आज विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस है। आज पूरी दुनिया बाल मजदूरी के लिए अभिशप्त और गुलामी में जीवन जी रहे बच्चों को याद कर रही होगी। उनकी मुक्ति के लिए… उनकी आजादी के लिए.. उनके खुशहाल बचपन के लिए… उनकी शिक्षा के लिए… उनके उज्जवल भविष्य के लिए नीतियों और योजनाओं पर विचार किया जा रहा होगा। लेकिन क्या आप जानते कि १२ जून दुनियाभर में विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में क्यों बनाया जाता है?
हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस मनाए जाने के पीछे नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी का भागीरथ प्रयास है। श्री कैलाश सत्यार्थी ने 1998 में बाल श्रम के खिलाफ एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की मांग को लेकर “ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर” यानी बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया था। यह बाल श्रम के खिलाफ दुनिया की अबतक की सबसे बड़ी जन-जागरुकता यात्रा है। यह ऐतिहासिक विश्व यात्रा तब 103 देशों से गुजरते हुए और 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर समाप्त हुई थी। छह महीने तक चली इस विश्वव्यापी यात्रा में करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने सड़क पर उतर कर मार्च किया था।
जिस दिन बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर समाप्त हुई थी, उस दिन 6 जून 1998 का दिन था। तब इस मुख्यालय के सभागार में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सालाना बैठक चल रही थी। दुनियाभर की श्रम नीतियों प्रभावित करने वाली इस महत्वपूर्ण बैठक में तब 150 देशों के श्रम मंत्री और अन्य प्रतिनिधि इकट्ठा हुए थे। सत्यार्थी जी इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहते थे, ताकि पूरी दुनिया के नीति निर्माताओं का ध्यान बाल मजदूरी की विभीषिका की तरफ खींचा जा सके। सत्यार्थी जी के नेतृत्व में विश्व यात्रा में शामिल दुनियाभर के करीब 600 बाल अधिकार कार्यकर्ता और मुक्त बाल मजदूर जुलूस के रूप में आईएलओ के दरवाजे पर पहुंच गए। उन्होंने वहां नारे बुलंद किए कि फौरन ही बाल मजदूरी पर रोक लगाई जाए। सत्यार्थी जी की रणनीति कामयाब हुई और उन्हें और विश्व यात्रा में शामिल बच्चों को आईएलओ की सालाना बैठक में शामिल होने की इजाजत मिल गई। इस अवसर पर दो आजाद बाल मजदूरों और श्री कैलाश सत्यार्थी को बैठक को संबोधित करने का अवसर भी मिला।
सभागार में 600 पूर्व बाल मजदूरों और कार्यकर्ताओं के आगे-आगे बांग्लादेश निवासी मुक्त बाल मजदूर खोखन अपनी वैशाखी के सहारे चल रहा था। खोखन एक पैर से अपाहिज था, लेकिन पूरी विश्व यात्रा में वह साथ चला। ऐसा लग रहा था मानो कि खोखन दुनिया को यह बता देना चाहता हो कि कोई भी डगर मुश्किल नहीं होती है, बशर्ते कि आदमी के अंदर हौसला, हिम्मत और लगन हो। यह विश्व के इतिहास में पहली बार हुआ था कि कैलाश सत्यार्थी जैसे किसी गैरसरकारी व्यक्ति को आईएलओ के मंच पर बोलने का मौका दिया गया हो।
तब आईएलओ के 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने तमाम मुक्त बाल मजदूरों व बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का तालियों की गड़गड़ाहट के साथ दिल से स्वागत किया। इसी बैठक को संबोधित करते हुए सत्यार्थी जी ने बाल मजदूरी के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने और एक दिन विश्व बाल श्रम विरोध दिवस के रूप में मनाने की मांग की। जिसे वहां मौजूद सभी लोगों ने अपना समर्थन दिया। श्री कैलाश सत्यार्थी की मांग पर अगले साल ही बाल मजदूरी के खिलाफ आइएलओ कनवेंशन-182 पारित हुआ और इसके बाद 12 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस घोषित किया गया। आइएलओ कनवेंशन-182 पर दुनिया के करीब-करीब सभी देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। आईएलओ कनवेंशन-182 बाल मजदूरी, बाल गुलामी, बंधुआ बाल मजदूरी के सभी खराब रूपों में बच्चों के शोषण पर प्रतिबंध लगाता है।
कैलाश सत्यार्थी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। 1980 के दशक में जब भारत में बाल मजदूरी को लोग बुरा नहीं मानते थे,तब सत्यार्थी जी ने उत्तर प्रदेश के भदोही-मिर्जापुर और बिहार के विभिन्न इलाकों में जाकर यह देख लिया था कि बाल मजदूर, कितना नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं? कालीन उद्योग का गढ़ कहे जाने वाले भदोही-मिर्जापुर में बाल मजदूरी के खिलाफ उन्होंने लंबा संघर्ष किया। बल्कि एक समय वह उनकी कर्म स्थली हुआ करती थी। तभी से सत्यार्थी जी के मन में बच्चों के प्रति करुणा का भाव पैदा हो गया था। कम ही लोगों को मालूम होगा कि सत्यार्थी जी पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं और कालेज में प्रोफेसर भी रह चुके हैं। लेकिन, बच्चों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों के कारण सत्यार्थी जी ने अपना ब्राइट करियर छोड़कर बाल मजदूरों के दुख को दूर करने का बीड़ा उठा लिया था। सत्यार्थी जी का मानना है कि हर एक बच्चा और उसका बचपन महत्वपूर्ण है। बचपन छीन कर किसी बच्चे का भविष्य नहीं बनाया जा सकता है। उनका संदेश है- “हर बच्चे का है अधिकार-रोटी, खेल, पढ़ाई प्यार।” विश्व के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी अब तक अपने संगठन बचपन बचाओ आंदोलन के माध्यम से अपनी जान जोखिम में डाल कर सीधी छापामार कार्रवाई के जरिए 88,000 से ज्यादा बाल मजदूरों को मुक्त करा कर उन्हें बेहतर जीवन प्रदान कर चुके हैं।
