प्रयाग तीर्थों के राजा हैं! सनातन धर्म के अनुसार संसार के सारे तीर्थ प्रयाग से हे हैं, न कि अन्य तीर्थों से प्रयाग. भगवान् श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि का आरम्भ प्रयाग कि भूमि से ही किया था! सृष्टि के क्रम में सर्व प्रथम भगवान् श्री ब्रह्मा जी ने यज्ञ की उत्पत्ति की और यज्ञ को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रयाग की भूमि पर सौ वर्षों तक यज्ञ किया. इस यज्ञ की सुरक्षा का भार जगत नियंता भगवान् श्री नारायण ने स्वयं वहन किया था. परमात्मा जिनकी नाभि से सृष्टि के रचयिता भगवान् श्री ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए थे, का एक नाम माधव भी है!
भगवान् श्री माधव जी अपने द्वादश स्वरूपों में प्रयाग को ग्यारह दिशाओं से घेर कर पूरे सौ वर्षों तक धरती के प्रथम यज्ञ की सुरक्षा करते रहे. भगवान् का एक स्वरुप जो की अदृश्य है त्रिवेणी संगम में स्थित है. कालांतर में भगवान् श्री ब्रह्मा जी के पुत्र एवं प्रयाग के मूल वासी श्री भरद्वाज मुनि ने भगवान् श्री माधव जी के द्वादश रूपों की परिक्रमा प्रारम्भ कराई. भगवान् श्री द्वादश माधव परिक्रमा सर्वमंगलकारी है. श्रीभरद्वाज मुनि की एक स्थापना के अनुसार प्रयाग की धरती पर किसी प्रकार का कोई अनुष्ठान जैसे यज्ञ, अस्थिविसर्जन, तर्पण, पिंडदान, कल्पवास, तीर्थप्रवास, संस्कार, मुंडन, यग्योपवीत, पूजा, पाठ अथवा कोई भी मनोरथ तब तक पूर्ण और फलित नहीं होता जब तक भगवान् श्री द्वादश माधव परिक्रमा न की जाए. भगवान् श्री द्वादश माधव परिक्रमा के माहात्म्य और कल्याणकारी प्रभाव को सभी प्रमुख ऋषिओं, मुनियों और महापुरुषों ने स्वीकारा है.
श्री दुर्वासा ऋषि, श्री दादर ऋषि, श्री विश्वामित्र ऋषि, श्री भीष्म पितामह सहित सभी प्रमुख ऋषि मुनियों ने भगवान् श्री द्वादश माधव परिक्रमा के कल्याणकारी प्रभाव की पुष्टि की है. प्रयाग आने पर एक बार भगवान् श्री शंकर जी ने भरद्वाज मुनि से कथा सुनी. कथा सुनने के बाद भगवान् श्री शंकर जी भी भगवान् की इस परिक्रमा को प्राणियों के लिए कल्याणकारी होने का वर दिया था. भगवान् श्री राम जी ने माता जानकी जी एवं भ्राता श्री लक्ष्मन जी के साथ यह परिक्रमा की थी. माता सीता ने भगवान् श्री वेणी माधव पर अपनी वेणी दान की थी. भगवान् श्री गदा माधव के स्थान पर भगवान् श्री राम, माता सीता और श्री लक्ष्मन जी ने एक रात्रि विश्राम किया था. आधुनिक युग के महान संत श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी ने विलुप्त हो चुकी इस परिक्रमा के लिए अतुलनीय कार्य किया था. परंतु भारत के आजाद होने के पूर्व का काल होने के कारण अंग्रेज किसी भी ऐसे प्रयास को विफल कर देते थे, जिसमें सनातन धर्मी एकजुट हो. पूज्य ब्रह्मचारी जी ने 70 -80 वर्ष पूर्व दो स्वरूपों भगवान् श्री संकष्ठह्ऱ माधव और भगवान् श्री शंख माधव की नई प्रतिमाओं की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा कराई थी.
