Saturday, April 27, 2024
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गांधी के बंदर और रविश का अवतार

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गांधी जी के तीन बंदर वाली कहानी तो आप सब ने सुनी ही होगी लेकिन उस कहानी का प्रयोग कब करना है वो आज तक नहीं बताया।

एक शाम को घर की किताब के अंदर घुसा हुआ सन दो हज़ार चौदह के पहले का पाँच सौ नोट अपने आप बाहर निकला और उसके अंदर के मूल निवासी गांधी जी बाहर आए और मुझसे ग़ुस्से में बोले आपसे कुछ बात करनी है। मैंने कहाँ हाँ बताइए तो उन्होंने कहाँ, ये तुम दक्षिणपंथी लोगों ने क्या तमाशा मचा के रखा है क्या मैंने तीन बंदर वाली बात जिसे मैंने अपने चौथे बंदर (जिसने मुझे बापू बनाया और मैंने उसे पीएम) के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी तुम्हारे दिमाग़ से सही से नहीं घुसाई है की बुरा ना देखो, बुरा ना सुनो, बुरा ना कहो।

मैंने कहा नहीं बापू सब याद है पर हमारी गलती तो बताइए तो बापू बोले अगर याद है तो तुम लोग आज-कल पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान ने होने वाली जघन्य हत्याओं, बलात्कार को कैसे सुन और देख के उसके ख़िलाफ़ बोल कैसे रहे हो। तुम लोग एक बात जान लो मोदी कभी गांधी नहीं हो सकता है, तो उसके बहकावे में ना आओ पहले तो ये जान लो की  मोदी महिला विरोधी है, हर जगह अकेले ही चल देता है, मै तो अपने टाइम में ईज्जतघर भी बिना चार पाँच महिलाओं के बिना नहीं जाता था। मोदी के पास आज जितनी संख्या में सेना के जवान हैं उतने तो मैंने चरखा काटते-काटते कटवा दिए। मोदी एक बाल बराबर चुनाव जीतता है फिर भी सिर्फ़ पीएम बन पाया और यहाँ मै और मेरे नामधारी वंशवादी चेलो ने देश काट-काट के नए देश बना दिए आज सबके अपने अपने पीएम हैं।और लिख लो जब मेरे चेले फिर से सत्ता में आएँगे तो देखना केरल और पश्चिमबंगाल दो देश और बनाएँगे।

गांधी जी बोले मै बस ये समझा रहा हूँ की जो केरल और बंगाल में हो रहा है सही ही हो रहा है, तो मैंने जिज्ञासा वश पूछ लिया की वहाँ तो विपक्षी पार्टी के नेताओ और कार्यकर्ताओं का क़त्ल किया जा रहा है तो गांधी जी बोले चुप संघी द वायर में कोई स्टोरी है क्या या रविश का फ़ेसबुक पर कोई चार हाथ का लेख, क्या उस इस मुद्दे पर टीवी पर चार-चार दिन बहस होती है, वामपंथी झुंड या खान बंधुओं ने कभी कहा की उन्हें बंगाल या केरल में डर लगता है अगर ये सब नहीं हुआ तो इसका मतलब पंजाब में सब चंगा सीं।

मै तुरंत चौका और पूँछ लिया गांधी जी बात तो केरल और बंगाल की हो रही थी आप तो पंजाब पहुँच गए तो गांधी हंसते हुए बोले मुझे पता है तुम संघियों की आदत, अभी कुछ दिन बाद तुम लोग पंजाब पर भी उँगली उठाओगे जहां तुम लोगों से कुछ उखड़ता नहीं है या फ़िलहाल कुछ उखाड़ने के हालत में नहीं हो वहाँ तुम लोगों को बड़ी समस्या दिखती है क्या हुआ केरल और बंगाल में चुन चुन कर संघी और भाजपा वाले मारे जा रहे है लेकिन असलियत तो ये है की तुम लोग लाल गमछा धारी के राज्य में ओला के बंदो को मंदिर में घुस कर पानी नहीं पीने देते हो, उन्हें अपने मन से राधा से रबिया बना के लड़कियों से शादी नहीं करने देते हो, अब तो हालत ये है की तुम लोग जवाब देना भी सीख गए हो। इसी कारण से दूसरे राज्यों में तुम लोग मारे जा रहे हो। तुम लोगों को तनिक भी अंदाज़ा नहीं है की तुम  लोग किस ग़लत रास्ते पर हो जब मैंने एक बार कह दिया की देश के लिए भाई-चारे की परंपरा का पालन करना ही होगा जिसमें ओला के बंदे तुम्हारे भाई होंगे और तुम उनका चारा लेकिन तुम लोगों को समझ नहीं आता, इन हाफ़ पैंट वालों के बहकावे में ना आओ, जब गाना बना था “क़ुर्बानी क़ुर्बानी क़ुर्बानी अल्लाह को प्यारी है क़ुर्बानी“ तब तो बड़ा झूम-झूम गाते थे आज क़ुर्बान होके अल्लाह के प्यारे होने का समय आया तो फटी जा रही है।

मै गांधी जी की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था मुझे अपनी गलती का एहसास भी हो रहा था इसलिए मैंने एक बार फिर पूँछ ही लिया की हे महात्मा आज के समय में जिसमें सारी मीडिया को मोदी ने अंबानी और अड़ानी के माध्यम से अपने क़ब्ज़े में कर लिया है तो मुझ जैसा हिंदी माध्यम का पढ़ा व्यक्ति सही ग़लत कैसे जानेगा।

इस पर गांधी जी ने कहा आज के समय में जो रविश है ना वो ही ‘सत्य’  है बस रविश के पोस्ट पढ़ा करो और वो जब ग़ुस्से में टीवी देखने से मना करे तो समझो वो कह रहा है की सिर्फ़ उसका चैनल और सिर्फ़ उसे देख सुन के टीवी बंद कर दिया करो ये जो रविश है ना ये मामूली आदमी नहीं है ये कमरे में लेहरू की फ़ोटो लगा के लगातार दो सुट्टा मारने के बाद भरी दोपहर में लेहरू की स्तुति करते हुए पुत्र प्राप्ति की साधना करने के बाद सीधा बाबरी के गेट से निकला लनुस्य है। तुम रविश को सुनो, वायर वाली आफ़रा को देखो, राजदीप पर भरोसा करो और जब कुछ समझ ना आए तो सीधे मेरे नाम के सहारे जीवित रहने वाले, पचास साली डिंपलधारी युवा की शरण में जाओ हर वह बात जो वह सही बोले सही है ग़लत बोले ग़लत है अगर ऐसा नहीं करोगे तो जल्दी है तुम्हारा सेक्युलर मुल्क एक हिंदू राष्ट्र बन जाएगा।

इतना कहते हुए पुनः आने का वचन देते हुए गांधी जी अपने पाँच सौ के निवास पर चले गए उनके जाते ही मुझे डॉक्टर अम्बेडकर दूरदृष्टि का आभास होने लगा।

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