Tuesday, April 23, 2024
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इच्छाधारी हिन्दू और डरे हुए “वो” समझ लें हिन्दू क्या है और हिंदुत्व क्या है

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों जब तक हम गाँधी और नेहरू की “एकपक्षीय धर्मनिरपेक्षता” के जाल में उलझे रहे तब तक इन लंपटों और इच्छाधारी कालनेमि रूपी कांग्रेसियों और विधर्मियों को कोई समस्या नहीं थी। जब तक हम “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम” के प्रपंच में उलझे रहे तब तक इन्हें कोई परेशानी नहीं थी। जब तक हम अस्तित्वहीन “गंगा जमुनी तहजीब” पर अकारण भरोसा करते रहे, तब तक इन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। वर्ष १९४७ से लेकर वर्ष १९६४ तक तथा वर्ष १९६६ से लेकर वर्ष २०१४ तक ना तो ये डरे हुए थे और ना ही हिन्दू इन्हें असहिष्णु लग रहे थे, परन्तु अचानक वर्ष २०१४ के पश्चात ऐसा क्या हुआ की हिन्दुओ और हिन्दू समाज में अचानक इतनी बुराइयां नजर आने लगी इन इच्छाधारीयो को। आज हमारे हिंदुत्व को ये नामुराद एक चिर परिचित श्लोगन बोलकर अपनी छाती या कमर में बम बांधकर खुद को फाड़कर हजारो लोगो का कत्लेआम करने वाले हैवानो से जोड़ रहे हैं। ये अनपढ़, जाहिल और इच्छाधारी आधुनिक कालनेमियों की पूरी बरात एक साथ छाती पिट रही है। एक लम्पट ने तो किताब ही लिख डाली है।

अब आप ही बताइये हमें “अहिंसा परमो धर्म:” की अधूरी पर मजबूत जंजीरो में  हिन्दू समाज को जकड़ कर कभी वो “खलीफत आंदोलन” की आड़ में केरला में मोपला दरिंदों के हाथों हिन्दुओ को मारते रहे, कभी “डायरेक्ट एक्शन डे” की आड़ में बंगाली मुस्लिम लीग के नापाक दरिंदों के हाथो कत्ल करवाते रहे, गाँधी वध के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में हजारो ब्रह्मणो को कत्ल कर डाला, कभी उन्होंने हजारो तमिल हिन्दुओं का कत्ल करवाया तो कभी ३५०० से अधिक निर्दोष सिक्खों को अकेले देश की राजधानी दिल्ली में एक ही रात में मार डाला और अभी दिल्ली में इन डरे हुए लोगों के द्वारा किये गए दंगो को कैसे भूल सकते हैं, दिल्ली में ही किसान आंदोलन के नाम पर २६ जनवरी को लाल किले पर जो देशद्रोहिता पूर्ण नीचता इन्होने दिखाई आप उसे कैसे भूल सकते हैं और दो दिन पूर्व की घटना जब त्रिपुरा की स्थिति के बारे में फैली एक अफवाह को आधार बना कर महाराष्ट्र के अमरावती, नांदेड़ और एक अन्य जिले में भयानक लूट पाट की घटना को अंजाम दिया गया। परन्तु इसके पश्चात भी इन इच्छाधरियों की दृष्टि में हिन्दू और उनकी राष्ट्रभक्ति की भावना हिंदुत्व ही गलत है

वास्तविकता ये है मेरे दोस्तों की वर्ष २०१४ के पश्चात (जिसकी शुरुवात वर्ष २००० में गुजरात से हुई थी) हिन्दुओं ने एकपछिय धर्मनिरपेछता के छदम आवरण को उतार फेंका, उन्होंने ये समझना शुरू किया की शास्त्र जंहा ये कहते हैं कि “अहिंसा परमो धर्म:” वंही पर शास्त्र ये भी कहते हैं “धर्म हिंसा तथैव च” अत: स्वयं के धर्म की रक्षा करने हेतु हिंसा का उत्तर देना आवश्यक है”। उन्होंने जब गंगा जमुनी तहजीब पर गंभीरता से विचार किया तो उन्हें पता चला की गंगा और जमुना दोनों हिंदुत्व की पहचान है तो फिर इन दोनों  में उन लोगो का क्या है और वो लोग किस तहजीब की बात कर रहे हैं, तब जाकर उन्हें समझ में आया की वो यंहा पर भी छल और प्रपंच के शिकार हुए हैं।

