Saturday, November 2, 2024
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तीन ऐसे लोग जिन्होंने बताया कि पराजय अंत नहीं अपितु आरम्भ है: पढ़िए इन तीन राजनैतिक योद्धाओं की कहानी

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में पराजय का सामना अवश्य करना होता है। इनमें से कुछ ऐसे लोग होते हैं जो पराजय से सीख लेकर अपनी विजय का मार्ग प्रशस्त करते हैं और कुछ लोग उसी पराजय को अपने जीवन का सत्य मान लेते हैं। यह पराजय उसे किसी भी क्षेत्र में प्राप्त हो सकती है किन्तु राजनैतिक पराजय कई अर्थों में विशेष है। यह पराजित व्यक्ति की परीक्षा लेती है। उसकी जीवटता और धैर्य को परखती है और पुनः उसे अवसर प्रदान करती है।

इस लेख में ऐसे तीन लोगों की कहानी है जिन्होंने पराजय को अपना अंतिम सत्य न मानते हुए उसे चुनौती दी और अपनी सफलता का नया अध्याय रचा। ये तीन लोग हैं केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी, दिल्ली भाजपा के युवा एवं ऊर्जावान नेता एवं समाजसेवी कपिल मिश्रा एवं तजिंदर पाल सिंह बग्गा। इन तीनों की कहानी बड़ी ही रोचक एवं प्रेरणादायी है। स्मृति जी ने 2014 में अमेठी से राहुल गाँधी के विरुद्ध चुनाव लड़ा और हार गईं किन्तु इसके बाद उन्होंने अमेठी की सेवा में कोई कमी नहीं रखी और 2019 के लोकसभा चुनावों में राहुल गाँधी को उन्ही के पारिवारिक चुनावी गढ़ कहे जाने वाले अमेठी लोकसभा क्षेत्र से पराजित कर दिया।

कपिल मिश्रा और तजिंदर पाल सिंह बग्गा भले ही दिल्ली विधानसभा चुनावों में हार गए हों किन्तु दिसंबर और जनवरी में दिल्ली के अंदर हुए हिन्दू विरोधी दंगों और वर्तमान में कोरोना संकट के समय जिस तत्परता और समर्पण भाव से ये दोनों कार्य कर रहे हैं, उतनी सक्रियता तो इन्हे हराने वाले नेता नहीं दिखा रहे हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए यह कहा सकता है कि विजयश्री इन दोनों की प्रतीक्षा में है।  

इस लेख को पढ़िए क्योंकि इनकी कहानी मात्र राजनैतिक नहीं है और न ही चुनावों  से सम्बंधित है अपितु ये तीनों पराजय से आगे बढ़कर विजयश्री का आलिंगन करने की शिक्षा देते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं श्रीमती स्मृति ईरानी की। अपने जीवन के शुरूआती समय में इन्होने जो भी किया उसके विषय में सभी को ज्ञात है। मैकडॉनल्ड के एक आउटलेट में काम करने से लेकर एकता कपूर के डेली सोप में लीड रोल करने की यात्रा लगभग सभी जानते हैं लेकिन उनकी वो विशेषताएं जिनसे उन्हें सफलता प्राप्त हुई, उसके विषय में कम बात हुई है।

