।
इसमें स्कूली शिक्षा को चार भागों में विभाजित किया गया है, जहाँ स्कूली शिक्षा को शरुआती दौर कक्षा 1 से 3 तक में मातृ भाषा मे पढ़ाए जाने की बात कही हैं साथ साथ खेल कूद के साथ बच्चे का मानसिक विकास किया जाएगा, शिक्षा को प्रायोगिक रूप में छात्रों को पढ़ाया जाएगा, छात्र की जिस विषय में रुचि है उस विषय मे उसको समग्र रूप से शिक्षा लेने का पूरा अवसर प्राप्त होगा, इस शिक्षा नीति से छात्रों के कंधे के बस्ते का बोझ कम होगा एवं मस्तिष्क का सर्वागीण विकास होगा।
कक्षा 3 से 5 में अलग अलग भाषा सिखाई जाएगी जिसमे मातृ भाषा के साथ साथ सविधान में आलेखित कोई भी अन्य भाषा सीखी जानी होगी जो अपने संस्कृति को जानने समझने एवं उससे जुड़े रहने में अहम योगदान देगी और इस उम्र में छात्र की भाषा सीखने की क्षमता भी अधिक होती है एवं साथ ही साथ गणित भी सिखाया जाएगा जिसके बच्चे का मानसिक विकास और समझ तेजी से बढ़ेगा। उसके कक्षा 6 से कोडिंग सीखाना पाठ्यक्रम में है जो कि छात्रों के कौशल विकास में महत्वपूर्ण कदम होगा, भारत ही नही अपितु पूरा विश्व वर्तमान में सूचना एवं प्रोधोगिकी में लगातार विकास कर रहा है, आने वाले समय में कोडिंग का कौशल सीखना अत्यंत आवश्यक होगा जो हमारे देश के छात्र अब अपनी शरुआती स्कूल शिक्षा में है सीख लेंगे।
छात्रों को किताबी ज्ञान के साथ प्रायोगिक ज्ञान का भी समावेश होगा जिससे छात्र पूरी तरह से विषय में परिपक्व हो जाए, साथ ही साथ कला, विज्ञान, वाणिज्य के सारे विषयो को कक्षा 6 से 8 तक में पढ़ाया जाएगा जिससे हर एक विषय की प्रारंभिक जानकारी छात्र को हो जाएगी। उसके बाद छात्र को अपने रुचि के विषय चुनने में आसानी होगी। कक्षा 9 से 12 में छात्र अपनी रुचि के विषय चुन कर आगे का अध्ययन करेगा इसमें सबसे खास बात ये की छात्र पर किसी प्रकार का कोई विशेष विषय लेने का दबाब नहीं होगा अपने मन एवं रुचि से कोई भी विषय छात्र ले सकेगा, इसका का मुख्य फायदा यह होगा कि छात्र जिस भी दिशा में अपना भविष्य बनाना चाहे उसके लिए वो स्वतंत्र रहेगा। कला, विज्ञान, वाणिज्य के साथ संगीत, नृत्य, खेलकूद आदि विषय भी अब मुख्य शिक्षा में होगे एंव सभी विषयों का समान महत्व होगा।
जब छात्र अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर चुका होगा तो ये शिक्षा उसके अपनी रुचि की शिक्षा होगी और छात्र पूर्ण रूप से कुशल होगा। वर्तमान में जो भारत सरकार का स्किल इंडिया योजना के तहत जो शिक्षा अतिरिक्त समय लेकर दी जा रही है उससे कई गुना गहन ज्ञान छात्र विद्यालय में ही पूर्ण रूप से सीख चुका होगा।
उच्च शिखा में भी अमूलचूल परिवर्तन किए गए है, वो मानो इस प्रकार है कि जिस क्षेत्र में अपना भविष्य छात्र चुनना चाहे उस प्रकार की डिग्री कर सकेगा एवं अगर 1 या 2 वर्ष के बाद वो अपनी पढ़ाई को किसी कारणवश छोड़ना चाहे या बदलना चाहे तो ये शिक्षा उसकी व्यर्थ नही होगा उसको सर्टिफिकेट या डिप्लोमा दिया जाएगा।
इस शिक्षा नीति को एक उदारहण से समझा जाए कि देश में खेल जगत, फ़िल्म जगत, व्यवसाय जगत में ऐसे युवा कीर्तिमान हासिल कर रहे है जिन्होंने अपनी स्कूल कॉलेज की पढ़ाई के साथ अपनी रुचि का कार्य अलग से किया परन्तु आने वाली पीढ़ी को अब ऐसा नहीं करना पड़ेगा क्योंकि अब किसी भी प्रकार की शिक्षा में भेदभाव नहीं होगा सबका महत्व बराबर होगा और छात्र की जिसमे रुचि होगी उसमे वो अपना भविष्य बना सकेगा।
मुख्य रूप से इन्टर्डिसप्लनेरी अध्ययन, अलग अलग विषयो का चयन कर अध्ययन की स्वतंत्रता होना एक बहुत ही बेहतरीन सिस्टम होगा जैसे कि विज्ञान के विषयों के साथ-साथ कला के विषय जैसे साहित्य, इतिहास आदि एवं अन्य विषय जैसे पर्यावरण, खेल कूद संगीत, नृत्य आदि का मिश्रण पढ़ने को आजदी छात्रों को होगी जिसके भविष्य में अनुसंधान में विविध आयाम खुलने के अवसर होंगे ऐसी व्यवस्था विश्व के कई उच्च स्तरीय विश्वविद्यालयो में है साथ कुछ सीमा के साथ ये व्यवस्था भारत के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में है अब इसका फायदा पूरे देश के छात्रों को मिल सकेगा।
