रवीश कुमार का बहुत बड़ा फैन था और रहूंगा ।
रवीश कुमार ने कहा हमारा मीडिया अंधेरे मे चला गया है, सही कहा जहा एक ओर मीडिया का एक तबका कन्हैया को बेगुनाह साबित कर रहा है वही दूसरा उसे गद्दार । मीडिया मे आपस मे ही मतभेद है ।
वकीलो द्वारा पटियाला हॉउस कोर्ट मे मीडिया कर्मियो के साथ मार पीट कतई ही सही नही है, वकीलो पर इल्ज़ाम है की वे खुद जज बन गए है । सारी गलती वकीलो की ही है । परंतु सवाल कुछ मीडिया से पूछना भी ज़रूरी है ।
मीडिया को टीबी हो गया है या रवीश के मुताबिक टीवी को टीबी हो गया है, पर मीडिया को बीमार करने के लिए ज़िम्मेदार कौन है ? क्या मीडिया कर्मी खुद नही हैं? आप कहते है की लोग आपको क्यों देखते हैं, क्योंकि आप दिखते है ।आप दिखते है एक ज़िम्मेदारी के साथ जो कहीं न कहीं छूटती दिखती है आज ।
अरनब के तरीके से भले ही बहुत लोगो को तकलीफ हो । बरखा दत्त ने तो ट्विट्टर के सहारे अपना विरोध अरनब के लिए भी व्यक्त किया है । क्या टीआरपी की लड़ाई ही इसकी वजह नही है ? क्यों मीडिया आजकल इतना सेलेक्टिव हो गया क्यों सिर्फ सेलेक्टिव मुद्दों पर ही मीडिया वाले राय रखते और बनवाते हैं ?
क्यों रवीश कुमार अदालत से पहले कनहैया को बेगुनाह साबित करने मे लगा है ? कल कन्हैया भले ही बेगुनाह साबित हो जाये इसका ये मतलब नहीं कि आप उसे आज ही बेगुनाह करार दे दें । आपसे अपेक्षा है की आप निस्पक्ष हो, सरकार विरोधी नहीं । बेशक़ सरकार से जटिल सवाल पूछना ज़रूरी है पर सिर्फ विरोध करना नही ।
क्यों नहीं टीवी वाला मीडिया सरकार की उपलब्धियों को उतनी ही उत्साह के साथ दिखाता है जितना की वो खामियों पर डिबेट करता है ? क्या इस नकारात्मकता का कारण मीडिया ही नही है ?
किसी होटल के मेनू कार्ड जैसे हो चला है ये चैनेल । सरकार का समर्थक है तो ये विरोधी जनता को ये ऑप्शन मीडिया वालो ने ही दिया है । आप सब चैनेल और एंकर भाई हैं तो लड़ाई यहा भाइयो मे ही है खामी कहीं न कहीं आपमें भी है ।
ये विचार मेरे निजी है । आपके तर्को का सवागत है ।