जब उन्होंने “रघुपति राघव राजाराम, पतितपावन सीताराम” के वास्तविक भजन को जानने की कोशिश की जो निम्नवत है:- “रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥ सुंदर विग्रह मेघश्याम गंगा तुलसी शालग्राम ॥ भद्रगिरीश्वर सीताराम भगत-जनप्रिय सीताराम ॥ जानकीरमणा सीताराम जयजय राघव सीताराम ॥ रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥” तब जाकर उनको पता चला की एकपछिय धर्मनिरपेछता के छदम आवरण में लपेटकर किस प्रकार उनके साथ छल किया जा रहा था क्योंकि मूल रचना में तो अल्लाह दूर दूर तक नहीं है।

और यही नहीं वर्ष २०१४ के पश्चात जब उन्होंने “सब चलता है, ये ऐसे ही रहेगा, कुछ नहीं बदल सकता, इस देश का कुछ नहीं हो सकता” इत्यादी  जैसे अपने नकारात्मक भावों से निकलकर, अपने वैदिक धर्म, संस्कृति, सभ्यता और समाज के बारे में गंभीरता से सोचना और विचार करना शुरू किय तो उन्हें एहसास हुआ की हमें जात- पात, छेत्रवाद, धर्म, भाषा और  वर्ण के आधार पर टुकड़ो में बांटकर किस प्रकार दूषित और प्रदूषित किया गया और कितनी नकारात्मक और हिन् भावना से ग्रसित कर दिया गया और फिर हिन्दू समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और एकजुटता की अद्भुत मिशाल कायम करते हुए उन्होंने अपना सर्वमान्य नेता चुन लिया और उसे पूर्ण बहुमत से देश को उसके हाथों में सौंप दिया ताकि वो देश के लिए उन्नति का मार्ग प्रसस्त कर पून: विश्वगुरु के पद पर स्थापित कर सके। और मेरे प्यारे देशवासियों यही से इन इच्छाधारी कालनेमियों के पतन का मार्ग खुल गया और ये निरंतर उस अंधकार में धंसते चले जा रहे हैं जंहा से प्रकाश का कोई दूर दूर तक वास्ता नहीं है।

इन इच्छाधारी कालनेमियों को हम बताते हैं की “हिन्दू” क्या है और “हिंदुत्व” क्या है?

अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च”

इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आ जाये तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्यूंकि वह धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं। जैसे हम अहिंसा के पुजारी है लकिन अगर कोई हमारे परिवार को कोई हानि पहुंचता हैं तो उसके लिए की गई हिंसा सबसे बड़ा धर्म हैं। वैसा ही हमारे राष्ट्र के लिए हैं। अब यंहा पर अहिंसा को सर्वोत्तम धर्म के रूप में स्थापित करना हिन्दू धर्म है, वंही धर्म पर कोई आक्रमण हो तो उसकी रक्षा करना अहिंसा से भी बड़ा धर्म है (यंहा धर्म से तात्पर्य राष्ट्र, समाज और परिवार से भी है) ये स्थापित करना हिंदुत्व है।

उदहारण के लिए:-

भगवान श्रीराम ने अपने छोटे भाई लछमण के साथ मिलकर गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से ऋषियों और मुनियों की सुरछा हेतु दैत्यों और राछसों का वध किया।

“बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥” गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित पवित्र महाकाव्य “श्री रामचरित मानस” के सुन्दरकाण्ड में उल्लेखित यह पंक्ति अनुपम उदहारण है जिसमे हिन्दू धर्म का पालन करते हुए प्रभु श्रीराम समुद्र से मार्ग देने की प्रार्थना करते हैं लगातार तीन दिनों तक (ये हिन्दू धर्म है), परन्तु जब समुद्र उन्हें मार्ग नहीं देता है और अधर्म की सहायता करता है तब प्रभु श्रीराम बाण और धनुष लेकर समुद्र से युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं और यही है हिंदुत्व

भगवान श्री कृष्ण ने अपने भांजे शिशुपाल के ९९ अपराधों को क्षमाकर उसे सुधरने का मौका दिया (ये है हिन्दू धर्म) पर १०० अपराध पूर्ण हो जाने पर उसे मृत्युदंड प्रदान किया (ये है हिंदुत्व)। 

महाराज पुरु ने सिकंदर को भारतवर्ष पर आक्रमण ना करने की चेतावनी दी और शांति बनाये रखने के लिए उपदेश दिया (ये है हिन्दू धर्म) परन्तु सिकंदर के ना मानने पर उसे युद्ध में पराजित कर बंदी बना लिया और बाद में अभयदान दिया (ये है हिंदुत्व)।

