Tuesday, October 8, 2024
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बागेश्वर धाम: चर्चा में क्यों?

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Anurag choubey
Anurag choubey
A positive thinker, creative writer.

शुरुआत करते हुए अगर हम आपको याद दिलाए अधीन भारत का तो याद करिए कि आजादी के समय भारत दो गुटों में बटा हुआ था, जहां एक गुट गांधीवादी था तो एक आजाद सुभाष को मानने वाले, इस बात को बारीकी से समझने कि कोशिस करे तो पाएंगे कि मंजिल दोनों का एक ही था लेकिन उनके विचार अलग-अलग, तरीके अलग-अलग और स्पोटर्स अलग अलग।

इस कड़ी में हम एक और उदाहरण आपको याद दिलाएं तो याद करिए कि एक समय के दो खिलाड़ी वीरेंद्र सहवाग और vvs लक्षमन जब टेस्ट खेलते थे दोनों के काम एक, पर खेलने के तरीके अलग स्ट्रेटजी अलग उसी तरह सपोर्टर अलग-अलग।

चलिए अब आते मुख्य मुद्दे पर जो आजकल सभी न्युज रूम में, सभी लोगों के जुबान पर है। मध्ययप्रदेश के छतरपुर जिले से 25 किमी दूर एक जगह है नाम है बागेश्वर धाम

यू तो आजकल ना इस जगह के बारे मे ना बताने कि जरूरत है ओर नहीं इसके प्रसिद्धि कि। जिनके वजह से ये प्रसिद्ध है उनका नाम है बागेश्वर धाम के पीठासीन प. धीरेंद्र शास्त्री जी महाराज।

जितनी तेजी से आजकल ये चर्चित हुए हैं उतनी ही तेजी से इन्हें लेकर लोग दो गुटों में बंट रहे हैं आपस में चर्चा कर रहे हैं अलग अलग प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं।

कारण है लोग इनके कारनामे चमत्कार को समझ नहीं कर पा रहे हैं।

चूंकि अबतक लोगों ने सनातन में ज्यादातर पूजा,ध्यान और योग को ही देखा है, सद्गुरु और प्रेमानंद जैसे संतों को ही देखा है पर इससे इतर सनातन की एक और खूबसूरती है कि यह संकट में परेशानियों से लड़ना सिखाता है,मजबूत होना सिखाता है,एक उम्मीद जगाता है कि हमारा इष्ट हमें संभालेगा। जिसके बलबूते हम किसी भी मुसीबत में खड़े रहते हैं।

और धीरेंद्र शास्त्री जी महाराज इसी काम को बखूबी कर रहे हैं। अपने तरीके से लोगों में उम्मीद,भरोसा जगा रहे हैं, उन्हे सनातन से जोड़ रहे हैं, एक होकर रहना सीखा रहे हैं। हां मान लेते हैं कि उनके तरीके अलग हैं, पर ये हमारी उस पीढ़ी के पथ दर्शाता बने हैं जो गांधी से ज्यादा सुभाष पर भरोसा करती है जिन्हें पुजारा से ज्यादा सूर्य कुमार यादव की बैटिंग पसंद आती है एसे समय में धीरेंद्र शास्त्री जी महाराज का चर्चा में आना स्वभाविक है। और हमने ऊपर में बताया है कि हरेक दौर में एसे लोग होते हैं जिनके तरीके अलग होते हैं,स्पोटर्स अलग होते हैं पर काम एक। ठीक इसी तरह बागेश्वर महाराज कि सोच लोगों को अपने धर्म संस्कृति से जोड़ना ही है।

आप चाहें तो भले गांधी और लक्ष्मण वाली पंक्ति में खड़े हो जाएं हैं या फिर उस पंक्ति में जिन्हें बागेश्वर महाराज के तरीके पसंद नहीं पर आप चाह कर भी उन्हें नकार नहीं सकते, इन्हे लेकर कुतर्क नहीं कर सकते क्योंकि आने वाले समय में हमें एसे संतों की आवश्यकता महसूस होगी।

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