Saturday, April 20, 2024
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बेलगाम होता सोशल मीडिया

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumarhttps://muckrack.com/abhishekkumar
Politics -Political & Election Analyst

सोशल मीडिया आज के दौर में इंसान के जीवन का सबसे अहम हिस्सा बन गया, लेकिन इस बात को कतई नाकारा नहीं जा सकता सोशल मीडिया ने देश विदेश में अपना नकारात्मक प्रभाव भी डाला हैं, ये सच है कि सोशल मीडिया अपनी राह से भटक गया है। इसके पीछे सुनियोजित प्रयास हैं, क्योंकि समूची दुनिया में अब ताजो-तख्त का फैसला जोड़ने के बजाय तोड़ने के मुद्दे पर किया जाने लगा है। हुकूमतें और हुक्मरां इसके जरिये लोगों का ध्यान असली मुद्दों से हटाने में कामयाब होते हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की ताजा रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 के बाद से धरती पर 81.10 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं।

हर रोज 25 हजार इंसान भूख से तड़प-तड़पकर जान दे देते हैं। यही नहीं, 45 देशों के पांच करोड़ से अधिक लोग अकाल के कगार पर हैं। इस बदहाली का एक जिम्मेदार नफरतों का महाकाय कारोबार भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, सन 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे नौ फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा, जो प्रति-व्यक्ति 40 हजार रुपये से अधिक बैठता है। हो सकता है, कुछ लोग इन आंकड़ों से असहमत हों, पर यकीनन कोविड ने इस मार को और मारक बना दिया है। क्या आप सोशल मीडिया पर ऐसे मुद्दों पर सार्थक बहस देखते-पढ़ते-सुनते हैं? यह तथ्य तथाकथित ‘मेनलाइन मीडिया’ को भी ठहरकर सोचने की दावत देता है।

भारत ही नहीं, समूची दुनिया इस समय नफरत के इसी कारोबार से लहूलुहान है। सोशल मीडिया के महाकाय कॉरपोरेट जब फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और ऐसे अन्य प्लेटफॉर्म लेकर सामने आए, तब कहा गया था कि इससे दुनिया एक-दूसरे के करीब आएगी। शुरू में ऐसा हुआ भी, पर बाद में ये प्लेटफॉर्म बेलगाम हो गए। प्यू रिसर्च सेंटर ने पिछले साल दावा किया था कि 41 फीसदी अमेरिकी कभी न कभी ऑनलाइन उत्पीड़न से वाबस्ता हुए हैं। 18 से 45 साल के व्यक्तियों के बीच हुए एक अन्य अध्ययन में 83 प्रतिशत लोग नफरत के शिकार बताए गए। नस्ल, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग, शारीरिक विकार और विस्थापन जैसे संवेदनशील मुद्दे चरमपंथी विचारों और समूहों की भेंट चढ़ चुके हैं। ‘व्हिसलब्लोअर’ फ्रांसेस हौगेन ने ब्रिटिश संसदीय दल के समक्ष लगभग दो साल पहले दावा किया था कि फेसबुक (अब मेटा) अपने मुनाफे के लिए घृणा के इस दौर को हवा दे रहा है। भारतीय मूल के इंजीनियर अशोक चंदवने ने कंपनी को अलविदा कहते हुए लिखा था, ‘मैं अब ऐसे संगठन में योगदान नहीं दे सकता, जो अमेरिका और दुनिया भर में नफरत को बढ़ावा दे रहा है।’

हालांकि, मेटा ने इस दावे को नकारते हुए कहा है कि हम तो जहर बुझी सामग्री की सफाई का काम करते हैं। उसके अनुसार, सिर्फ भारत में पिछली मई में 1.75 करोड़ पोस्ट इसलिए हटा दी गई, क्योंकि उनमें आपत्तिजनक सामग्री पाई गई। आप जानते ही होंगे, लगभग तीन अरब लोग हर माह मेटा प्लेटफॉर्म का थोड़ा या बहुत इस्तेमाल करते हैं।

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