वास्तव में स्मृति जी हार न मानने वाली महिलाओं में एक हैं। राजनैतिक जीवन के प्रारंभिक चरण में उनसे जो गलतियां हुईं, उन्हें स्वीकार करने में स्मृति जी सदैव मुखर रहीं। इसके पश्चात उन्हें जो भी जिम्मेदारियां मिली उनका निर्वहन उन्होंने पूरी तत्परता से किया। स्मृति जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे लगातार अपनी स्किल को अतीत से बेहतर बनाने का प्रयास करती रहती हैं। लगातार बदलते राजनैतिक परिदृश्य में कोई भी व्यक्ति स्थिर नहीं रह सकता है और इसी सिद्धांत पर स्मृति जी की कार्य प्रणाली आधारित है। उनमें असफलताओं को सकारात्मक रूप में स्वीकार करने की अद्भुत क्षमता है। लगातार कर्त्तव्य पथ पर चलायमान रहने के कारण उन्हें जो भी पद मिले, वो उतने में ही सीमित नहीं हुईं। चाहे वो भाजपा महिला मोर्चा के अध्यक्ष का पद हो, पार्टी सचिव का पद हो या राज्यसभा सदस्य का, स्मृति जी ने पूरी क्षमता के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वहन किया। संतुष्टि व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकती है और जब राष्ट्र उत्थान का कार्य हो तब तो कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए। 2014 लोकसभा चुनाव में स्मृति जी ने अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया। अमेठी, कांग्रेस और खासकर गाँधी परिवार का गढ़ कही जाती थी। इस चुनाव में राहुल गाँधी विजयी हुए किन्तु अमेठी में तो कोई और कहानी लिखी जा चुकी थी। पराजय के बाद भी स्मृति जी ने अपनी कर्मभूमि का त्याग नहीं किया अपितु दोगुनी मेहनत से अमेठी की सेवा में लग गईं। इस सेवा का परिणाम 2019 में उन्हें मिला जब उन्होंने भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा उलटफेर किया। राहुल गाँधी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यह जान चुके थे कि उनकी हार निश्चित है और इसी कारण उन्होंने अमेठी के साथ वायनाड को चुना। हुआ भी ऐसा ही। राहुल गाँधी अंततः अमेठी से चुनाव हार गए। वास्तव में यह स्मृति जी की विजय मात्र नहीं थी अपितु 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस और राहुल गाँधी के अहंकार की पराजय के परिचायक थे।

स्मृति जी की राजनैतिक यात्रा इतनी भी सरल नहीं थी किन्तु उन्होंने कभी इस यात्रा को कठिन भी नहीं माना। कितने ही आरोपों और अभद्र टिप्पणियों को सहते हुए वो लगातार आगे बढ़ती गईं। स्मृति ईरानी, भारतीय महिलाओं के स्वाभिमान और सामर्थ्य का प्रतीक हैं। भारतीय राजनीति की इस आयरन लेडी का जीवन, उस संकल्प शक्ति का उदाहरण है जिससे किसी भी कठिन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।        

कपिल मिश्रा की कहानी भी कम रोचक नहीं है। प्रत्यक्ष राजनीति  का प्रारम्भ आम आदमी पार्टी से करने वाले कपिल मिश्रा बहुत दिनों तक अरविन्द केजरीवाल के साथ काम नहीं कर पाए। आम आदमी पार्टी में छाए भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के विषैले वातावरण को छोड़ देने वाले कपिल मिश्रा अंततः अपने घर लौट आए। घर इसलिए क्योंकि सनातन हिन्दू धर्म और राष्ट्रवाद की बात करने वाले के लिए भाजपा एक परिवार के जैसी है। कपिल मिश्रा अकेले नहीं हैं। कई ऐसे लोग हैं जो राष्ट्रीय पार्टियों में मिले बड़े पदों को छोड़कर भाजपा आ चुके हैं क्योंकि भाजपा में उन्हें खुलकर अपने धर्म और राष्ट्र के हित की बात करने का अवसर प्राप्त होता है।

कपिल मिश्रा स्वयं दिल्ली के करावल नगर विधानसभा से चुनाव जीतने के बाद विधायक बन चुके थे लेकिन सत्य के समर्थन में रहने वाला व्यक्ति बहुत दिनों तक असत्य के महल में नहीं रह सकता। कपिल मिश्रा ने भी आम आदमी पार्टी छोड़ दी और बहुत दिनों तक स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहे। सीएए के लागू होने के बाद दिल्ली में भयंकर हिन्दू विरोधी दंगे हुए। इन दंगों में जहाँ अन्य राजनैतिक हस्तियां निष्क्रिय पड़ी रही वहीँ कपिल मिश्रा लगातार हिन्दुओं के पक्ष में लड़ते रहे। कई बार तो कपिल मिश्रा को ही इन दंगों का अपराधी बनाकर उनके विरुद्ध षड़यंत्र किए गए। दंगों के बाद उन्होंने हिन्दुओं की सहायता के लिए भी प्रयास किए। हिन्दू परिवारों के आर्थिक नुकसान की भरपाई करने के लिए उन्होंने फंड इकठ्ठा किया। दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में कपिल भाजपा की ओर से चुनाव लड़ने आए। दुर्भाग्य से वो चुनाव हार गए किन्तु उनकी कार्यशैली में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं आया। वो लगातार लोगों के हित के लिए कार्य करते रहे। Covid19 के संकट के दौरान भी कपिल न केवल अपनी विधानसभा अपितु पूरी दिल्ली में ही राहत कार्य में सहायता कर रहे हैं। इसके लिए वो जमीनी स्तर पर तो जुटे ही हुए हैं, साथ ही सोशल मीडिया के मंचों के माध्यम से लोगों तक सहायता पहुँचाने का कार्य भी पूरी तत्परता से कर रहे हैं। आज कपिल मिश्रा मात्र दिल्ली ही नहीं अपितु भारत के दूसरे हिस्सों में भी प्रसंशनीय हैं।