परिक्रमा न होने का प्रभाव प्रयाग क्षेत्र में स्पष्ट दीखता है! तीर्थों के राजा प्रयाग में जहाँ भगवान् श्रीब्रह्मा जी, भगवान् श्रीविष्णु जी, भगवती स्वरूपा माँ गंगा, माँ यमुना, माँ सरस्वती समेत सभी मुख्य देवी, देवताओं, दानव, गन्धर्व, किन्नर, नाग सभी माघ मॉस में पूरे एक माह वास करते हैं. यहाँ सम्पन्नता और वैभव का सर्वथा अभाव दीखता है! प्रयाग की भूमि छोड़ कर यहाँ के युवक युवती अन्य स्थान पर रहने लगते है तो वह शीघ्र ही अपनी कीर्ति चारो और फ़ैलाने में सक्षम हो जाते हैं और संपन्न हो जाते हैं.
प्रयाग आने वाले साधु संत प्रायः यह चर्चा करते हैं कि प्रयाग में उन्हें न तो रोटी मिलती है न ही आश्रय. जब कि अन्य तीर्थों में उन्हें आश्रय भी मिलता है और रोटी भी. पूरे प्रयाग में एक भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ प्रतिदिन भंडारा चलता हो, जहाँ कोई भी भूखा अपनी क्षुधा शांत कर सके.
तीर्थों के राजा प्रयाग के प्रधान देव भगवान् श्री माधव जी कि असीम कृपा से गत सात वर्षों से यह पावन परिक्रमा पुनः प्रारम्भ हो चुकी है. 600 वर्षों तक खंडित संसार कि सबसे प्राचीन परिक्रमा कि पुनः स्थापना आध्यात्मिक गुरु स्वामी श्री अशोक जी महाराज द्वारा कि गयी है. महाराज श्री के आशीर्वाद से एक दिन की और वार्षिक परिक्रमा दोनों सफलतापूर्वक हो रही है. यह परिक्रमा भगवान् श्री द्वादशमाधव परिक्रमा आयोजन समिति द्वारा कराई जाती है. यह परिक्रमा सभी के लिए खुली है.
विद्वानों, साधु, महात्माओं में इस तथ्य के बारे में कोई मत भिन्नता नहीं है कि भगवान् श्री माधव जी के बारह रूपों के दर्शन और परिक्रमा से मनुष्यों के पापों का क्षय होता है और पुण्य का उदय होता है! यह बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि भगवान् के कई स्थानों पर प्रतिमा नहीं है! कई स्थान निर्जन पड़े हैं! उनकी देख रेख करने वाला कोई नहीं है! अब समय आ गया है कि सभी सनातन धर्मियों को यह समझना पड़ेगा कि हमारे अग्रजों द्वारा प्रवर्तित स्थापनाएं हमारे कल्याण के लिए हैं! सभी को आगे आ कर संसार कि इस सबसे पुरानी परिक्रमा एवं इसके कल्याणकारी प्रभाव के बारे में एक दुसरे को बताना होगा! वैसे भी देवी देवता सिर्फ मनुष्य का समर्पण चाहते है! जब मनुष्य अपने स्थान देवता का दर्शन, पूजन, परिक्रमा करता है तो उसके मनोरथ अवश्य पूर्ण होते भगवान् श्री माधव जी प्रयाग के स्थान देवता हैं और उनके बारह स्वरुप सिर्फ प्रयाग में ही हैं! इन द्वादश स्वरूपों की परिक्रमा से व्यक्ति का तो कल्याण है ही साथ में स्थान की सम्पन्नता और वैभव में भी श्री वृद्धि होती है।
प्रतिवर्ष यह पावन वार्षिक परिक्रमा कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी से प्रारम्भ हो कर कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिनों की होती है। इस वर्ष की परिक्रमा १४ नवम्बर से १८ नवम्बर २०२१ तक सम्पन्न हो रही है।