भाजपा ने जब कश्मीर में गवर्नर रूल लगाया था, उस बात को अब लगभग तीन महीने बीत चुके हैं. गवर्नर रूल लगाकर कश्मीर को अगर सेना के सुपुर्द किया गया होता तो आज कश्मीर घाटी से देशद्रोहियों और आतंकवादियों का नमो निशाँ मिट गया होता. यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि कश्मीर घाटी में रहने वालों में से लगभग ९० प्रतिशत लोग या तो आतंकवादी हैं या फिर देशद्रोही हैं और मृत्यु दंड के अधिकारी हैं. कश्मीर में सेना के जवान और पुलिस कर्मी दोनों ही कश्मीरी आतंकवादियों के निशाने पर हैं – कभी इन्हे मार दिया जाता है और कभी इन्हे कश्मीरी आतंकवादियों द्वारा अगवा कर लिया जाता है.
कश्मीर में महबूबा मुफ्ती, अब्दुल्ला बाप-बेटे, गुलाम नबी आज़ाद और हुर्रियत के नेता अक्सर ही ऐसे बयान देते रहते हैं, जिन्हे सिर्फ देश विरोधी कहा जा सकता है. इन सभी लोगों को सरकार ने करदाताओं के पैसे पर सुरक्षा भी प्रदान की हुई है. इन सभी लोगों की सुरक्षा हटाकर इन्हे सेना के हवाले करने की बजाये, सरकार इधर उधर की बातों में अपना समय ख़राब कर रही है.
कश्मीर की बात छोड़ दें तो कमोबेश यही हाल न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में गैरजरूरी दखलंदाज़ी और अतिक्रमण का है, जिससे निपटने में भी सरकार फिलहाल तो नाकाम नज़र आ रही है. जितने लोगों ने भी पिछले ६० सालों में अरबों खरबों का भ्रष्टाचार किया था, वे सब के सब जमानत पर रिहा कर दिए गए हैं और लगभग आज़ाद घूम रहे हैं. खुद प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश करने वाले अर्बन नक्सलियों को “सामाजिक कार्यकर्त्ता” बताकर महिमामंडित किया जा रहा है और उन्हें “हाउस अरेस्ट” की सुविधा प्रदान की जा रही है, जबकि देश के किसी भी कानून में इस तरह के “हाउस अरेस्ट” का कोई प्रावधान नहीं है. सरकार इन सब बातों से यह कहकर अपना पल्ला छुड़ाने में लगी हुई है कि जो काम अदालतें कर रही हैं, उसमे सरकार क्या कर सकती है. लेकिन देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार के पास सबसे अधिक अधिकार होते हैं, यह सभी को मालूम है. न्यायपालिका के साथ कैसे निपटा जाए, इसका फैसला सरकार को करना होता है, जनता को नहीं. जनता का काम सरकार को चुनने का है और जनता के प्रति जबाबदेही सरकार की है, न्यायपालिका की नहीं.
यह ठीक है कि अगले लोकसभा चुनावों में देश की जनता के पास भाजपा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है क्योंकि बाकी सभी राजनीतिक दल न सिर्फ भ्रष्ट हैं, पूरी तरह से देशद्रोह के रास्ते पर भी चल रहे हैं और किसी भी हालत में जनता इन सभी लोगों की जमानत जब्त करवाने का मन बना चुकी है. लेकिन भाजपा सिर्फ TINA फैक्टर के सहारे अगर हाथ पर हाथ धरे बैठी रही तो बात बिगड़ भी सकती है.
कश्मीर समस्या और न्यायपालिका से निपटने के साथ साथ भाजपा को धारा ३७०, सामान आचार संहिता और राम मंदिर जैसे मुद्दों को निपटाने के लिए भी गंभीर प्रयास करने चाहियें. यह ठीक है कि यह सारे काम एक साथ और चुनावों से पहले अंजाम नहीं दिए जा सकते, लेकिन सरकार इनमे से कुछ कामों को शुरू करके देश की जनता के सामने अपनी तस्वीर तो साफ़ करे. अभी तक तो देश की जनता के सामने भी सरकार की मंशा को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है. देश की जनता के दिल का हाल नीचे लिखी हुई पंक्तियों में बेहतर तरीके से बयान किया जा सकता है:
समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई
कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पण नहीं मिलता