तुलसी चाहते तो वेद, पूरण, उपनिषद, गीता या महाभारत को लोकवाणी या जनवाणी में लिख सकते थे, क्या कठिन था उनके लिए किन्तु उन्होंने रामकथा को चुना क्योंकि रामकथा, मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा है, रामकथा राष्ट्रनिर्माण की कथा है, रामकथा असुरों के सर्वांग उन्मूलन की कथा है और तुलसी के समकालीन समाज को उन मूल्यों की आवश्यकता थी जो पद दलित हो चुके हिन्दू समाज को मर्यादा में बांधकर उसकी शक्ति को पुनः सहेजने में सहायक सिद्ध हों।
वर्तमान में जब सामाजिक और पारिवारिक जीवन अन्यान्य कारणों से इतना जटिल हो गया है तो क्यों न अपने अतीत से कुछ सीख लें जो जीवन को कानूनी दुरुहता से बचा कर रख सके।
भारतीय परंपरा के प्रत्येक पर्व के पीछे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक हेतु होते हैं। पांच पर्वों के समुच्च्य वाली दीपावली तो अपने आप में भारतीय जीवन मूल्यों का सम्पूर्ण ग्रन्थ है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के स्वागत में अमेरिका का भारतीय समुदाय उत्साह में है। भारत माता की जय और वन्दे मातरम के नारों से मन झूम उठता है। गर्व की अनुभूति होती है जब विश्व के इतने शक्तिशाली राष्ट्र की धरा पर वन्दे मातरम बोला जाए। अच्छे दिन यही तो हैं।
एक बार धर्मान्तरण कर लिया तो हिन्दू लड़की को विवाह से मिलने वाले सारे अधिकार खो दिए, शरई अदालत के सामने तो उनकी अपनी औरतें ही लाचार हैं, धर्मान्तरित को क्या अधिकार मिलेगा?
हम उस पीढ़ी से हैं जिसने बचपन में लोकपर्व बहुत आनन्द लिया है और अब धीरे धीरे इसका विलोपन सा होते देख रही है। तब ये छोटे छोटे लोकपर्व भी महापर्व हुआ करते थे।
मानव जाति और संस्कृति की कतिपय समस्याएं विश्व में मानवों की जनसंख्या से ही सम्बंधित हैं। यदि जनसँख्या अनियंत्रित होकर बढ़ती रही तो संसाधनों का अभाव होगा और जीवन कठिन होता जायेगा।