लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार का अंतरिम बजट कई मायनों में ऐतिहासिक है. मिडिल क्लास करदाताओं के लिए कर-मुक्त आय की सीमा सीधे ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख करना अपने आप में क्रांतिकारी कदम है और आज़ाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. बजट में और भी बहुत से क्रांतिकारी फैसले लिए गए हैं. किसानों, गरीबों,पेंशन भोगियों और मध्यम वर्ग के लिए बजट में जो तरह तरह की रियायतें दी गयी हैं, उनके बारे में मीडिया में पहले से ही काफी चर्चा हो रही है. यहां मैं सिर्फ उन ख़ास बातों का जिक्र करना चाहूंगा जिनका उल्लेख करना बहुत जरूरी है और जिन्हे सिर्फ मोदी सरकार ही अंजाम दे सकती थी.
कांग्रेस के शासन काल में पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने नेशनल डवलपमेंट कौंसिल की मीटिंग को सम्बोधित करते हुए यह गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर एक भयंकर ऐतिहासिक भूल कर दी थी कि इस देश के सभी संशाधनों पर सिर्फ अल्पसंख्यंकों का (खासकर मुसलमानों का) पहला हक़ है. इस बजट में इस भयंकर भूल को सुधारा गया और इस बयान को इस तरह से संशोधित किया गया- “इस देश के सभी संसाधनों पर पहला हक़ गरीबों का है.”
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में 95% भ्रष्टाचार कर-निर्धारण को लेकर होता है. बजट में यह व्यवस्था करने की बात कही गयी है कि अगले दो सालों में सभी कर-निर्धारण के मामले ऑनलाइन सिस्टम से निपटाए जाएंगे जिसमे करदाता और इनकम टैक्स अफसर की मुलाकात के बिना ही कर-निर्धारण की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा. यह सभी को मालूम है कि इनकम टैक्स में रिश्वत का लेन-देन कर-निर्धारण की प्रक्रिया के दौरान ही होता है. जब यह प्रक्रिया ही ऑनलाइन हो जाएगी तो इस भ्रष्टाचार पर काफी हद तक लगाम लग जाएगी.
अभी तक अगर किसी के दो रिहायशी घर होते थे तो एक घर को रिहायशी घर माना जाता था लेकिन दूसरे घर पर यह मानकर टैक्स वसूला जाता था मानो वह किराये पर उठा हुआ है (चाहे वह घर किराये पर उठा हो या न उठा हो या खली ही पड़ा हो). इस गैर-जरूरी टैक्स को अब पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है.
जिन लोगों ने बजट को टी वी पर लाइव देखा होगा, उन्होंने इस “ऐतिहासिक बात” पर भी गौर किया होगा कि जब बजट प्रावधानों पर सदन के अंदर और सदन के बाहर सवा सौ करोड़ लोग खुश हो-होकर तालियां बजा रहे थे, उसी समय राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे अचानक ही इस तरह मुंह बनाकर बैठे हुए थे, मानो उन पर कोई जबरदस्त “डिप्रेशन” का दौरा पड़ा हो. लोकसभा चुनावों से पहले ही दीवार पर लिखी इबारत को शायद यह दोनों नेता पढ़ने में पूरी तरह कामयाब हो गए हैं और चुनावों का बिगुल बजने से पहले ही इन्होने अपनी हार मान ली है. जिन्हे मेरी बात पर यकीन न हो वह बजट सत्र की कार्यवाही का वीडियो गूगल पर जाकर यह देख सकते है कि बजट में मिल रही चौ-तरफ़ा राहतों-रियायतों की मार से यह दोनों नेता किस कदर सदमे में आ गए थे.
इन दोनों की दयनीय हालत देखकर सिर्फ यही कहा जा सकता था :
कांग्रेस ने मानी हार !
मोदी फिर इस बार-400 के पार !!