सत्यार्थी जी का जोर बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर है। उनका मानना है कि गरीबी और अभाव में जीने वाले बाल मजदूरी से मुक्त बच्चों को भी अगर शिक्षा का समान अवसर मिले तो वे भी समाज में अपना मुकाम हासिल कर सकते हैं। श्री कैलाश सत्यार्थी कहते हैं, “किसी बच्चे के लिए क्लासरूम का दरवाजा खुलते ही उसके जीवन में संभावनाओं के लाखों द्वार खुल जाते हैं।” इसके प्रयोग के लिए उन्होंने बाल मजदूरों से मुक्त बच्चों के पुनर्वास के लिए नब्बे के दशक में राजस्थान के जयपुर जिले में “बाल आश्रम” की स्थापना की। यह बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए बच्चों का पहला दीर्घकालिक पुनर्वास केंद्र है। यहां से अनेक बच्चे पढ़ लिख कर इंजीनियर, वकील, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं।
कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, सत्यार्थी जी हमेशा बदलाव की कोशिश करते रहते हैं। उनके प्रयास से दुनिया में बहुत बदलाव भी आया है। जब श्री सत्यार्थी ने आईएलओ में बाल मजदूरी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की मांग की थी तब पूरी दुनिया में करीब 25 करोड़ बाल मजदूर थे। इस कानून के बनने के दो दशक के बाद बाल मजदूरों की संख्या में 10 करोड़ की कमी आई है। अब तकरीबन 15 करोड़ बाल मजदूर हैं। श्री सत्यार्थी नोबेल पुरस्कार के बाद भी चुप नहीं बैठे हैं। वे दुनिया से बाल दासता खत्म करने के लिए लगातार आंदोलन चला रहे हैं। सड़कों पर उतर रहे हैं। करीब दो साल पहले उन्होंने भारत में बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ देशव्यापी जन-जागरुकता यात्रा का आयोजन किया था। 35 दिन में यह यात्रा 22 राज्यों से गुजरते हुए 12 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी। इस यात्रा में 12 लाख लोगों ने सड़क पर आकर मार्च किया था। इस यात्रा के परिमामस्वरूप ही ट्रैफिकिंग बिल संसद में पेश हुआ और छोटी बच्चियों से बलात्कार करने वालों को कानून में संशोधन कर फांसी की सजा का प्रावधान किया गया। हालांकि राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में ट्रैफिकिंग बिल संसद में पास नहीं हो पाया।
श्री सत्यार्थी ने अपने जीते जी दुनिया से बाल दासता को समाप्त करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने दुनिया से बाल दासता खत्म करन के लिए “हंड्रेड मिलियन फॉर हंड्रेड मिलियन” नामक एक और वैश्विक आंदोलन शुरु किया है। जिसके तहत दुनिया के 10 करोड़ वंचित बच्चों के उत्थान के लिए काम करने के लिए 10 करोड़ युवा तैयार किए जाएंगे। तीन सालों में 36 देशों में यह आंदोलन लांच हो चुका है। यह आंदोलन उन सभी देशों में लांच होगा, जहां बच्चे शोषण के शिकार हैं। इसके अलावा बच्चों के अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए वे नोबेल लॉरिएट और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर रहे हैं। जिसके तहत वे “लॉरिएट्स एंड लीडर्स सम्मिट फॉर चिल्ड्रेन्स” का हर साल आयोजन कर रहे हैं। ताकि बच्चों के पक्ष में एक ग्लोबल वॉइस का आगाज हो सके।
आज दुनियाभर में बच्चे और उनका अधिकार एक मुद्दा बन गया है। बाल मजदूरी, बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा और ट्रैफिकिंग के खिलाफ मजबूत कानून बने हैं। भारत में अस्सी के दशक में जब श्री कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरों को छुड़ाना शुरु किया था, तब देश में बाल श्रम के खिलाफ कोई कानून नहीं था। आज भारत सहित पूरी दुनिया में न केवल बाल श्रम के खिलाफ मजबूत कानून है, बल्कि बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए ढेर सारे कानून, नीतियां और योजनाएं हैं।
जब भी बच्चों के शोषण का जिक्र आता है, तब श्री कैलाश सत्यार्थी का नाम जहन में आ ही जाता है। जिस व्यक्ति ने बच्चों को बाल मजदूरी से बचाने और गुलामी से मुक्त कराने में अपना पूरा जीवन लगा दिया, उसे आज के दिन याद किया ही जाना चाहिए। तो आइए, आज हम सब विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस पर बच्चों के अधिकारों के लिए लडाई लड़ने वाले इस महान योद्दा को याद करें, उन्हें नमन करें और उनसे प्रेरणा लेकर बच्चों के बचपन को आजाद और खुशहाल बनाएं।
Shiv Kumar Sharma