इस लेख में जिन तीन योद्धाओं की बात की गई है उनमें तजिंदर पाल सिंह बग्गा का नाम भी है। ये भाजपा के भविष्य के बड़े एवं प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं। 16 वर्ष की आयु से राजनीति की शुरुआत करने वाले तजिंदर जल्दी ही दिल्ली में प्रभावशाली होते गए। भारत विरोधियों के लिए तजिंदर एक बुरे सपने के जैसे हैं। चाहे वो प्रशांत भूषण को पीटने की बात हो या मणिशंकर अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर की गई अशोभनीय टिप्पणी के विरोध में कांग्रेस मुख्यालय के बाहर चाय बेचने की बात, बग्गा जी सदैव ही मुखर विरोधी रहे हैं।

बग्गा जी की सबसे बड़ी विशेषता है सोशल मीडिया में भारत के कोने कोने तक उनकी पहुँच। ट्विटर के माध्यम से उन्होंने कई लोगों की सहायता की है। सहायता के लिए सोशल मीडिया मंचों का सबसे बेहतर उपयोग करना बग्गा जी अच्छी तरह से जानते हैं। दिल्ली दंगों के दौरान वामपंथी नैरेटिव को तोड़ने और हिन्दुओं के साथ हुए अन्याय को सबके सामने लाने में बग्गा जी का योगदान सराहनीय था। 2017 में तजिंदर को दिल्ली भाजपा का प्रवक्ता बनाया गया। उसके 3 वर्षों के पश्चात ही 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्हें भाजपा की ओर से हरिनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं रहीं और बग्गा जी चुनाव हार गए।

लेकिन चुनाव हारने के पश्चात वो शांत नहीं बैठे बल्कि उन्होंने अपनी विधानसभा के लिए जो भी योजनाएं तैयार की थीं, उन्हें पूरा करने में जुट गए।

तजिंदर पाल सिंह बग्गा एक सोशल मीडिया योद्धा होने के साथ जमीनी स्तर पर सक्रिय नेता हैं। सोशल मीडिया में हिन्दुओं के हित की बात को प्रखरता से रखने वालों में तजिंदर प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं। हाल ही में टिकटॉक जैसे चाईनीज़ ऐप के माध्यम से अश्लील और हिंसक वीडियो प्रसारित करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही में इनका प्रमुख योगदान है।   

भारतीय राजनीति के ये तीन ऐसे उदाहरण हैं जिनमें शिखर तक पहुंचने की असीम क्षमताएं हैं। ये भारत के लिए अपने कर्तव्यों को समर्पित कर चुके हैं। जो हिंदुत्व के लिए मुखर है वही सबसे बड़ा राष्ट्रवादी है और अपने धर्म के प्रति गौरव का भाव इन तीनों के भीतर भरा हुआ है। श्रीमती स्मृति ईरानी जहां केंद्रीय मंत्री पद पर आसीन हैं वहीं आने वाले समय में श्री कपिल मिश्रा और तजिंदर पाल सिंह बग्गा जी, दोनों ही, दिल्ली ही नहीं अपितु राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में अपना योगदान दे सकते हैं। ऐसा तभी संभव होता है जब कोई जनप्रतिनिधि विजय या पराजय की चिंता किए बिना अपने कर्त्तव्य पथ पर गतिमान रहता है।

कहा भी गया है कि “कर्मवीर को फर्क न पड़ता, किसी जीत या हार का”।

इसलिए जीवन में भी हमें यह सीख लेना चाहिए की यदि विजय प्राप्त हो तो राहुल गाँधी न बने किन्तु यदि पराजय प्राप्त हो तो स्मृति ईरानी, कपिल मिश्रा और तजिंदर पाल सिंह बग्गा अवश्य बने जिससे अगले प्रयास में विजयश्री का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।   

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