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नए जल-शक्ति मंत्रालय को क्या करना चाहिए
नए मंत्रालय का फोकस भारत की नदियों को जोड़ने के अपने कार्यक्रम को तेज करना और 2024 तक हर भारतीय घर में पानी सुनिश्चित करना है।
अश्वमेध यज्ञ और फैली भ्रांतियाँ
वर्तमान में स्वघोषित बुद्धिजीवी हिंदुत्व की आलोचना कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। धर्मग्रन्थों को बिना समझे उनमें लिखी बातों का मनमाना अर्थ निकलकर दुष्प्रचार करना इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का शौक बन गया है।
लुटियंस दिल्ली को समझ में न आने वाली फिल्म- कबीर सिंह
AKASH -
सोफे पे बैठने वाले सरस शराबी लोग कबीर सिंह का कहीं सिर्फ इसलिए तो विरोध नहीं कर रहे कि बॉलीवुड धीरे-धीरे मोदी के समर्थन में आ रहा है और शाहिद भी मोदी को पसंद करते हैं और ऐसा अर्जुन रेड्डी और कबीर सिंह के रिव्यू को देखकर भी लग सकता है।
चुनाव के बाद के काैन कितना मजबुत?
अपनी अप्रत्याशित हार के बाद भी विपक्ष की स्थिति बहुत बुरी हैं क्योंकि संख्या में कम होने के बाद भी जिस विपक्ष को सत्ताधारी पार्टी से लड़ना चाहिए वह खुद के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही हैं.
बचत खाते को भुगतान सम्बन्धित खर्च से मुक्त करें
gdbinani -
यदि सरकार OTP को Mandatory बना दे और बचत खाते वालों के लिये हर तरह से Net Banking लेनदेन बिना शुल्क के कर दे तो वरिष्ठ/ग्रामीण नागरिक नगद लेनदेन को मुक्ति करने में देर नहीं करेंगे क्योंकि हर तरह का अतिरिक्त खर्च कष्टदायक होता ही है।
भारत बनाम पाकिस्तान विश्वकप मुकाबलों में
Ritesh -
जब भी भारत-पाकिस्तान एक दूसरे से विश्वकप में भिड़े हैं पाकिस्तान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दे पाता।
वाकई सैक्यूलरिज्म या “स्टाकहोम सिंड्रोम”?
भारतीय दर्शन को देखने के पश्चात यह सुनिश्चित हो जाता है कि सैक्यूलरिज्म कुछ नहीं अपितु भय का विशिष्ट उत्पाद यानि स्टाकहोम सिंड्रोम ही है।
विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस पर बाल अधिकार योद्दा को नमन
oped -
हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस मनाए जाने के पीछे नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी का भागीरथ प्रयास है।
रेल किराये में वरिष्ठों को राहत हेतु
gdbinani -
सरकार यदि वरिष्ठों को किराये में जो भी छूट देती है उसमें कमी भी करना चाहे तो मन्जूर है परन्तु वरिष्ठों को कम से कम AC में Telescopic fare वाला लाभ तो वापस लागू कर दे ताकि जो कष्ट है उससे राहत तो मिले।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भाषा विवाद का जिन
यदि हम इसी तरह भाषाई मामलों पर तल्खी लाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब भारत के हालात भी यूरोप जैसे हो जाए। इसलिए एक स्थायी देश के निर्माण के लिए समाजवाद और राष्ट्रवाद दोनों जरूरी हैं, भाषाई विवाद नहीं।