मित्रो शीर्षक देख कर आप सोच रहे होंगे आखिर ये किस विषय-वस्तु की ओर संकेत कर रहा है, परन्तु अत्यधिक मष्तिष्क पर बल देने की आवश्यकता नहीं है, जैसे जैसे आप ये लेख पढ़ते जायेंगे, स्थिति स्पष्ट होती जाएगी। चलिए शुरू करते हैं अपने पहले नायक के चरित्र से।
मित्रों हमारे पहले चरित्र जो हैं वो बॉलीवुड के सबसे बड़े चर्चित चेहरों में से एक हैं। इन्हें पूरा भारत बिहारी बाबू के नाम से जानता है। एक समय था बिहारी बाबू भारतीय जनता पार्टी के बड़े चेहरों में से एक थे। वक्त बदला, परिस्थितियां बदली और २०१४ में गुजरात से एक नए सूर्य का उदय हुआ और देखते ही देखते वह पुरे विश्व के मांस पटल पर छा गया। भारतीय जनता पार्टी के ९९.९९% कार्यकर्ताओं ने इस सूर्य की आभा में एक नए भारत, सशक्त भारत और उज्जवल भारत की छवी देखी और अपने तन मन धन से स्वीकार कर लिया। पर वंही .०१% ऐसे भी लोग थे जो उस तेजोमय सूर्य को अपने से कनिष्ठ समझ कर उसके तिरस्कार करने की राह पकड़ ली। इसी में से थे श्री यशवंत सिन्हा जी, सिकंदर बख्त, बिहारी बाबू और अन्य। मित्रो यंहा पर हम केवल बिहारी बाबू की ही चर्चा करेंगे।
बिहारी बाबू ने अकारण वैमनस्य अपने ह्रदय में बिठाया और उस यशस्वी पुरुष की अवहेलना शुरू कर दी। भारतीय जनता पार्टी में रहते हुए उन्होंने विपक्षी नेताओ की भांति अपनी ही पार्टी के नीतियों की आलोचना करना शुरू कर दिया। ईस सदी के महापुरुष के विरोध में इतने अंधे हो गए की प्रोटोकाल तक को भुला बैठे और सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वाले अपनी ही पार्टी के महानायक की सार्वजानिक रूप से आलोचना करने लगे और राष्ट्रिय सुरक्षा और अखंडता को भी भुला बैठे। पर धन्य हो वो दिव्यपुरुष जिसने इनकी एक दो नहीं अपितु सैकड़ो अपराधों को क्षमा कर दिया और अपनी ओर से एक शब्द भी इनके प्रति समाज में नहीं आने दिया।
अंतत: बिहारी बाबू जब अपने चारित्रिक दुर्गति के बोझ से दबने लगे तो स्वय भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर एक ऐसी पार्टी (कांग्रेस) का दामन थाम लिया जो आज की तारीख में सबसे बड़े खलनायक के रूप में देश के समक्ष उभरी है और अपने अंतिम दौर से गुजर रही है। उन्होंने पार्टी में शामिल होने के पश्चात गाँधी परिवार के शान में नज्मे पेश की और चाटुकारिता के नए खिलाडी के रूप में स्थापित होने को तत्पर हो गए।
चारित्रिक लुच्चापन :–
२०१९ के लोकसभा चुनाव में बिहारी बाबू अपने सत्ता के लोभ के आकंठ में डूबते हुए पटना सीट से कांग्रेस पार्टी से लोकसभा के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए। इसी लोकसभा चुनाव में बिहारी बाबू ने अपनी धर्मपत्नी को लखनऊ सीट से समाजवादी पार्टी से लोकसभा के उम्मीदवार के रूप में खड़ा कर दिया जो कांग्रेस के उम्मीदवार के विरोध में चुनाव लड़ रही थी। अब जरा देखिये की बिहारी बाबू की राजनितिक महत्वकांक्षा कितने टक्के की है। एक ओर वो स्वय कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार वंही दूसरी ओर उनकी पत्नी समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार और कांग्रेस की विरोधी। पर बात यही नहीं रुकी इन्होने बिहार विधानसभा के चुनाव में अपने एक सपूत को लालू यादव जी की पार्टी राष्ट्रिय जनता दल से उम्मीदवार बना दिया। अब स्वय सोचिये क्या ऐसे व्यक्ति पर जनता को भरोसा करना चाहिए। खैर जनता ने तो इनके साथ वही किया जो किया जाना था।
पर इनकी महत्वकांक्षा यही नहीं रुकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी के बुलावे पर ये कांग्रेस को लात मारकर उनके साथ चले गए और उनकी पार्टी से लोकसभा के उम्मीदवार बनकर, ममता बनर्जी के रहमोकरम पर संसद बने और तब से अब तक ममता बनर्जी के के चरण धोकर पी रहे हैं। मित्रो क्या आप, मैं या कोई भी समाज का सभ्य व्यक्ति इस बिहारी बाबू के चरित्र को अपना सकता है, जिसमे ईमानदारी, पार्टी के प्रति समर्पण, विचारधारा के प्रति समर्पण, निष्ठा, त्याग या बलिदान जैसा कोई भी मानवीय गुण दृष्टिगोचित नहीं होता, नहीं ना, जी हाँ कोई भी सभ्य व्यक्ति बिहारी बाबू के द्वारा दिखाए गए इस राजैनितक अवसरवादिता, सत्ता लोलुपता, लालच, बेईमानी और लूट वाले मार्ग का अनुसरण नहीं करना चाहेगा। ऐसे व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए ही हमारे शाश्त्रो ने कहा है कि
“अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्।।
अर्थ – निम्न कोटि के लोग सिर्फ धन की इच्छा रखते हैं। मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा रखता है। वहीं एक उच्च कोटि के व्यक्ति के लिए सिर्फ सम्मान ही मायने रखता है। सम्मान से अधिक मूल्यवान है।
अब हमारे लेख के दूसरे चरित्र हैं ,बिहार राज्य के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार। इन्होने इतनी बार अपने विचारो को परिवर्तित किया की है अब लोग “थाली का बैगन” या बिन पेंदी का लोटा” जैसे कहावतों के लिए इनके नाम का उपयोग करने लगे हैं। सत्ता लोलुपता इनके अंदर कूट कूट कर भरी है। याद करिये वो भी एक चुनाव था जब नितीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने मिलकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। चुनाव परिणाम आने के पश्चात सरकार भी बनी पर अचानक अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए श्री नितीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के दामन को छोड़ भाजपा के साथ नाता जोड़ लिया और लालू प्रसाद यादव से मुक्ति प्राप्त कर ली। जिसके पश्चात लालू प्रसाद यादव, श्रीमती राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और इनके अन्य भाई बहनो ने नितीश कुमार की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा की थी, लालू प्रसाद यादव जी ने अपशब्दों का भी उपयोग किया था, परन्तु नितीश कुमार अपना उल्लू सीधा कर चुके थे और मुख्यमंत्री बनकर राज करते रहे।
पिछले विधानसभा चुनाव में नितीश कुमार भाजपा के साथ मिलकर चुनाव यह कह कर लड़े कि इस बार उनका आखिरी चुनाव है और भाजपा के रहमोकरम पर एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। मुख्यमंत्री बनने के पश्चात जब उनकी नाकामियों से तंग आकर भाजपा ने उन्हें आतंकी समुदाय के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की बात कहि तो अचानक इनका सेक्युलरिज्म खतरे में आ गया। श्री नितीश कुमार ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके राज काज में बिहार के क़रीब ६०० से ज्यादा विद्यालयों में अलग संविधान चलता है और वंहा शुक्रवार को छुट्टी होती है। बिहार में इस्लामिक चरमपंथियों और आतंकवादियों का गठजोड़ पकड़ा जाता है जो २०४५ तक भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहते हैं।
बिहार में एक आतंकवादी संगठन PFI (पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया) के लोग आते है और करीब ३५० लोगो को लड़ने मारने और काटने का प्रशिक्षण देकर निकल जाते है और नितीश कुमार चैन की बंशी बजाते रहते हैं। बिहार में आये दिन जहरीली शराब पिने से आम लोगो की मौत होती रहती है परन्तु नितीश कुमार जी सुशाशन नीरो की तरह बंशी बजाता चैन की नींद सोता रहता है और जब भाजपा के लोग कड़े कदम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं तो तुष्टिकरण का कीड़ा कुलबुलाने लगता है और फिर सत्ता लोलुपता का सांप जो नितीश कुमार जी के दिल में चुपचाप बैठा रहता है, सक्रिय हो जाता है और जो लोग पिछले कई वर्षो से एक दूसरे की माँ बहन को याद कर रहे थे अचानक एक हो जाते हैं और बिहार का दुर्भाग्य एक बार फिर बिहार की तक़दीर को अपने आगोश में ले लेता है।
अब आप बताये क्या नितीश कुमार जी का चरित्र किसी भी प्रकार से अनुकरणीय है, नहीं ना, जो व्यक्ति जनता जनार्दन को धोखा दे, जो व्यक्ति अपने राजनितिक साथी को धोखा दे और मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अपने राष्ट्र की सुरक्षा के साथ समझौता करे भला वो व्यक्ति किसी के लिए अनुकरणीय कैसे हो सकता है। तो मित्रो ये संयोग है की हमारे लेख का पहला चरित्र भी बिहार से है और दूसरा भी बिहार से ही है, पर करे क्या , आप ही बतायें। क्या ऐसे व्यक्तियों का विवेक इन्हें इस प्रकार के असमाजिकता में लिप्त होने से रोकता नहीं है, शायद इसीलिए हमारे शास्त्रों ने कहा है कि:-
” यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।
अर्थ – जिस व्यक्ति के पास स्वयं का विवेक नहीं है। शास्त्र उसका क्या करेगा? जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।