Wednesday, April 24, 2024
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धर्म – कर्म

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Aman Acharya
Aman Acharya
एक लेखक जो रहता नहीं बीहड़ में लेकिन जानता है बगावत करना।

कर्म जीवन का श्रृंगार है। यह ठीक उसी तरह है जैसे अनिश्चित आकार के पत्थरों को एक शिल्पकार अपनी कला से सुन्दर मूर्तियों में सृजित कर देता है, जैसे चट्टानों को काटकर सुगम पथ तैयार किया जाता है, जैसे माली एक बीज रोपित करता है तो एक छायादार वृक्ष का निर्माण होता है और ऐसे अनेकों उदाहरण है जिसमें कर्म करते हुए परिणाम तक पहुंचा जा सकता है। इस प्रक्रिया में समय लगता है, एक साधना की भाँति, खुद को समय के हवन कुण्ड में आहुत करना पड़ता है तब कहीं जाकर एक सुन्दर सृजन होता है। लेकिन विषय यह है कि वह क्या है जिससे सद्कर्म की प्रेरणा मिलती है? कौन है जो जीवन को दिशा प्रदान करता है? किसे पढ़, सुन और देख मनुष्य अपने कर्म निर्धारित करता है?

वह धर्म ही है जो कर्म का बोध करवाता है इसलिये कर्म को समझने के लिये धर्म को जानना जरूरी है। कर्म सदैव धर्म से जुड़ा रहा है। आम जीवन में इससे जुड़े अनेकों उदाहरण है। किसी भी परीक्षा में बैठने के लिये हम पहले उसकी नियमावली व दिशा निर्देशों को पढ़ते है और उसके अनुसार ही उत्तरपुस्तिका में प्रश्नों का उत्तर देते हैं। तो यह नियमावली धर्म है और उसके अनुसार परीक्षा देना कर्म। इसलिये जो लोग यह तर्क देते हैं कि धर्म को पढ़े बिना कर्म को समझा जा सकता है तो ऐसे लोग दिशाविहीन होकर रह जाते हैं। अतः धर्म मान्यताओं का हवाला देकर खिसक जाने वाला विषय नहीं है। यह प्रायोगिक, सत्यापित और सदैव प्रासंगिक रहने वाला सार्वभौमिक सत्य है और इसलिये इसे सनातन कहा गया है।

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