महाराज चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने रोम के शासक जूलियस सीजर को युद्ध से पूर्व बहुत समझाया (ये है हिन्दू धर्म) परन्तु उसके द्वारा हठ करने पर न केवल उसे हराया अपितु उसे उज्जैन की गलियों में बंदी बनाकर घुमाया और फिर अभयदान देकर वापस भेज दिया (ये है हिंदुत्व)।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान के शांतिपूर्ण समझौते को स्वीकार कर उससे मिलने गए (ये है हिन्दू धर्म ) पर जब आजम खान ने उन पर छल से आक्रमण किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने उसे उसी के तम्बू में मौत के घाट उतार दिया (ये है हिंदुत्व)|

पृथ्वीराज चौहान ने १६ बार  मोहम्मद गोरी को युद्ध में पराजित किया (ये है हिंदुत्व) और हर बार छमा मांगने पर उसे छमा कर दिया (ये है हिन्दू धर्म)।

सरदार पटेल ने जूनागढ़/हैदराबाद के नवाबो को बहुत समझाया (ये है हिन्दू धर्म) पर जब वो नहीं माने तो “ऑपरेशन पोलो” के तहत सैन्य कार्यवाही करके उन्हें घुटनो के बल ला दिया (ये है हिंदुत्व)।

स्व. लाल बहादुर शास्त्री ने अमेरिका को बहुत समझाया पर जब अमेरिका नहीं माना (ये है हिन्दू धर्म) और उसने जानवरो वाले गेंहू का निर्यात करना भारत को बंद कर दिया तो शास्त्री जी के आह्वाहन पर पुरे देश ने अपने आप एक समय का भोजन छोड़ दिया कर देश को खाद्यान्न संकट से उबार लिया (ये है हिंदुत्व)। शास्त्री जी ने नापाक पाकिस्तानियों को बहुत समझाया (ये है हिन्दू धर्म) पर जब वो नहीं मने तो लाहौर तक घूंस के मारा (ये है हिंदुत्व)।

विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने नापाक पाकिस्तानी आतंकियों को बहुत समझाया (ये है हिन्दू धर्म) जब नहीं माने तो भारतीय सैनिको से पहले सर्जिकल स्ट्राइक और फिर एअर स्ट्राइक कराके ठोक दिया (ये है हिंदुत्व)।

भारतीय सैनिको ने डोकलाम घाटी (LAC) पर  चीनी सैनिकों को बहुत समझाया (ये है हिन्दू धर्म) पर जब वो नहीं माने तो एक साथ ४०-५० को ठोक दिया स्वयं का बलिदान देते हुए(ये है हिंदुत्व)। भारतीय जनता ने भी इन इच्छाधारी कालनेमियों को बहुत समझाया (ये है हिन्दू धर्म) जब ये कालनेमि नहीं माने तो हर चुनाव में ठोकना शुरू कर दिया जो अगले कई वर्षों तक जारी रहने की पूर्ण सम्भावना है (ये है हिंदुत्व)।

श्रीमद् भगवद्गीता के सोलहवे अध्याय के द्वितीय व तृतीय श्लोकानुसार

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌। दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌॥

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता। भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥

अर्थात हे भरतवंशी अहिंसा, सत्यं, क्रोध न करना शान्ति व शरीर, मन व मष्तिक की शुद्धता जीवों के प्रति दया भाव, मन, वचन व कर्मो से किसी को क्षति ना पहुँचाना। अपनी समस्त इन्द्रियों को अपने वश मे रखना किसी भी कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित होना। तेज, क्षमा, धैर्यं व किसी से भी शत्रुता न रखना तथा सम्मान का मोह ना होना व अपमान का भय ना होना ये सभी लक्षणं देवतुल्य मनुष्यों मे विद्यमान होते है और यही हिन्दू धर्म के मूल तत्व हैं।

हिन्दू और हिंदुत्व की व्याख्या पवित्र ईश्वर की वाणी गीता के अध्याय ४ और श्लोक ८ में अत्यंत सुन्दर ढंग से किया गया है, जो निम्नवत है:    

परित्राणाय साधूनां विनाशाय दुष्कृताम् धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे

सत्पुरुषों की रक्षा करने के लिए, दुष्कर्म करने वालों दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए मैं (श्रीकृष्ण) प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ।(For the deliverance of the good, for the destruction of the evil-doers, for the enthroning of the Right, I am born from age to age).

Nagendra Pratap Singh (Advocate) [email protected]

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