भारत, चीन के रिश्ते की कड़वाहट किसी से छुपी नहीं है। दोनों देश एक दूसरे को हर फ्रंट पे मात देने में लगे हैं, पर जीत सिर्फ भारत की ही हो रही है, वो चाहे एलएसी पे हो या फिर कूटनीतिक तौर से हर तरफ भारत, चीन पे भारी दिखाई से रहा है। चाइनीज वायरस से फैले महामारी में पूरी दुनिया उससे दो-दो हाथ करने को तैयार है। अंतरराषट्रीय समुदाय में उसकी घोर निंदा भी हो रही है और उसे सीधा जिम्मेवार भी माना जा रहा है। दुनिया का ध्यान भटकने के लिए वो नए नए पैतरे गढ़ रहा है। कभी नेपाल के माध्यम से तो अभी लद्दाख रीजन में एलएसी पे हलचल तेज कर के दुनिया का ध्यान दूसरी और करना चाहता है। भारत ने तो उसे शांति का पाठ पढ़ाया, भगवान बुद्ध के माध्यम से उसे सभ्यता का मार्ग दिखाया। वो हमे अब युद्ध के लिए ललकारेगा तो उसे अब युद्ध और दण्ड का भी पाठ पढ़ाया जाएगा।
10 मई से लद्दाख के दो (गलवान घाटी और फिंगर 4) इलाकों पे विवाद छिड़ा, अचानक से चीनी सैनिकों ने वहाँ डेरा डाल दिया और हमारे वीर जवानों के साथ बदसुलूकी करने की कोशिश की, पर उसे जवाब भी वैसा ही दिया गया। दुनिया में अपने सैनिक की वाहवाही करने से ना थकने वाले चीन कि ड्रैगन ने तो सारी हदें तब पार कर दी, जब उसने भारतीय सैनिकों पे हलमा करने के लिए लाठी, कटिले तार व पत्थर का प्रयोग किया। क्या ये किसी सेना का बर्ताव है या फिर जिहादियों का? आतंकवादियो का? चीनी ड्रैगन अब आतंकवादियो जैसा सलूक करने लगी थी। ये कैसी मानसिकता है, जो अपने सैनिकों को ऐसी छूट दे देती? यही है हान मानसिकता, दरअसल बात ये है कि चीनी इतिहास में हान साम्राज्य हुआ करता था। उनसे जब तक राज किया चीन के लिऐ वो सुनहरा युग था। और आज के चीन में सबसे ज्यादा हान समाज के ही लोग है, वैसे लोग बड़े बड़े पदों पे बने हुए है। हान साम्राज्य की सोच ये कहती है कि तुम विश्व में सर्वश्रेष्ठ हो बाकी दुनिया में जितने भी प्राणी है वो तुम्हारे सामने तुक्ष है (जिसे निकृष्ट भाव कहते है) और यदि तुम्हें ऐसा लगे कि तुमसे ऊपर कोई है तो उसे किसी भी स्थिति में अपने नीचे लाओ और अपनी उच्चता सिद्ध करो।
वो भूल गया की इस समय देश की सेवा में जो बैठा है उसने खुद को चौकीदार बोला है, और वो हर भाषा जनता है जो उनके चौकीदारी के धर्म का वाहन करने के लिए आवश्यक है। नमो नीति से भारत ने उसे चौतरफा मात दी है, वो चाहे नेपाल ने चीन के दबाव के कारण भारत के कुछ हिससों को अपने नक्से में दिखाना हो, या एलएसी पे तनाव बढ़ाना हो। भारत ने उसे हर तरफ घेर ही लिया और बता दिया कि जिसने तुमको बुद्ध दिया है, वो तुम अब दण्ड भी देने को तत्पर है।
22 मई को नेपाल के लोअर हाउस में बिल पास होना था जिसमें भारत के लीपलेख, लिम्पियाधुरा और काला पानी को अपना हिस्सा बताया, परंतु अब स्थिति ये है वो मानचित्र अब कूड़ेदान में डाल दी गई है, और इसे कूड़ेदान में किसी और ने नहीं बलकि खुद वहाँ पे प्रधानमंत्री ने डाला है। इस से बौखला कर चाइनीज वायरस के जन्मदाता, ड्रैगन के रूप में आतंकवादी पालने वाले चीन के राष्ट्रपति ने 24 मई को लाठी, कट्टिले तरो, पत्थरो वाली अपनी ड्रैगन को हुक्म जाती किया, की युद्ध के लिए तैयार रहे, उसे लगा कि भारत डर जाएगा और अपनी सेना को पीछे कर लेगा, पर उसे कहा पता था कि हान का जवाब देने केलिए नमो नीति तैयार कर के रखी गई थी। फिर क्या था भारत ने अपने सैनिक को साजो सामान के साथ एलएसी पे पहुंचाना शुरू कर दिया वो चाहे सड़क से हो या हवाई मार्ग से, जब चीनी हेलीकॉप्टर एलएसी पे पहुंची तो भारत ने लड़ाकू विमान उतार दिए। और भारत ने उसे बता दिया कि इस बार अगर आंख दिखाओगे तो उन आंखों को निकालने कि कला हम जानते है, और यदि शांति का प्रस्ताव दोगो तो हम वसुधैव कुटुंबकम् का सम्मान भी जानते है।
अब परिस्थिति ऐसी है की कल ही चीन के रक्षा मंत्री ने बयान जारी कर कहा हैं कि दोनों देश एक समान सैन्य व कूटनीतिक क्षेत्र में क्षमता रखते हैं, एलएसी पे जारी तनाव हमरे लिए चिंता की बात हैं और चीन ये मानता है कि दोनों देश बात चित से इस मामले को सुलझाने में सक्षम हैं। जी हाँ बिल्कुल सक्षम है यदि हान समाज जैसे मानसिकता ना रखी जाए तो। यदि चीन फिर से कुछ करने कि कोशिश करता है तो भारत सरकार इस बार अपने अनुसार और अपने अनुपात में उसे सबक जरूर सिखाएगा ऐसी हम आशा करते है नमो सरकार से।
जय हिन्द।