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ऐसे थे हमारे प्रणव दा
यह किस्सा राजनीतिक जीवन में कितना प्रेरणादायक है कि किस तरह अपने सिद्धांतों से समझौता किये बिना अपने मित्र धर्म का पालन किया जा सकता है और समाजिक जीवन में किस तरह से समाज के उत्थान का कार्य हम कर सकते हैं अपने पद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए।
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धर्म – कर्म
वह क्या है जिससे सद्कर्म की प्रेरणा मिलती है? कौन है जो जीवन को दिशा प्रदान करता है? किसे पढ़, सुन और देख मनुष्य अपने कर्म निर्धारित करता है?
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भारतीय समाज और नारी
बात करते हैं उस नारी शक्ति की जिनके लिये जीवन आज भी घर की चार दीवारी है, जहाँ महिला को महिला होने का अहसास पल पल करवाया जाता है, उसकी खूबियाँ मात्र इसी बात में निहित है कि उसके खाने में नमक पूरा है और बड़ों की मौजूदगी में घूंघट सदैव लगा रहता है। वो चाहे कितनी भी शिक्षित क्यूँ न हो, उसकी शिक्षा से धनार्जन का कोई संबंध नहीं माना जाता है।