Thursday, March 28, 2024
HomeHindiचुनाव के बाद के काैन कितना मजबुत?

चुनाव के बाद के काैन कितना मजबुत?

Also Read

देश के आम चुनाव खत्म हो चुके है और देश ने भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मे विश्वास जताया हैं। देश की जनता ने पिछली बार से भी अधिक जनमत के साथ देश की बागड़ोर मोदी- शाह की जोड़ी को सौंपी हैं। नरेन्द्र मोदी देश के एकमात्र ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री है जिन्हे दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता मिली हैं।  2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत जितनी अप्रत्याशित थी उससे भी अधिक राजनैतिक विशेषज्ञों और आमजन मानस को जिस चीज ने चौंकाया वो थी देश की सबसे पुरानी और सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस को इतिहास के सबसे न्यूनतम सीटो के साथ संसद में बैठना। कांग्रेस को 44 सीटे मिली जो कुल सीटों को 10 प्रतिशत भी नहीं थी परिणाम स्वरुप 2013 की सत्ताधारी पार्टी 2014 में विपक्ष का नेता तक नहीं बना पाई। लेकिन मोदी सरकार के 5 वर्ष बीतने के बाद भी कांग्रेस पार्टी और विपक्ष वो कमाल नहीं कर पाया जिसकी उम्मीद पुरा विपक्ष कर रहा था। परिणाम में मोदी टीम को 303 सीटें मिली जो बहुमत के आंकडे 272 से बहुत अधिक हैं और इस बार भी कांग्रेस केवल 52 सीटो पर ही सिमट गई।

अपनी अप्रत्याशित हार के बाद भी विपक्ष की स्थिति बहुत बुरी हैं क्योंकि संख्या में कम होने के बाद भी जिस विपक्ष को सत्ताधारी पार्टी से लड़ना चाहिए वह खुद के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही हैं लेकिन लोकसभा में विपक्ष के रुप में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को आंतरिक कलह और भीतरी बगावती सुरों से बचाव का कोई रास्ता सुझ नहीं रहा हैं. इसका कारण शायद राहुल गांधी के बाद गांधी परिवार का कोई सदस्य दिखाई ना देना है जिसे कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा सके। 2019 के चुनाव से पहले प्रियंका गांधी के तौर पर कांग्रेस को शायद एक मास्टर कार्ड़ दिखाई देता था इसीलिए प्रियंका गांधी को चुनाव से ठीक पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाया गया था लेकिन प्रियंका से जिस चमत्कार की उम्मीद कांग्रेस कर रही थी परिणाम उससे ठीक उल्ट रहें। पिछले 2014 के चुनावों में कांग्रेस के पास जहां रायबरेली और अमेठी की सीटे थी वहीं 2019 के चुनावों में कांग्रेेस के युवा अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी परिवारिक सीट अमेठी भी नहीं बचा पाएं। इसलिए लगभग 22 वर्षो के बाद बहुत जल्दी कांग्रेस को गैर गांधी अध्यक्ष मिल सकता हैं। लेकिन 1996 के सीताराम केसरी विवाद के बाद से कांग्रेस शायद ही गैर गांधी को अध्यक्ष पद बनाने की हिम्मत करेंगी।

कांग्रेस के इतर लोकसभा मेें पार्टियों की बात करें तो केवल द्रमुक (23) और तृणमूल कांग्रेस (22) के पास ही कुछ दम दिखाई देता है जो कुछ विरोध कर सकती हैं। लेकिन पंं. बंगाल के वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है तृणमूल कांग्रेस शायद ही कांग्रेस पार्टी का साथ दें। ऐसी स्थिति में बिखरे हुए विपक्ष का सीधा-सीधा लाभ केंद्रीय सरकार को होगा। जिससे राजग आसानी से लोकसभा में अपने बिल पास करवा लेगी लेकिन राज्यसभा में बहुमत हासिल करने में राजग को 2020 तक का इंतजार करना होगा। लेकिन अगर बीजद और वायएसआर कांग्रेस भी भाजपा को साथ देती है या वॉक आऊट कर जाती है तो राज्यसभा में भी राजग अपने बिल पास करवा पाएगी.

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular