रामखेलावन भारत देश का सामान्य नागरिक है। जीवन के दैनिक महायुद्ध में उलझा हुआ। इस महायुद्ध के बीच कठिनाई से समय निकाल कर दिन में 15-20 मिनट समाचार पत्र पढ़ लेता है या रेडियो सुन लेता है अथवा टेलीविज़न देख लेता है, आजकल कभी कभी वहाट्स एप भी चलाने लगा है। अनेक व्यक्तिगत और सामाजिक कठिनाइयों से उलझते हुए भी राम खेलावन को देश की चिंता रहती है। रामखेलावन विदेश नीति, अर्थनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों का ज्ञाता नहीं है किन्तु वह अपने जीवन की अनुभवजन्य समझ से प्रायः इन विषयों से जुड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर सटीक टिपण्णी कर देता है।
देशभक्ति रामखेलावन के व्यक्तिव का सुन्दरतम पक्ष है। उसकी देशभक्ति की परिभाषा नितांत सरल और सीधी है। जिस देश में, जिस भारत माँ की मिटटी में जन्मा, जिसके पञ्च तत्वों से शरीर मिला उस देश के उत्थान में ही मेरा उत्थान है। देश के प्रति जो भी मेरे करने योग्य है वो करने में कभी संकोच न हो, ढील न हो।
वस्तुतः देश पर किसी भी प्रकार का संकट आए तो ये रामखेलावन ही है जो चट्टान की तरह डट कर खड़ा होता है।
रामखेलावन के लिए देश की सीमाओं की सुरक्षा महत्वपूर्ण है। वह जानता है कि पाकिस्तान और चीन दो पड़ोसी देशों का व्यवहार और कृत्य भारत के लिए समस्या कारक हैं।
पाकिस्तान की समस्या पर रामखेलावन का मन मस्तिष्क एकदम स्पष्ट है। पाकिस्तान का जन्म मजहब के नाम पर भारत माँ के टुकड़े करने से हुआ। पाकिस्तान ने भारत से बैर के साथ ही या यूँ कहें कि हिन्दुओं के बैर के साथ ही जन्म लिया। भारत पर आक्रमण किये और हमेशा मुंह की खायी किन्तु फिर भी भारत भूमि के बड़े भाग पर कब्ज़ा कर के बैठा है।
पाकिस्तान ने छद्दम युद्ध का सहारा लिया। आतंकवाद को पाला पोसा। मजहब के नाम पर अलग देश लेने वालों में से कुछ जो चालाकी से बड़ी संख्या में इधर ही रह गए थे उनकी सहायता से काश्मीर से कन्याकुमारी तक अलग अलग स्थानों पर आतंकी घटनाएँ करायीं। काश्मीर घाटी में हिन्दुओं पर हुए नारकीय अत्याचारों से घाटी हिन्दुओं से रिक्त हो गयी और वो अपने ही देश में शरणार्थी बनकर घूम रहे हैं। पाकिस्तान के नाम से ही रामखेलावन को क्रोध और क्षोभ हो आता है।
रामखेलावन को विश्वास है कि अब पाकिस्तान एक नष्ट होता हुआ कमज़ोर देश है और भारत की समर्थ सेना कभी भी अपने क्षेत्र से पाकिस्तानी आतंक की फैक्ट्री को उखाड़ फेंकेगी और अपने क्षेत्र को मुक्त करा लेगी।
चीन की समस्या पर भी रामखेलावन अपने स्तर पर स्पष्ट है।
चीन विस्तारवादी नीति वाला देश है। उसने तिब्बत पर जबरन कब्ज़ा कर रखा है।प्र त्येक पड़ोसी देश की भूमि पर गिद्ध दृष्टि रखता है।भारत के तैंतालीस हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर जबरन बैठा हुआ है।पाकिस्तान का पक्षधर है। अविश्वसनीय व्यवहार वाला स्वकेंद्रित देश है।
रामखेलावन मानता है कि लम्बे समय तक चीन की समस्या के प्रति भारत का भाव आँख बंद कर बैठे कबूतर का भाव रहा है।
रामखेलावन ने अपने जीवन में आज से पहले भारत को चीन के साथ इतनी सख्ती से बात करते नहीं देखा। भारत का ये उन्नत भाल उसे भा रहा है।
पतंग के माझे से होली की पिचकारी तक चाइना की हो गयी किसी ने आह तक नहीं की आज जब सब बदल रहा है सब कुछ भारत में ढूँढा जा रहा है तो रामखेलावन को एक आत्मिक शांति की अनुभूति हो रही है।
रामखेलावन तब चकरा जाता है जब समाचार पत्र या टेलीविज़न पर अपने ही कुछ लोगों को चीन के समर्थन में खड़ा देखता है।
किसी ने 1962 की हार का सबक ऐसे याद कराया जैसे भारत 1962 में अटका हुआ हो और चीन 2020 में आ गया हो। किसी ने भारत और चीन के सैन्य खर्च और संसाधनों की तुलना ऐसे करी जैसे युद्ध जीतने का एक मात्र आधार सैन्य खर्च या सेना के साजो सामान का हिसाब हो।किसी ने कहा कि चीन हमारी तुलना में कहीं विकसित और अंतर्राष्ट्रीय दबदबे वाला देश है मानों कोरोना से लड़ रहा विश्व चीन के सामने हाथ बांधे खड़ा हो।चीनी सामान के बहिष्कार की बात पर तो एक पूरा वर्ग मानों उबल ही पड़ा, ऐसे कैसे कर देंगे बहिष्कार? इतना दर्द जैसे इनका ही पैसा चीन की कंपनियों में लगा है।
ये सब सुन कर रामखेलावन के चीन के प्रति अपने विचारों में तो कोई बदलाव नहीं होता लेकिन एक नयी चिंता उसे घेर लेती है। अपनी ही धरती के विरुद्ध प्रलाप करने वाले इन लोगों को ढोते हुए ही चीन की समस्या का समाधान किया जाना है।
यदि ऐसा है तो रामखेलावन को अपनी शक्ति कई गुना बढ़ानी होगी। माँ भारती की कृपा से रामखेलावन सतर्क है।
(रामखेलावन एक प्रतीक नाम है, नारीवादी मित्र इसको रामसखी कहकर भी पुकार सकते हैं)