देश के सभी विश्वविद्यालयों चाहे निजी हो सरकारी हो या डीम्ड हो सभी विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम एक समान होगा देश के सभी छात्र समान शिक्षा ले सकेंगे। साथ ही साथ निजी विश्वविद्यालयो एवं विद्यालयो की फीस भी अब सरकार तय करेगी जिससे मनमानी फीस नही वसूली जाएगी एवं शिक्षा के निजीकरण पर लगाम लगेगी। देश मे लगातर कई सालों से शिक्षा के बजट के आवंटन को लेकर शिक्षाविद सवाल खड़े करते रहे है कई बड़े बड़े आन्दोलन भी हुई है जिनकी प्रमुख मांग रही है शिक्षा के बजट को बढ़ाया जाए इस नीति कहा गया है कि जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा का होगा ऐसा आजतक नहीं हो पाया था जो कि एक बहुत बड़ा कदम है साथ साथ विश्वविद्यालयो एवं कॉलेजो को स्वायत्तता भी होगी कि वो आवश्यकता अनुसार खर्च कर सकते हैं अन्य दूसरी प्रकार की स्वायत्तता भी दी गई हैं।
शैक्षणिक संस्थानो ने रोजगार को लेकर भी बड़े कदम इस शिक्षा नीति में उठाए गए है, अब अस्थाई पदों पर ओर भर्तियां नहीं कि जाएगी। सारी भर्तियां स्थाई रूप से की जाएगी, स्थाई शिक्षको की भर्ती की जाएगी जिससे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी। एक ऐसा तंत्र बनेगा जैसे ही कोई रिक्त पद होगा या किसी शिक्षक की जरूरत होगी कॉलेज यूनिवर्सिटी उस पर स्थाई भर्ती जल्द से जल्द कर सकेगी, देश मे नए शिक्षण खोले जाएंगे व टॉप 100 विदेशी शिक्षण संस्थान को भी भारत मे संस्थान खोलने की मंजूरी दे दी गई है जिसके नियम कानून पाट्यक्रम एवं फीस सरकार तय करेगी जिसमे उनकी मनमानी नही चलेगी विदेशी विश्वविद्यालय खुलने से शिक्षा की गुणवत्ता के साथ साथ देश भर में नए रोजगार शिक्षा जगत में उत्पन्न होंगे। साथ साथ जो कुछ विषयो को अब तक अन्य विषय के रूप मे पढ़ा जाता था वो भी अब मुख्य भूमिका में रहेंगे उनकी शिक्षा के लिए भी नये शिक्षको की आवश्यता होगी और अधिक रोजगार के अवसर देश के युवा के पास होंगे।
आने वाली पीढ़ी का छात्र रोजगार लेने वाला नहीं बल्कि रोजगार उत्पन्न करने वाला युवा बनकर उभरेगा, जो देश के सतत विकास एवं सर्वांगीण विकास में अपना योगदान देगा। ये युवा आत्मनिर्भर युवा होगा। स्कूल के दौरन लिया गया प्रायोगिक ज्ञान छात्र को मदद करेगा कि किस प्रकार से वो आगे अपना व्यवसाय शरू करे और ये व्यवस्था भारतीयता को बढ़ावा देने वाला होगा, हमारे देश लघु कुटीर उद्योग में प्रशिक्षित कौशल विकसित युवा कार्य करेंगे जो कि उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाएगी साथ साथ स्थानीय लोगो के लिए नए रोजगार के अवसर भी अधिक पैदा करंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत को विश्वगुरु बनाने में मील का पत्थर साबित होगी पूरे देश मे ही नहीं अब पूरे विश्व भर इसकी तारीफ हो रही है, ये नीति भारत और भारतीयता को अपनी पहचान वापस दिलाएगी एवं यह राष्ट्र के पुनर्निर्माण में एक अहम कदम निभाएगी। भारत की इस शिक्षा नीति में सारे वो अंश जोड़े गए है जो जिसकी बात आजतक शिक्षाविदों ने की है इस शिक्षा नीति के बाद हमारा देश का युवा स्कूली शिक्षा के बाद ही आत्मनिर्भर होगा सम्रद्ध होगा एवं देश नए रोजगार उत्त्पन्न करने की ओर अग्रसर होगा।
भारत सरकार एवं इस नीति को बनाने वाले महानुभावो को देश आज कोटि कोटि धन्यवाद दे रहा है इस नीति में कई महान व्यक्तियो के वर्षों की मेहनत लगी है, आने वाले समय मे भारत सरकार से ये उम्मीद है जो नीति में लिखा गया उसका एक एक बिन्दु जल्द से जल्द देश की शिक्षा मे लागू किया जाए जिससे देश का युवा आत्मनिर्भर बनेगा। उससे हमारा आत्मनिर्भर भारत का सपना जल्द ही साकार होगा, नयी शिक्षा नीति के साथ साथ अब नयी रोजगार नीति भी आवश्यकता के अनुसार लायी जा सकती है। कोरोना महामारी के दौर में जहां पूरे विश्व का विकास रुक सा गया है वही दूसरी तरफ भारत विकास के नए आयाम और नए दरवाज़ों पर लगातार दस्तक देकर नये कीर्तिमान भारत स्थापित कर रहा है जिससे हमारे देश ने नयी पहचान पूरे विश्व मे बनाई है उसमे भारत की अपनी शिक्षा निति आना एक महत्वपुर्ण कदम उठाया गया है।
-मनीष जांगिड़, शोध छात्र, पर्यावरण विज्ञानं संस्थान, (जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली)